कैथल: कलायत श्री कपिल मुनि धाम परिसर में सातवीं-आठवीं शताब्दी में निर्मित उत्तरी भारत के प्राचीन शिव मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य रुक गया है. ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण से जुड़े इस कार्य को कुछ माह पहले शुरू किया गया था. कलायत के युवा शिल्पकार अशोक धीमान ने इसका प्रारूप तैयार किया था.
इसके तहत संपूर्ण मंदिर के क्षतिग्रस्त हिस्से का 9 हिस्सों में कायाकल्प करना था. शिल्पकार ने करीब 350 ईंटों को विशेष तरह से तराश कर एक हिस्सा तैयार भी कर दिया था. इसे शीर्ष अधिकारियों की अनुमति के बाद मंदिर के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटाकर स्थापित करना था. इसी बीच अचानक शिल्पकार को काम बंद करने के निर्देश मिल गए. जिसके चलते उसे कार्य रोकना पड़ा. प्राचीन मंदिर पर की गई नक्काशी के अनुसार ही भट्ठे पर ईंटों को बनवाया था.
श्राप से मुक्ति के बाद मंदिर का निर्माण
कलायत में राजा शालीवाहन द्वारा सातवीं-आठवीं शताब्दी में उक्त शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया था. किंवदंती है कि विशेष श्राप से श्री कपिल मुनि सरोवर में मुक्ति पाने से प्रसन्न राजा ने शिवालय निर्माण का कार्य किया था. भारत में इसे विशेष धरोहर के रूप में जाना जाता है.
बिना चूना, मिट्टी के बना शिवालय
उत्तर भारत का अजूबा कहे जाने वाला प्राचीन शिवालय बिना चूना और मिट्टी के तैयार किया गया है, प्राचीन काल के शिल्पकारों ने हुनर से ईंटों को तराशते हुए मंदिर का मजबूती से निर्माण किया गया. ये शिव मंदिर सांख्य दर्शन प्रवर्तक भगवान कपिल मुनि मंदिर सरोवर तट पर स्थित पंचरथ शैली से निर्मित है.
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हजारों साल की गवाह ये धरोहर अब धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है. भारत में कई मंदिर धीरे-धीरे खंडहर होते जा रहे उनमें से एक सातवीं-आठवीं शताब्दी में बना उत्तरी भारत का अजूबा प्राचीन शिव मंदिर भी है. कुछ दिन पहले इस मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू तो हुआ लेकिन किन्हीं कारणों से फिर से रूक गया.
सरकार का नहीं ध्यान
श्री कृष्ण गीता उपदेश की उत्पत्ति का गवाह माने जाने वाला श्री कपिल मुनि तीर्थ पर्यटन का हब नहीं बन पाया. भारत देश में यह कोई पहला मंदिर नहीं जो अपनी पहचान खोता जा रहा हो और भी कई मंदिर इसी तरह खंडर में तब्दील हो गए हैं. संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रीय धरोंहरों का गुणगान करने वाली सरकारों का भी अपनी मिटती जा रही विरासतों की ओर कोई ध्यान नहीं है