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Ashadha Purnima 2023: जानिए आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व, शुभ मुहूर्त और व्रत विधि

हिंदू धर्म में आषाढ़ पूर्णिमा का विशेष महात्म्य है. इस साल आषाढ़ पूर्णिमा सोमवार, 3 जुलाई को है. वहीं, मंगलवार 4 जुलाई से भगवान शिव का प्रिय महीना सावन शुरू हो रहा है. आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था. (Ashadha Purnima 2023)

Ashadha Purnima 2023
आषाढ़ पूर्णिमा 2023
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Published : Jul 2, 2023, 8:11 AM IST

Updated : Jul 3, 2023, 7:41 AM IST

करनाल: हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन का आकलन हिंदू पंचांग के आधार पर किया जाता है और हिंदू पंचांग के आधार पर ही हर त्योहार और व्रत रखे जाते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा 3 जुलाई को है. पूर्णिमा के साथ ही आषाढ़ महीने का समापन हो जाएगा और 4 जुलाई से सावन का महीने की शुरुआत हो जाएगी. आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों में बताया गया है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, जिसकी वजह से आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन व्रत रखकर सत्यनारायण भगवान की कथा करने और विष्णु की पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है. माना जाता है कि जो इंसान आषाढ़ पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामना विष्णु भगवान पूरी करते हैं. तो आइए जानते हैं आषाढ़ पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त का समय और पूजा का विधि विधान.

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आषाढ़ पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त: पंडित विश्वनाथ के बताया कि, आषाढ़ पूर्णिमा का सभी पूर्णिमा से बढ़कर महत्व होता है. क्योंकि, इसको गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा का प्रारंभ 2 जुलाई रात को 8 बचकर 21 मार्च से शुरू होगा, जबकि इसका समापन अगले दिन 3 जुलाई को शाम के 5:08 पर होगा. हिंदू धर्म में प्रत्येक तिथि और त्योहार को सूर्योदय तिथि के साथ ही मनाया जाता है. इसलिए आषाढ़ पूर्णिमा का व्रत 3 जुलाई को रखा जाएगा.

आषाढ़ पूर्णिमा के दिन शुभ संयोग: हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं. आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ब्रह्म योग और इंद्र योग बनने जा रहे हैं. इसके अलावा बुध और सूर्य की युति से बुधादित्य योग का निर्माण भी इस दिन हो रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार ब्रह्म योग 2 जुलाई को शाम के 7:26 मिनट से शुरू होकर 3 जुलाई को दोपहर 3:45 मिनट तक रहेगा. हिंदू पंचांग के अनुसार इंद्र योग का प्रारंभ 3 जुलाई को दोपहर 3:45 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 4 जुलाई को सुबह 11:50 पर इसका समापन होगा. यह बहुत ही काफी शुभ है.

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आषाढ़ पूर्णिमा को कहा जाता है गुरु पूर्णिमा: हिंदू धर्म में पूर्णिमा का काफी महत्व है. आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. क्योंकि, इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था. हिंदू धर्म में महर्षि वेदव्यास को सबसे पहले गुरु का दर्जा दिया गया है. क्योंकि शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य जाति को सबसे पहले वेदों की शिक्षा महर्षि वेदव्यास ने ही दी थी. महर्षि वेदव्यास को श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत जैसे पुराणों का रचयिता भी माना जाता है. इसी कारण सनातन धर्म में महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु का दर्जा दिया गया है. इसी के चलते आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है और इस दिन विशेष तौर पर महर्षि वेदव्यास की पूजा की जाती है.

आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व: हिंदू धर्म में आषाढ़ पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. शास्त्रों में बताया गया है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से उसके परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है. मान्यता है कि जो इंसान इस दिन व्रत रख कर जप तप और दान करता है उस इंसान को अमोघ फल की प्राप्ति होती है. पूर्णिमा के दिन श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है. इस दिन सत्यनारायण व्रत कथा करने का भी विशेष महत्व होता है. पूर्णिमा के दिन अगर मनुष्य किसी पवित्र नदी में स्नान करता है तो उसके सारे पाप भी दूर हो जाते हैं. पूर्णिमा के दिन दान करने का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराने से कई प्रकार के पाप दूर होते हैं. उसके परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है.

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आषाढ़ पूर्णिमा व्रत व पूजा का विधि विधान: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि, शास्त्रों में बताया गया है कि पूर्णिमा के दिन विष्णु भगवान की पूजा करने और व्रत रखने का विशेष महत्व होता है. पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र नदी में सूर्योदय से पहले स्नान इत्यादि करके व्रत रखने का प्रण लेना चाहिए. उसके बाद भगवान विष्णु पूजा करनी चाहिए. भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की पूजा भी करें. इससे परिवार पर माता लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करते समय भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल पीले रंग की मिठाई और कपड़े अर्पित करें.

आषाढ़ पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास की पूजा का विशेष विधान: वहीं, आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है, इसलिए महर्षि वेदव्यास की भी पूजा करें. जिस मनुष्य ने पूर्णिमा के दिन व्रत रखने का प्रण लिया है, उसे बिना अन्न के रहना चाहिए. इस दिन आप भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करें और उसके लिए कीर्तन करें. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए सत्यनारायण भगवान की कथा अगर आप अपने घर पर करते हैं तो उसका और भी ज्यादा महत्व बढ़ जाता है. शाम के समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने के बाद उनको प्रसाद का भोग लगाएं और उसके बाद गरीब, जरूरतमंद ओवर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपनी श्रद्धा अनुसार उनको दान भी करें. उसके बाद अपना व्रत खोल दें.

करनाल: हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन का आकलन हिंदू पंचांग के आधार पर किया जाता है और हिंदू पंचांग के आधार पर ही हर त्योहार और व्रत रखे जाते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा 3 जुलाई को है. पूर्णिमा के साथ ही आषाढ़ महीने का समापन हो जाएगा और 4 जुलाई से सावन का महीने की शुरुआत हो जाएगी. आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों में बताया गया है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, जिसकी वजह से आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन व्रत रखकर सत्यनारायण भगवान की कथा करने और विष्णु की पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है. माना जाता है कि जो इंसान आषाढ़ पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामना विष्णु भगवान पूरी करते हैं. तो आइए जानते हैं आषाढ़ पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त का समय और पूजा का विधि विधान.

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आषाढ़ पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त: पंडित विश्वनाथ के बताया कि, आषाढ़ पूर्णिमा का सभी पूर्णिमा से बढ़कर महत्व होता है. क्योंकि, इसको गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा का प्रारंभ 2 जुलाई रात को 8 बचकर 21 मार्च से शुरू होगा, जबकि इसका समापन अगले दिन 3 जुलाई को शाम के 5:08 पर होगा. हिंदू धर्म में प्रत्येक तिथि और त्योहार को सूर्योदय तिथि के साथ ही मनाया जाता है. इसलिए आषाढ़ पूर्णिमा का व्रत 3 जुलाई को रखा जाएगा.

आषाढ़ पूर्णिमा के दिन शुभ संयोग: हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं. आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ब्रह्म योग और इंद्र योग बनने जा रहे हैं. इसके अलावा बुध और सूर्य की युति से बुधादित्य योग का निर्माण भी इस दिन हो रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार ब्रह्म योग 2 जुलाई को शाम के 7:26 मिनट से शुरू होकर 3 जुलाई को दोपहर 3:45 मिनट तक रहेगा. हिंदू पंचांग के अनुसार इंद्र योग का प्रारंभ 3 जुलाई को दोपहर 3:45 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 4 जुलाई को सुबह 11:50 पर इसका समापन होगा. यह बहुत ही काफी शुभ है.

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आषाढ़ पूर्णिमा को कहा जाता है गुरु पूर्णिमा: हिंदू धर्म में पूर्णिमा का काफी महत्व है. आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. क्योंकि, इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था. हिंदू धर्म में महर्षि वेदव्यास को सबसे पहले गुरु का दर्जा दिया गया है. क्योंकि शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य जाति को सबसे पहले वेदों की शिक्षा महर्षि वेदव्यास ने ही दी थी. महर्षि वेदव्यास को श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत जैसे पुराणों का रचयिता भी माना जाता है. इसी कारण सनातन धर्म में महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु का दर्जा दिया गया है. इसी के चलते आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है और इस दिन विशेष तौर पर महर्षि वेदव्यास की पूजा की जाती है.

आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व: हिंदू धर्म में आषाढ़ पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. शास्त्रों में बताया गया है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से उसके परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है. मान्यता है कि जो इंसान इस दिन व्रत रख कर जप तप और दान करता है उस इंसान को अमोघ फल की प्राप्ति होती है. पूर्णिमा के दिन श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है. इस दिन सत्यनारायण व्रत कथा करने का भी विशेष महत्व होता है. पूर्णिमा के दिन अगर मनुष्य किसी पवित्र नदी में स्नान करता है तो उसके सारे पाप भी दूर हो जाते हैं. पूर्णिमा के दिन दान करने का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराने से कई प्रकार के पाप दूर होते हैं. उसके परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है.

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आषाढ़ पूर्णिमा व्रत व पूजा का विधि विधान: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि, शास्त्रों में बताया गया है कि पूर्णिमा के दिन विष्णु भगवान की पूजा करने और व्रत रखने का विशेष महत्व होता है. पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र नदी में सूर्योदय से पहले स्नान इत्यादि करके व्रत रखने का प्रण लेना चाहिए. उसके बाद भगवान विष्णु पूजा करनी चाहिए. भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की पूजा भी करें. इससे परिवार पर माता लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करते समय भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल पीले रंग की मिठाई और कपड़े अर्पित करें.

आषाढ़ पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास की पूजा का विशेष विधान: वहीं, आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है, इसलिए महर्षि वेदव्यास की भी पूजा करें. जिस मनुष्य ने पूर्णिमा के दिन व्रत रखने का प्रण लिया है, उसे बिना अन्न के रहना चाहिए. इस दिन आप भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करें और उसके लिए कीर्तन करें. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए सत्यनारायण भगवान की कथा अगर आप अपने घर पर करते हैं तो उसका और भी ज्यादा महत्व बढ़ जाता है. शाम के समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने के बाद उनको प्रसाद का भोग लगाएं और उसके बाद गरीब, जरूरतमंद ओवर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपनी श्रद्धा अनुसार उनको दान भी करें. उसके बाद अपना व्रत खोल दें.

Last Updated : Jul 3, 2023, 7:41 AM IST
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