करनाल: सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत और त्योहार का अपना अलग ही महत्व होता है. इस साल गोवर्धन पूजा 14 नवंबर को मनाई जाएगी. कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है. गोवर्धन पूजा दिवाली से अगले दिन की जाती है. दिवाली की तरह इस दिन भी दीप प्रचलित करके पटाखे जलाए जाते हैं. इस दिन घर पर कई प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाते हैं. जिनका भोग श्री कृष्ण भगवान को लगाया जाता है. पंडित रामराज कौशिक ने बताया कि गोवर्धन पूजा को दिवाली के उत्सव में ही शामिल किया जाता है. इस पर विशेष तौर पर वो लोग पूजा करते हैं. जो पशु रखते हैं.
गोवर्धन की पूजा पशुओं में बढ़ोतरी और अच्छे अन्य उत्पादन के लिए की जाती है, ताकि भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद उनके ऊपर बनी रहे. उनकी फसल और उनके पशुओं में वृद्धि हो. चलिए जानते हैं गोवर्धन पूजा का महत्व और इसकी पूजा का विधि विधान. हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 13 नवंबर को दोपहर 2:56 से शुरू होगी, जबकि इसका समापन अगले दिन 14 नवंबर को 2:36 पर होगा. हिंदू धर्म में प्रत्येक त्योहार को उदया तिथि के साथ मनाया जाता है. इसलिए गोवर्धन पूजा 14 नवंबर को दिन की जाएगी.
पूजा करने का शुभ मुहूर्त: पंडित रामराज कौशिक ने बताया कि गोवर्धन पूजा शाम के समय की जाती है. इस बार गोवर्धन पूजा करने का समय 14 नवंबर को शाम के समय 7:43 मिनट से शुरू होकर 8:52 तक रहेगा. 2 घंटे 9 मिनट का ये सबसे शुभ समय गोवर्धन पूजा के लिए है.
गोवर्धन पूजा के दिन बन रहा शुभ योग: पंडित रामराज कौशिक ने बताया कि गोवर्धन पूजा के दिन दो शुभ योग बन रहे हैं. जो काफी अच्छे माने जा रहे हैं. इस दिन अतिगंड और शोभन योग बन रहे हैं. इन दोनों में एक पूजा करने का विशेष महत्व है. इस दिन अनुराधा नक्षत्र रहने वाला है. इस नक्षत्र में गोवर्धन पूजा करना भी काफी फलदाई माना जा रहा है.
गोवर्धन पूजा का महत्व: पंडित रामराज ने बताया कि त्रेता युग में जब भगवान श्री कृष्ण का युग था. उस समय इंद्रदेव ने अहंकार में आकर श्री कृष्ण भगवान को नीचा दिखाने की कोशिश की थी और उन्होंने कृष्ण की नगरी पर भारी तूफान और वर्षा अपनी शक्ति से शुरू कर दी थी, लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ते हुए गोवर्धन पर्वत को एक छोटी उंगली पर उठा लिया था. उस पर्वत ने नीचे नगरी के लोग और पशु-पक्षियों को सुरक्षित रखा था. उसके बाद से ही गोवर्धन पूजा शुरू हुई. इस दिन गिरिराज गोवर्धन की पूजा भी की जाती है.
गोवर्धन पूजा का विधि विधान: गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर के साथ गिरिराज गोवर्धन पर्वत के जैसे आकृतियां बनाई जाती हैं और उसमें पशुओं को भी आकृतियों में दर्शाया जाता है साथ ही परिवार के सदस्यों को भी आकृतियों में दर्शाया जाता है, इसमें हल्दी और आटे का प्रयोग करके उसको रंगीन बनाया जाता है. सभी क्षेत्र के अपने अलग-अलग विधि विधान के अनुसार उसमें दूध बिलोने वाली राई, घर में जो लाठियां और हथियार होते हैं. उनको रखते हैं. इसके अलावा पूजा की थाली में नए आभूषण भी रखे जाते हैं. थाली में खिल खेल और खिलौने को शामिल किया जाता है.
खेल, खिल से ही सभी गोवर्धन गिरिराज के आगे हाथ जोड़कर उनकी पूजा करते हैं, जहां पर गोवर्धन की आकृति बनाई हुई होती है. वहां पर दिवाली के दिन शाम के समय एक दीपक लगाया जाता है और गोवर्धन पूजा के दिन भी वहां पर उसको दीपों से प्रज्वलित किया जाता है. कुछ लोग अपनी मान्यता के अ नुसार उनका दूध का स्नान करके उनका पूजन भी करते हैं और दूध से बनी हुई मिठाई का भोग लगाते हैं. अन्नकूट की मिठाई का भी भोग लगाया जाता है, ऐसा करने से उनके घर में सुख समृद्धि आती है और गोवर्धन देव का आशीर्वाद उनके पशुओं और उनके फसलों पर बना रहता है. जिसे उनके पशुओं और फसलों में वृद्धि होती है.