चंडीगढ़: भारतीय किसान यूनियन चढूनी ग्रुप ने 23 नवंबर को कुरुक्षेत्र की पीपली अनाज मंडी में जन आक्रोश रैली का आयोजन किया. हरियाणा समेत दूसरे कई राज्यों के किसानों ने बड़ी संख्या में इस रैली में हिस्सा लिया. इस रैली में राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी और अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव भी पहुंचे. मंच के जरिए किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने राजनीति में जाने की इच्छा भी जाहिर की.
कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले 2024 के चुनाव में जयंत चौधरी हरियाणा में अपनी पार्टी को चुनावी रण में उतरने जा रहे हैं. जयंत चौधरी पूर्व में रहे किसान नेता चौधरी चरण सिंह के पोते हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक अगर वो हरियाणा में चुनाव लड़ते हैं, तो किसान नेता स्वर्गीय चौधरी देवीलाल के परिवार पर इसका असर पड़ सकता है. दूसरी पार्टियों पर भी इसका कितना प्रभाव पड़ेगा. इन मुद्दों पर हमने किसानों से चर्चा की और जाना कि उनका क्या कहना है.
जयंत चौधरी अगर हरियाणा में चुनाव लड़ते हैं, तो किसानों का उन्हें कितना साथ मिलेगा? करनाल के बड़थल गांव के किसानों ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि अगर जयंत चौधरी हरियाणा में चुनाव लड़ते हैं, तो क्या उनके दादा के नाम पर उनको किसानों की वोट मिल पाएगी? किसान नरेश ने कहा कि हरियाणा के सभी किसान सिर्फ देवीलाल को ही अपना किसान नेता मानते हैं और आगे भी मानते रहेंगे.
किसान ने कहा क्योंकि देवीलाल ऐसे व्यक्ति थे जो आमजन के बीच में बैठकर उनकी समस्याओं को सुनते थे और उनका समाधान करते थे. अगर जयंत चौधरी हरियाणा में चुनाव लड़ते हैं, तो उनका चौधरी देवीलाल परिवार की पार्टियों पर या किसी अन्य पार्टी पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा. क्योंकि हरियाणा में सिर्फ देवीलाल का ही जन समर्थन रहा है और उसी के चलते उनके परिवार ने हरियाणा में कई बार सरकार बनाई है.
एक अन्य किसान जिला राम ने कहा कि अगर 2024 में जयंत चौधरी चुनाव लड़ते हैं. यहां पर उनको कुछ भी हासिल नहीं होने वाला, क्योंकि उनका जनाधार सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही है. हर प्रदेश का कोई ना कोई एक बड़ा किसान नेता होता है. जो अपने प्रदेश के लिए अच्छे काम करता है. उनमें से देवीलाल एक थे. जिन्होंने हरियाणा प्रदेश के लिए किसानों के हित में काम किए. वहीं उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए चौधरी चरण सिंह ने काम किए. इसलिए वहां पर उनका नाम आज भी काफी सामान के साथ लिया जाता है.
अगर जयंत हरियाणा से चुनाव लड़ते हैं, तो उनको किसानों की वोट बिल्कुल भी हासिल नहीं होगी और यहां पर उनको किसानों के द्वारा निराशा ही हाथ लगेगी. उन्होंने कहा कि अगर वो अपने दादा चरण सिंह के नाम पर वोट मांगते हैं, तो उनको सिर्फ अपने प्रदेश में ही वोट मांगनी चाहिए. क्योंकि हरियाणा में किसानों के मसीहा और बड़े नेता चौधरी देवीलाल ही हैं. जो हमेशा रहेंगे.
गुरनाम सिंह चढूनी के राजनीतिक पार्टी में आने से क्या किसानों का मिल पाएगा जन समर्थन? कुरुक्षेत्र की जन आक्रोश रैली में गुरनाम चढूनी ने राजनीति में आने की इच्छा जाहिर की थी. चढूनी ने किसानों से पूछा था कि क्या हमें राजनीति में आना चाहिए, इसके बाद रैली में मौजूद किसानों ने दोनों हाथ खड़े कर गुरनाम चढूनी का समर्थन किया था. लेकिन माना जा रहा है कि ये वही लोग रैली में शामिल थे. जो उनके पक्के समर्थक हैं. ऐसे में जो सही में किसान हैं और गांव में रहकर किसी भी प्रकार की राजनीति ना करके अपनी खेती बाड़ी कर रहे हैं. वो चढूनी का कितना साथ देंगे. ये कहना मुश्किल है.
किसान नरेश ने बताया कि गुरनाम सिंह शुरू से ही राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए रहे हैं. पहले भी वो चुनाव लड़ चुके हैं, इसलिए उनके पास किसानों का वोट बैंक नहीं होगा, क्योंकि किसान नहीं चाहते कि वो चुनाव लड़े, क्योंकि अगर कोई भी किसान नेता राजनीति में जाता है, तो वो किसानों के मुद्दे उठाने की बजाय अपने अन्य मुद्दों पर ही ज्यादा ध्यान देता है. जिसके चलते वो किसानों के पक्ष की बात नहीं करते. अगर वो हरियाणा में चुनाव लड़ते हैं, तो उनको किसानों का बहुत ही कम मात्रा में वोट बैंक प्राप्त होगा. हां अगर वो किसानों के लिए ऐसे ही किसान नेता बनकर लड़ाई लड़ते रहते हैं, तो उनको किसानों का साथ बिल्कुल मिलता रहेगा.
किसान जिला राम ने कहा कि गुरनाम सिंह को राजनीति में बिल्कुल भी नहीं जाना चाहिए. क्योंकि पहले भी वो राजनीति में जाकर देख चुके हैं कि उनको कितना जन समर्थन मिला है, जितने किसान अब उनके साथ हैं उतने किसान उनके राजनीति में आने के बाद साथ नहीं रहेंगे. क्योंकि राजनीति में जाकर हर कोई इंसान स्वार्थी बन जाता है. ऐसे में कोई भी किसानों को याद नहीं रखता. हालांकि गुरनाम सिंह का कहना है कि अगर हमने किसानों की मुद्दों को उठाना है और उनका हल करवाना है, तो हमें राजनीति में जाना होगा और लोकसभा विधानसभा में जाकर किसानों की हित की आवाज उठानी होगी. लेकिन इस पर हरियाणा के किसानों ने आपत्ति जाहिर की और कहा कि उनको राजनीति में आकर किसान नेता रहकर ही उनके हकों की लड़ाई के लिए खड़े होना चाहिए.
दोनों मुद्दों पर जब हमने किसानों से बात की तो ये निकल कर आया कि अगर जयंत चौधरी अपने दादा चरण सिंह के नाम पर किसानों की वोट पाने के लिए हरियाणा में आकर 2024 में चुनाव लड़ते हैं, तो दूसरी पार्टियों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता और ना ही उनको हरियाणा में किसानों का वोट बैंक प्राप्त होगा. अगर गुरनाम सिंह भी राजनीति में जाते हैं, तो जितना जन समर्थन किसानों का उनके साथ है. उतना समर्थन किसानों का राजनीति में जाने के बाद उनको नहीं मिल पाएगा.