कैथल: जिले का सूर्यकुंड शिव मंदिर नवग्रहों में से एक सूर्य ग्रह पर ऊपर आधारित है. इस मंदिर को महाभारत के समय कैथल की भूमि पर स्थापित किया गया था. इस मंदिर में युधिष्ठिर ने शिवलिंग की स्थापना की थी. जहां पर बैठकर युधिष्ठिर ने महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद पूजा अर्चना की थी.
महाभारत के समय देशभर में नवग्रह मंदिर बनाए गए हैं. उन नौ ग्रहों में से ही एक कैथल का सूर्यकुंड मंदिर है. विद्वानों का कहना है कि पूरे भारत में अगर नवग्रह की कहीं सबसे ज्यादा मान्यता है तो वो दो जगह काशी और और कैथल है. कैथल में ये मंदिर कैथल शहर के उत्तर दिशा में स्थित है.
मंदिर के पुजारी आचार्य रामानंद ने ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो उन्होंने बताया कि युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि जो युद्ध में मारे गए हैं, वे सभी मेरे अपने थे. मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए क्या करूं? तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि आप शिवलिंग की स्थापना कर पूजा अर्चना करें. तब कैथल में युधिष्ठिर ने शिवलिंग की स्थापना की और यहीं पर एक कुंड हैं जिसमें सें लुटिया में जल लेकर युधिष्ठिर ने शिवलिंग पर चढ़ाया और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए हवन और प्रार्थना की थी.
687 ईसवी में आदि गुरु शंकराचार्य ने इस कुंड की रक्षा का निर्देश अपने शिष्य को दिया था. 1860 से 1900 के बीच में शिष्यों ने इन कुंडों को काशी के दशनामी जूना अखाड़े को सौंप दिया था. डेरा बाबा परमहंस पुरी ने इन कुंडों की देखभाल शुरू की. उनकी मृत्यु की बाद से जूना अखाडे़ की गद्दी इन कुंडो की देखभाल कर रही है.
सूर्य कुंड के प्रांगण में उड़िया शैली में बना है शिव मंदिर
सूर्य कुंड के जीर्णोद्धार के साथ ही उसके प्रांगण में स्थापित महाभारत कालीन शिव लिंग के ऊपर 65 फीट लंबाई 40 फीट चौड़ाई में उड़िया शैली में भव्य शिव मंदिर का बनाया गया है. शिव मंदिर का गर्भ ग्रह 40 गुणा 20 का बना है. पूरा मंदिर दक्षिण भारतीय शैली से बनाया गया है.
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पूरे मंदिर की दीवारों पर काले भूरे रंग का ग्रेनाइट पत्थर लगा है. मंदिर के बाहरी की दीवारों पर भगवान दत्तात्रेय, भगवान लक्ष्मी नारायण, राधा कृष्ण हिंगलाज माता, मां दुर्गा, माता बगलामुखी, मां अन्नपूर्णा तथा अन्य कई देवी देवताओं की मूर्तियां बनाई गई हैं.