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गेहूं में पीला रतुआ की बीमारी किसानों के लिए बनी मुसीबत, ऐसे करें बचाव

हरियाणा के किसान इन दिनों गेहूं की फसल में पीला रतुआ की बीमारी (yellow rust disease in wheat) से काफी परेशान हैं. इस रोग को यलो रेस्ट भी कहा जाता है. जानें क्या होता है ये रोग और कैसे करें इसकी रोकथाम.

yellow rust disease in wheat
yellow rust disease in wheat
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Published : Feb 9, 2022, 6:46 PM IST

Updated : Feb 9, 2022, 6:53 PM IST

करनाल: हरियाणा के किसान इन दिनों गेहूं में पीला रतुआ की बीमारी (yellow rust disease in wheat) से परेशान हैं. कृषि अधिकारी डॉक्टर रामप्रकाश के मुताबिक गेहूं में पीला रतुआ रोग से गेहूं की ग्रोथ रुक जाती है. जिससे की पैदावार कम होती है. हमारे देश में रतुए के तीन तरह के रोग गेहूं की फसल को प्रभावित करते हैं, जैसे- पीला रतुआ (पक्सीनिया स्ट्राइफॉर्मिसट्टिीसाइ), भूरा रतुआ (पक्सीनिया ट्रिटीसाइना) और काला रतुआ (पक्सीनिया ग्रोमिनिसट्रिटसाई).

इन तीनों रतुओं का महत्व क्षेत्र विशेष पर आधारित है. भौगोलिक दृष्टि से भारतवर्ष को गेहूं उगाने वाले 6 क्षेत्रों में विभाजित किया गया है. हालांकि तीनों ही प्रकार के रतुए हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में गेहूं पर रोग उत्पन्न करते हैं, लेकिन पीला रतुआ विशेष रूप से हरियाणा समेत उत्तरी भारत क्षेत्र में अनुकूल वातावरण (कम तापमान तथा नमी) होने के कारण अधिक महत्वपूर्ण हो गया है. पीला रतुआ रोग बाकि दोनों रोगों से ज्यादा खतरनाक होता है.

yellow rust disease in wheat
गेहूं में पीला रतुआ की बीमारी किसानों के लिए बनी मुूसीबत

पीला रतुआ के लक्षण: पीला रतुआ रोग (yellow rust disease) फरवरी, मार्च के महीने में उत्पन्न होता है. जो फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है. इससे फसल को बहुत अधिक हानि होती है. रोग के लक्षण, पीले रंग की धारियों के रूप में पत्तियों पर दिखाई देते हैं. इनमें से हल्दी जैसा पीला चूर्ण निकलता है तथा पीला पाउडर जमीन पर भी गिरा हुआ दिखाई देता है. पीली धारियां मुख्यत पत्तियों पर ही पाई जाती हैं. तापमान बढ़ने पर मार्च के अंत में पत्तियों की पीली धारियां काले रंग में बदल जाती हैं.

ये भी पढ़ें- पीला रतुआ रोग से किसानों की फसल हो रही तबाह, ऐसे करें बचाव

पीला रतुआ से बचने के उपाय: इसका प्रकोप अधिक ठंड और नमी वाले मौसम में बहुत ही संक्रमण होता है. पीला रतुआ के पहले लक्षण दिखाई पड़ते ही दवाई का छिड़काव करें. ये स्थिति आमतौर पर फरवरी में शुरू हो जाती है. पीला रतवा फरवरी से पहले दिखाई दे तो एक छिड़काव जरूर कर दें. जिससे रोग ज्यादा ना फैले. छिड़काव के लिए प्रॉपीकोनेशेल 25 ईसीया टेबूकोनेजोल 25 ईसी (फोलिकर 250 ईसी) या ट्राईडिमिफोन 25 डब्ल्यूपी (बेलिटॉन 25 डब्ल्यूपी) का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें. एक एकड़ खेत के लिए 200 मिलीलीटर दवा 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. पानी की उचित मात्रा का प्रयोग करें, फसल की छोटी अवस्था में पानी की मात्रा 100 से 120 लीटर प्रति एकड़ रखी जा सकती है. गेहूं का पीला रतुआ रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 15 से 20 दिन के अंतराल पर करें.

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करनाल: हरियाणा के किसान इन दिनों गेहूं में पीला रतुआ की बीमारी (yellow rust disease in wheat) से परेशान हैं. कृषि अधिकारी डॉक्टर रामप्रकाश के मुताबिक गेहूं में पीला रतुआ रोग से गेहूं की ग्रोथ रुक जाती है. जिससे की पैदावार कम होती है. हमारे देश में रतुए के तीन तरह के रोग गेहूं की फसल को प्रभावित करते हैं, जैसे- पीला रतुआ (पक्सीनिया स्ट्राइफॉर्मिसट्टिीसाइ), भूरा रतुआ (पक्सीनिया ट्रिटीसाइना) और काला रतुआ (पक्सीनिया ग्रोमिनिसट्रिटसाई).

इन तीनों रतुओं का महत्व क्षेत्र विशेष पर आधारित है. भौगोलिक दृष्टि से भारतवर्ष को गेहूं उगाने वाले 6 क्षेत्रों में विभाजित किया गया है. हालांकि तीनों ही प्रकार के रतुए हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में गेहूं पर रोग उत्पन्न करते हैं, लेकिन पीला रतुआ विशेष रूप से हरियाणा समेत उत्तरी भारत क्षेत्र में अनुकूल वातावरण (कम तापमान तथा नमी) होने के कारण अधिक महत्वपूर्ण हो गया है. पीला रतुआ रोग बाकि दोनों रोगों से ज्यादा खतरनाक होता है.

yellow rust disease in wheat
गेहूं में पीला रतुआ की बीमारी किसानों के लिए बनी मुूसीबत

पीला रतुआ के लक्षण: पीला रतुआ रोग (yellow rust disease) फरवरी, मार्च के महीने में उत्पन्न होता है. जो फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है. इससे फसल को बहुत अधिक हानि होती है. रोग के लक्षण, पीले रंग की धारियों के रूप में पत्तियों पर दिखाई देते हैं. इनमें से हल्दी जैसा पीला चूर्ण निकलता है तथा पीला पाउडर जमीन पर भी गिरा हुआ दिखाई देता है. पीली धारियां मुख्यत पत्तियों पर ही पाई जाती हैं. तापमान बढ़ने पर मार्च के अंत में पत्तियों की पीली धारियां काले रंग में बदल जाती हैं.

ये भी पढ़ें- पीला रतुआ रोग से किसानों की फसल हो रही तबाह, ऐसे करें बचाव

पीला रतुआ से बचने के उपाय: इसका प्रकोप अधिक ठंड और नमी वाले मौसम में बहुत ही संक्रमण होता है. पीला रतुआ के पहले लक्षण दिखाई पड़ते ही दवाई का छिड़काव करें. ये स्थिति आमतौर पर फरवरी में शुरू हो जाती है. पीला रतवा फरवरी से पहले दिखाई दे तो एक छिड़काव जरूर कर दें. जिससे रोग ज्यादा ना फैले. छिड़काव के लिए प्रॉपीकोनेशेल 25 ईसीया टेबूकोनेजोल 25 ईसी (फोलिकर 250 ईसी) या ट्राईडिमिफोन 25 डब्ल्यूपी (बेलिटॉन 25 डब्ल्यूपी) का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें. एक एकड़ खेत के लिए 200 मिलीलीटर दवा 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. पानी की उचित मात्रा का प्रयोग करें, फसल की छोटी अवस्था में पानी की मात्रा 100 से 120 लीटर प्रति एकड़ रखी जा सकती है. गेहूं का पीला रतुआ रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 15 से 20 दिन के अंतराल पर करें.

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Last Updated : Feb 9, 2022, 6:53 PM IST
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