कैथल: लॉकडाउन के दौरान सबसे बैचेन करने वाली तस्वीरें थी मजदूरों का पलायन, ना रोजगार बचा, ना घर का खर्च चलाने के लिए रुपये. मजबूरी में कामकाज छोड़ घर लौटे मजदूरों के लिए सबसे बड़ा संकट था रोगजार. ऐसे में मजदूरों के पास रोजगार का एकमात्र साधन थी महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना. जिसके तहत मजदूरों को साल में 100 दिन के लिए काम दिया जाता है.
कागजों तक की सीमित मनरेगा?
लॉकडाउन के दौरान ये योजना भी दम तोड़ती नजर आई. ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत में मजदूरों ने माना कि ये योजना सिर्फ कागजों तक सीमित है. धरातल पर इसका कोई अस्तित्व नहीं है.
ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत के दौरान मजदूरों ने बताया कि इस योजना में एक बहुत ही बड़ा भ्रष्टाचार चल रहा है क्योंकि इसमें जो मजदूर होते हैं वो गांव के मुखिया यानी सरपंच के आधार पर ही काम करते हैं और मजदूरों ने कहा कि सरपंच उन लोगों को ही ये काम देते हैं जो उनको चुनावी समय में वोट देते हैं. जब हमने लोगों से बात की तो उनका कहना है कि उनको पिछले 5-6 सालों से मनरेगा के तहत कोई भी काम नहीं मिला. जिसका मुख्य कारण है कि सरपंचों का लिस्ट में उनका नाम ना देना.
नहीं मिला मजदूरों को रोजगार
मनरेगा स्कीम के तहत जरूरतमंदों को रोजगार की गारंटी दी जाती है. इसका मकसद है ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना. इसके तहत हर घर के एक व्यस्क सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिन का रोजगार देने की गारंटी दी जाती है. दूसरा मकसद ग्रामीण जरूरतमंदों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाना, लेकिन कैथल में ये मजदूरों के लिए राहत कम और आफत ज्यादा साबित हो रही है.
सरपंच पर भ्रष्टाचार का आरेप
नरेगा यानी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को 2 फरवरी 2006 को लागू किया गया था. पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया. दूसरे चरण में साल 2007-8 में इसमें 130 जिलों को और शामिल किया गया. देश को इस योजना के दायरे में लाने के लिए अप्रैल 2008 से इसे विस्तार दे दिया गया. अब इसका नया नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना है. उम्मीद थी कि ये योजना लॉकडाउन में मजदूरों के काम आएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
जब इस बारे में जब ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने डीडीपीओ से बात करनी चाही तो उन्होंने बात करने से मना कर दिया. नगर परिषद के सीईओ से जब इस बारे में पूछा गया तो भी कैमरे के सामने चुप्पी साध गए. कैथल से बीजेपी विधायक लीलाराम गुर्जर जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने दावा किया कि इस योजना के तहत किसी को रोजगार मिला है.
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विधायक ने तो दावा कर दिया, सरकार का गुणगाण भी कर दिया, सच्चाई तो ये है कि हकीकत दावों से कोसो दूर है. मजदूरों ने इस स्कीम में घोटाले का भी आरोप लगाया है. आरोप है कि सरपंच सिर्फ चहेतों को ही काम देता है. कई बार इसकी शिकायत भी की गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. यहां प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा मजदूरों के भुगतना पड़ रहा है.
मनरेगा (MNREGA) की प्रमुख विविशेषताएं:
- एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों के लिए सभी वयस्क सदस्यों को नौकरी की सुरक्षा प्रदान करना
- सड़क, तालाब, कुएँ जैसे स्थायी धन का सृजन करना
- आवेदकों के निवास से 5 किलोमीटर की दूरी के भीतर रोजगार उपलब्ध कराया जाता है
- न्यूनतम मजदूरी प्रदान की जाएगी
- यदि आवेदन के 15 दिनों के भीतर काम नहीं दिया जाता है, तो आवेदकों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा