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करीब 50 साल से किसानों की फसल बर्बाद कर रहे जंगली जानवर, नहीं है मुआवजे का प्रावधान

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Published : Nov 22, 2020, 7:37 PM IST

ईटीवी भारत हरियाणा के साथ बातचीत में किसानों ने बताया कि गुलहा में करीब 35 किलोमीटर के क्षेत्र में जंगल फैला हुआ है. जंगली जानवरों की वजह से यहां खेती करना बुहत मुश्किल है.

wild animal damage farmers crops into agricultural fields
wild animal damage farmers crops into agricultural fields

कैथल: प्रदेश के किसान सरकारी तंत्र और मौसम की मार के बाद सबसे ज्यादा परेशान जंगली जानवरों से हैं. हजारों रुपये की लागत और हड्डी तोड़ मेहनत से तैयार होती फसल को जंगली जानवर बर्बाद कर देते हैं. रात-रात भर किसान जागकर खेतों की रखवाली करते हैं. इसके बाद भी उनके हाथ मायूसी लगती है.

कैथल के गुलहा कस्बे में किसानों को कई बार जान से हाथ भी धोना पड़ा है. ईटीवी भारत हरियाणा के साथ बातचीत में किसानों ने बताया कि गुलहा में करीब 35 किलोमीटर के क्षेत्र में जंगल फैला हुआ है. जंगली जानवरों की वजह से यहां खेती करना बुहत मुश्किल है.

करीब 50 साल से किसानों की फसल बर्बाद कर रहे जंगली जानवर, क्लिक कर देखें वीडियो

जंगल से लगती जमीन पर खेती ना के बराबर

जंगल से लगती जमीन पर खेती करना तो ना के बराबर है. क्योंकि जब भी किसान जंगल से लगती जमीन में फसल उगाते हैं तो अंकुरित होने के बाद बंदर, जंगली सूअर, नील गाय उस फसल को तहस-नहस कर देती हैं. इस जंगल के चारों तरफ काफी गांव बसे हुए हैं. जंगल की सीमा कुरुक्षेत्र की जमीन से लगती है.

इस जंगल में नीलगाय, बारहसिंघा, जंगली सूअर, बंदर और गीदड़ जैसे जानवर रहते हैं. जो फसलों के ही नहीं बल्कि रात में पहरा दे रहे किसानों के लिए भी खतरनाक हैं. कहीं जानवर किसानों पर जानलेवा हमला ना कर दे. इसलिए 8 से 10 किसान ग्रुप बनाकर पहरेदारी करते हैं. ये सिलसिला करीब 50 साल से चला आ रहा है. किसान नेताओं से लेकर अधिकारियों तक गुहार लगा चुके हैं. लेकिन उनकी इस समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ है.

शिकायत के बाद भी कोई सुनवाई नहीं

फसल की बिजाई के बाद 24 घंटे ग्राणीणों को फसला की निगरानी करनी पड़ती है. तपती दोपहर हो या हाड़ जमा देने वाली ठंड़, किसान दिन-रात खेतों में पहरा देते हैं. किसानों ने विधायक से लेकर सांसद और वन विभाग के अधिकारियों से मुलाकात की. लेकिन उनकी कोई भी सुनवाई नहीं हुई. जब किसी ने नहीं सुनी तो किसानों ने पंयात कोष से लाखों रुपये खर्च कर खेत के चारों तरफ तार की बाड़ लगाई, लेकिन जानवर उसको भी तोड़ देते हैं. जिससे किसानों को सालाना एक एकड़ पर 15 से 20 हजार रुपये मेंटेनेंस के लिए खर्च करना पड़ता है.

ये भी पढ़ें- कोरोना काल में बढ़ी महंगाई, मुश्किल हुआ 'आशियाने' का सपना

इस बारे में जब हमने वन मंडल जिलाधिकारी राजीव से बात की तो उन्होंने कहा कि इतने बड़े क्षेत्रफल में तारे लगाना संभव नहीं है. अगर तार लगा भी देते हैं इससे जानवारों की जान जाने की आशंका ज्यादा हो जाएगी. क्योंकि जंगल में आग लगती रहती है और बाढ़ भी आ जाती है. अगर तार लगा दिया गया वो जंगल से बाहर नहीं आ सकेंगे. इसलिए विभाग ये कदम नहीं उठाता.

वन विभाग के अधिकारी ने बताया कि उनकी तरफ से फसल के नुकसान पर किसानों को कोई मुआवजा नहीं दिया जाता. क्योंकि हरियाणा में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. मुआवजा उन राज्यों में दिया जाता है जहां पर बाग, हाथी इत्यादि बड़े जानवर होते हैं.

कैथल: प्रदेश के किसान सरकारी तंत्र और मौसम की मार के बाद सबसे ज्यादा परेशान जंगली जानवरों से हैं. हजारों रुपये की लागत और हड्डी तोड़ मेहनत से तैयार होती फसल को जंगली जानवर बर्बाद कर देते हैं. रात-रात भर किसान जागकर खेतों की रखवाली करते हैं. इसके बाद भी उनके हाथ मायूसी लगती है.

कैथल के गुलहा कस्बे में किसानों को कई बार जान से हाथ भी धोना पड़ा है. ईटीवी भारत हरियाणा के साथ बातचीत में किसानों ने बताया कि गुलहा में करीब 35 किलोमीटर के क्षेत्र में जंगल फैला हुआ है. जंगली जानवरों की वजह से यहां खेती करना बुहत मुश्किल है.

करीब 50 साल से किसानों की फसल बर्बाद कर रहे जंगली जानवर, क्लिक कर देखें वीडियो

जंगल से लगती जमीन पर खेती ना के बराबर

जंगल से लगती जमीन पर खेती करना तो ना के बराबर है. क्योंकि जब भी किसान जंगल से लगती जमीन में फसल उगाते हैं तो अंकुरित होने के बाद बंदर, जंगली सूअर, नील गाय उस फसल को तहस-नहस कर देती हैं. इस जंगल के चारों तरफ काफी गांव बसे हुए हैं. जंगल की सीमा कुरुक्षेत्र की जमीन से लगती है.

इस जंगल में नीलगाय, बारहसिंघा, जंगली सूअर, बंदर और गीदड़ जैसे जानवर रहते हैं. जो फसलों के ही नहीं बल्कि रात में पहरा दे रहे किसानों के लिए भी खतरनाक हैं. कहीं जानवर किसानों पर जानलेवा हमला ना कर दे. इसलिए 8 से 10 किसान ग्रुप बनाकर पहरेदारी करते हैं. ये सिलसिला करीब 50 साल से चला आ रहा है. किसान नेताओं से लेकर अधिकारियों तक गुहार लगा चुके हैं. लेकिन उनकी इस समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ है.

शिकायत के बाद भी कोई सुनवाई नहीं

फसल की बिजाई के बाद 24 घंटे ग्राणीणों को फसला की निगरानी करनी पड़ती है. तपती दोपहर हो या हाड़ जमा देने वाली ठंड़, किसान दिन-रात खेतों में पहरा देते हैं. किसानों ने विधायक से लेकर सांसद और वन विभाग के अधिकारियों से मुलाकात की. लेकिन उनकी कोई भी सुनवाई नहीं हुई. जब किसी ने नहीं सुनी तो किसानों ने पंयात कोष से लाखों रुपये खर्च कर खेत के चारों तरफ तार की बाड़ लगाई, लेकिन जानवर उसको भी तोड़ देते हैं. जिससे किसानों को सालाना एक एकड़ पर 15 से 20 हजार रुपये मेंटेनेंस के लिए खर्च करना पड़ता है.

ये भी पढ़ें- कोरोना काल में बढ़ी महंगाई, मुश्किल हुआ 'आशियाने' का सपना

इस बारे में जब हमने वन मंडल जिलाधिकारी राजीव से बात की तो उन्होंने कहा कि इतने बड़े क्षेत्रफल में तारे लगाना संभव नहीं है. अगर तार लगा भी देते हैं इससे जानवारों की जान जाने की आशंका ज्यादा हो जाएगी. क्योंकि जंगल में आग लगती रहती है और बाढ़ भी आ जाती है. अगर तार लगा दिया गया वो जंगल से बाहर नहीं आ सकेंगे. इसलिए विभाग ये कदम नहीं उठाता.

वन विभाग के अधिकारी ने बताया कि उनकी तरफ से फसल के नुकसान पर किसानों को कोई मुआवजा नहीं दिया जाता. क्योंकि हरियाणा में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. मुआवजा उन राज्यों में दिया जाता है जहां पर बाग, हाथी इत्यादि बड़े जानवर होते हैं.

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