ETV Bharat / state

पराली जलाने के मामलों में किसान नहीं सरकारी पराली प्रबंधन जिम्मेदार! - कैथल पराली आग न्यूज

पराली किसानों के लिए आफत बन चुकी है. ऐसे में किसान करें, तो करे क्या? पराली का सरकारी निपटान करे तो कंगाल हो जाए और जला दे तो जेल जाए.

government stubble management strategy failed in haryana
पराली जलाने के मामलों में किसान नहीं सरकारी पराली प्रबंधन जिम्मेदार!
author img

By

Published : Oct 27, 2020, 7:04 AM IST

कैथल: फसल कटाई के बाद पूरे उत्तर भारत में पराली देश की सबसे बड़ी समस्या बन जाती है. पिछले एक दशक में इस सीजन में पराली जलने से हवा में कॉर्बन डाइऑक्साइड, पीएम 10, पीएम 2.5 और अन्य गैस हवा में घुल जाती है. ये गैस और कण इंसान की सेहत के लिए खतरनाक होते हैं. पिछले एक दशक से पराली को लेकर सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी और केंद्र सरकार गंभीर है.

कैथल में पराली प्रबंधन के लिए 6000 मशीन

सरकार ने पराली प्रबंधन के लिए गंभीरता से काम किया. पराली के वैकल्पिक इस्तेमाल के लिए तरीके खोजे गए. इस पराली को बिजली बॉयलर में जलाने के लिए इस्तेमाल होने लगा और खेतों से पराली उठाने के लिए विशेष मशीनें हर जिले में भेजे गए. जिसको लेकर किसानों को जागरुक किया जा रहा है. कैथल के कृषि उपनिदेशक ने बताया कि उनके जिले में मशीनें आ चुकी हैं, और पराली का सही से प्रबंधन किया जा रहा है.

लचर पराली प्रबंधन से किसान हुए परेशान, देखिए रिपोर्ट

प्रति एकड़ होता है 1000 से 1500 रुपये खर्च

कैथल उपनिदेशक ने बताया कि पराली से निपटने के लिए रास्ता तो ढूंड लिया गया है, लेकिन ये तरीका काफी मंहगा है. किसानों को मशीनों से पराली के गट्ठे बनाने के लिए एक एकड़ पर 1000 से 1500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. समस्या यहीं तक नहीं है. गट्ठे बनाने के बाद पराली खरीद प्रक्रिया भी काफी लचर है, खेत से ये गट्ठे भी नहीं उठाए जाते. अगर किसान अपने खर्चे पर इन गट्ठों को उठवाए तो प्रति एकड़ 1 से 2 हजार रुपये और खर्च करने होंगे.

ये भी पढ़ें- यमुनानगर में जलाई जा रही पराली, किसान बोले- 'क्या करें, हम मजबूर हैं'

अप्लाई करने पर भी नहीं मिली मशीन- किसान

ऐसे में किसान करें, तो करे क्या? पराली का सरकारी निपटान करे तो कंगाल हो जाए और जला दे तो जेल जाए. कानून सजा का प्रावधान तो हो गया, लेकिन पराली की समस्या का समाधान नहीं हुआ. किसान आज भी परेशान है. किसानों का कहना है कि सरकार कह देती है कि मशीनें दे रही है, लेकिन किसानों को बार-बार अप्लाई करने पर भी नहीं मिलती. फसल का भी सही दाम नहीं मिला, उपर से अब पराली निपटाने के लिए खर्च करें. ये सोचने वाली बात है कि किसान इतना खर्च कैसे करे.

इन मशीनों को कोई भविष्य नहीं- मशीन मालिक

किसान अर्शदीप ने पराली से गट्ठे बनाने की मशीन ली है, वो खेतों में गट्ठे बना रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि इस मशीन का कोई भविष्य नहीं है. सरकार उन्हें समय पर सब्सिडी नहीं दे रही है, वहीं पराली भेजने के बाद प्लांट से भी पेमेंट नहीं मिल रही, नुकसान सिर्फ किसान का हो रहा है.

पराली किसानों के लिए आफत बन चुकी है. सरकारी तरीके से निपटान करें तो जेब खाली हो जाती है. अगली फसल की बुआई करनी है, इसलिए खेत में छोड़ भी नहीं सकते. ऐसे में किसान अभी भी दुविधा में हैं और सरकार से एक बेहतर विकल्प की मांग कर रहे हैं.

ये पढ़ें- पराली जलाने पर फतेहाबाद में एक महिला समेत 21 किसानों पर केस दर्ज

कैथल: फसल कटाई के बाद पूरे उत्तर भारत में पराली देश की सबसे बड़ी समस्या बन जाती है. पिछले एक दशक में इस सीजन में पराली जलने से हवा में कॉर्बन डाइऑक्साइड, पीएम 10, पीएम 2.5 और अन्य गैस हवा में घुल जाती है. ये गैस और कण इंसान की सेहत के लिए खतरनाक होते हैं. पिछले एक दशक से पराली को लेकर सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी और केंद्र सरकार गंभीर है.

कैथल में पराली प्रबंधन के लिए 6000 मशीन

सरकार ने पराली प्रबंधन के लिए गंभीरता से काम किया. पराली के वैकल्पिक इस्तेमाल के लिए तरीके खोजे गए. इस पराली को बिजली बॉयलर में जलाने के लिए इस्तेमाल होने लगा और खेतों से पराली उठाने के लिए विशेष मशीनें हर जिले में भेजे गए. जिसको लेकर किसानों को जागरुक किया जा रहा है. कैथल के कृषि उपनिदेशक ने बताया कि उनके जिले में मशीनें आ चुकी हैं, और पराली का सही से प्रबंधन किया जा रहा है.

लचर पराली प्रबंधन से किसान हुए परेशान, देखिए रिपोर्ट

प्रति एकड़ होता है 1000 से 1500 रुपये खर्च

कैथल उपनिदेशक ने बताया कि पराली से निपटने के लिए रास्ता तो ढूंड लिया गया है, लेकिन ये तरीका काफी मंहगा है. किसानों को मशीनों से पराली के गट्ठे बनाने के लिए एक एकड़ पर 1000 से 1500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. समस्या यहीं तक नहीं है. गट्ठे बनाने के बाद पराली खरीद प्रक्रिया भी काफी लचर है, खेत से ये गट्ठे भी नहीं उठाए जाते. अगर किसान अपने खर्चे पर इन गट्ठों को उठवाए तो प्रति एकड़ 1 से 2 हजार रुपये और खर्च करने होंगे.

ये भी पढ़ें- यमुनानगर में जलाई जा रही पराली, किसान बोले- 'क्या करें, हम मजबूर हैं'

अप्लाई करने पर भी नहीं मिली मशीन- किसान

ऐसे में किसान करें, तो करे क्या? पराली का सरकारी निपटान करे तो कंगाल हो जाए और जला दे तो जेल जाए. कानून सजा का प्रावधान तो हो गया, लेकिन पराली की समस्या का समाधान नहीं हुआ. किसान आज भी परेशान है. किसानों का कहना है कि सरकार कह देती है कि मशीनें दे रही है, लेकिन किसानों को बार-बार अप्लाई करने पर भी नहीं मिलती. फसल का भी सही दाम नहीं मिला, उपर से अब पराली निपटाने के लिए खर्च करें. ये सोचने वाली बात है कि किसान इतना खर्च कैसे करे.

इन मशीनों को कोई भविष्य नहीं- मशीन मालिक

किसान अर्शदीप ने पराली से गट्ठे बनाने की मशीन ली है, वो खेतों में गट्ठे बना रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि इस मशीन का कोई भविष्य नहीं है. सरकार उन्हें समय पर सब्सिडी नहीं दे रही है, वहीं पराली भेजने के बाद प्लांट से भी पेमेंट नहीं मिल रही, नुकसान सिर्फ किसान का हो रहा है.

पराली किसानों के लिए आफत बन चुकी है. सरकारी तरीके से निपटान करें तो जेब खाली हो जाती है. अगली फसल की बुआई करनी है, इसलिए खेत में छोड़ भी नहीं सकते. ऐसे में किसान अभी भी दुविधा में हैं और सरकार से एक बेहतर विकल्प की मांग कर रहे हैं.

ये पढ़ें- पराली जलाने पर फतेहाबाद में एक महिला समेत 21 किसानों पर केस दर्ज

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.