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सरसों की फसल में बढ़ रही तना गलन व सफेद रतुआ की बीमारी, कैसे करें रोकथाम, जानिए क्या है एक्सपर्ट की राय - haryana news in hindi

इस मौसम में सरसों की फसल में दो तरीके की बीमारियां (diseases in mustard crop) अधिक देखने को मिलती है. पहली तना गलन और दूसरी सफेद रतुआ. इन बीमारियों से बचने और बीमारियों की पहचान करने के लिए हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक द्वारा बताये गए उपायों को प्रयोग में लाकर फसल का नुकसान होने से बचाया जा सकता है. पढ़ें रिपोर्ट

mustard crop protection from diseases
इन लक्षणों से पहचान सकते है सरसों की फसल में बीमारियां, तना गलन से बचाव जानने के लिए पढ़ें रिपोर्ट
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Published : Jan 17, 2022, 7:57 PM IST

हिसार: हरियाणा, पंजाब तथा राजस्थान में बड़े स्तर पर सरसों की खेती की जाती है. लेकिन पिछले कुछ दिनों में मौसम के प्रभाव के चलते सरसों की फसल में बीमारियां (diseases in mustard crop) देखने को मिल रही है. सरसों की फसल में पिछले कई सालों से मुख्य तौर पर इस समय दो बीमारियां फैलती हैं. पहली तना गलन (stem rot) व दूसरी सफेद रतुआ (white rust) है. ऐसे में किसानों को सचेत रहने की जरूरत है. वे फसल का नियमित निरीक्षण करते रहें.

साथ ही हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा सिफारिश किए गए उपचार कर नुकसान से बच सकते हैं.हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के तिलहन विभाग में वैज्ञानिक व सरसों की फसल के एक्सपर्ट डॉ. राकेश पूनिया ने बताया कि इस समय सरसों की फसल में इन बीमारियों के लिए अनुकूल मौसम बना हुआ है. इसलिए किसान निम्न लक्षणों से इन बीमारियों की पहचान कर सकते हैं और उपचार करके अपनी फसल में नुकसान होने से (mustard crop protection from diseases) बचा सकते हैं.

सरसों की फसल में बढ़ रही तना गलन व सफेद रतुआ की बीमारी, कैसे करें रोकथाम, जानिए क्या है एक्सपर्ट की राय

व्हाइट रस्ट- जिसे हिंदी में सफेद रतुआ कहते हैं. सरसों में फंगस के कारण होने वाली बीमारी है. इसके लक्षण आरंभ में पत्तों पर नजर आते हैं. पत्तों के निचले भाग में सफेद धब्बे से दिखाई देते हैं तथा सफेद पाउडर सा बन जाता है. प्रकोप बढ़ने पर यह पत्तों के बाद तने से होती हुई फलियों तक पहुंच जाती हैं. यह अंतिम स्टेज होती है जो हानिकारक होती है. फलियों में पहुंचने के बाद यह टहनी की बढ़वार को रोक देती है तथा टहनी मोर पंजे का आकार ले लेती है. इससे फलियां बननी बंद हो जाती हैं. वहीं पत्तों व तने पर कमजोरी की वजह से पौधे की खुराक कम होती जाती है. इससे फसल की पैदावार पर बहुत ज्यादा असर होता है.

सफेद रतुआ से बचाव के उपाय

सफेद रतुआ के लक्षण नजर आते ही 600 से 800 ग्राम मैनकोजेब (डाईथेन-M45) को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें. 15 दिन बाद फिर से इसी मात्रा में फसल के अंदर स्प्रे करें. ऐसा दो से तीन बार करना जरूरी है.

mustard crop protection from diseases
पत्ते पर लगा सफेद रतुआ

तना गलन- सरसों की फसल पर लगने वाला यह रोग सबसे ज्यादा खतरनाक है. यह भूमि व बीज से उगने वाला रोग है. इस रोग के लक्षण में सबसे पहले किसानों को यह ध्यान देने की जरूरत है कि यह हवा से ज्यादा फैलता है और सबसे पहले पत्तों पर गोलाकार सफेद धब्बे बन जाते हैं. फिर जैसे ही यह बीमारी बढ़ती है तो यह पत्तियों से तने पर आ जाती है. तने पर सफेद रंग की फफूंद दिखाई देती है और जब यह तने को पूरी तरह से कवर कर लेती है तो तना टूट जाता है और पौधा मुरझा कर सूख जाता है. जिससे फसल पर बेहद ज्यादा प्रभाव पड़ता है.

ये भी पढ़ें- दक्षिण हरियाणा के किसानों ने धान की जगह इस फसल की खेती पर दिया जोर, बढ़ी कमाई

हर साल कैसे आती है यह बीमारी

जब तना गलन बीमारी पूरी तरह से फैल जाती है तो इसके अंदर काले रंग के पिन बन जाते हैं. इन दोनों को सक्लोरोसिया बोलते हैं. फसल कटाई के बाद यह दाने जमीन में गिर जाते हैं या फिर तने के अंदर चले जाते हैं. इसकी वजह से अगली बार जब मौसम बीमारी के अनुकूल होता है तो फिर से यह जमीन में जर्मीनेट (पैदा) हो जाते हैं और फसल पर प्रभाव डालना शुरू कर देते हैं. यह बीमारी एक खेत से दूसरे खेत में हवा के द्वारा भी फैलती है.

तना गलन से बचाव के उपाय

तना गलन की रोकथाम के लिए डॉ. राकेश पूनिया ने बताया कि बिजाई के 45 से 50 दिन बाद कार्बेन्डाजिम (बविस्टीन), 1 ग्राम दवाई प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें, यानी अगर 200 लीटर पानी लगता है तो दवाई 200ml होनी चाहिए. वहीं पहले छिड़काव के 15 दिन बाद फिर यह छिड़काव करना चाहिए. इस तरीके से इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है. वहीं एतिहातन तौर पर किसानों को बिजाई से पहले इसी दवाई के साथ 1 किलो बीज में 2 ग्राम के हिसाब से बीज उपचार भी करना चाहिए.

mustard crop protection from diseases
तना गलन से नष्ट हुई फसल

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन के दौरान इस फसल की खेती कर किसान बना लखपति

सरसों की फसल में आने वाली बीमारियों को लेकर डॉ. राकेश पूनिया ने बताया कि इन बीमारियों की वजह से पौधे का विकास रूक जाता है. जैसे ही फलियां बननी शुरू होती हैं, तो पौधा बीच में से टूट जाता है या फिर कमजोरी के कारण सिकुड़ जाता है. इस वजह से किसानों की फसल पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है और पैदावार बहुत कम होती है. इस तरह की बीमारियां ज्यादातर किसानों की जमीन से ही फैलती है. क्योंकि पिछली बार फैली उस बीमारी का जो अंश जमीन में बच जाता है. अगली बार फिर वह फसल में फैलने लगता है. तना गलन से फसल बचाने के लिए किसानों को सबसे पहले बीज उपचार करना जरूरी होता है. इससे जमीन में पड़े बीमारी के अंश (स्क्लोरोसिया) को खत्म कर देता है. वही सफेद रतुआ के लिए लक्षण दिखते ही स्प्रे करना जरूरी होता है.

हरियाणा में देश की 13 फीसदी सरसों की पैदावार

हरियाणा में इस साल रबी मौसम में 7.6 लाख हेक्टेयर (करीब 19 लाख एकड़) में सरसों की फसल की बिजाई की गई है. वहीं पिछले साल 2020-21 में 6.1 लाख हेक्टेयर (करीब 15 लाख एकड़) में बोई गई थी. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक हरियाणा में देश का 13 फीसदी से अधिक सरसों पैदा होता है. वहीं इस बार सरसों का फसल का भाव एमएसपी से बेहद ज्यादा होने की वजह से अधिक क्षेत्र में बिजाई की गई है. हालांकि सरसों की फसल में यह बीमारी हर साल देखी जाती है. लेकिन इस समय में मौसम इस बीमारियों के अनुकूल होने के चलते ज्यादा फैलाव हो रहा है.

ये भी पढ़ें- पारंपरिक खेती छोड़ किसानों ने चुनी फूलों की खेती, अब हर महीने कमा रहे हैं लाखों रुपये

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हिसार: हरियाणा, पंजाब तथा राजस्थान में बड़े स्तर पर सरसों की खेती की जाती है. लेकिन पिछले कुछ दिनों में मौसम के प्रभाव के चलते सरसों की फसल में बीमारियां (diseases in mustard crop) देखने को मिल रही है. सरसों की फसल में पिछले कई सालों से मुख्य तौर पर इस समय दो बीमारियां फैलती हैं. पहली तना गलन (stem rot) व दूसरी सफेद रतुआ (white rust) है. ऐसे में किसानों को सचेत रहने की जरूरत है. वे फसल का नियमित निरीक्षण करते रहें.

साथ ही हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा सिफारिश किए गए उपचार कर नुकसान से बच सकते हैं.हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के तिलहन विभाग में वैज्ञानिक व सरसों की फसल के एक्सपर्ट डॉ. राकेश पूनिया ने बताया कि इस समय सरसों की फसल में इन बीमारियों के लिए अनुकूल मौसम बना हुआ है. इसलिए किसान निम्न लक्षणों से इन बीमारियों की पहचान कर सकते हैं और उपचार करके अपनी फसल में नुकसान होने से (mustard crop protection from diseases) बचा सकते हैं.

सरसों की फसल में बढ़ रही तना गलन व सफेद रतुआ की बीमारी, कैसे करें रोकथाम, जानिए क्या है एक्सपर्ट की राय

व्हाइट रस्ट- जिसे हिंदी में सफेद रतुआ कहते हैं. सरसों में फंगस के कारण होने वाली बीमारी है. इसके लक्षण आरंभ में पत्तों पर नजर आते हैं. पत्तों के निचले भाग में सफेद धब्बे से दिखाई देते हैं तथा सफेद पाउडर सा बन जाता है. प्रकोप बढ़ने पर यह पत्तों के बाद तने से होती हुई फलियों तक पहुंच जाती हैं. यह अंतिम स्टेज होती है जो हानिकारक होती है. फलियों में पहुंचने के बाद यह टहनी की बढ़वार को रोक देती है तथा टहनी मोर पंजे का आकार ले लेती है. इससे फलियां बननी बंद हो जाती हैं. वहीं पत्तों व तने पर कमजोरी की वजह से पौधे की खुराक कम होती जाती है. इससे फसल की पैदावार पर बहुत ज्यादा असर होता है.

सफेद रतुआ से बचाव के उपाय

सफेद रतुआ के लक्षण नजर आते ही 600 से 800 ग्राम मैनकोजेब (डाईथेन-M45) को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें. 15 दिन बाद फिर से इसी मात्रा में फसल के अंदर स्प्रे करें. ऐसा दो से तीन बार करना जरूरी है.

mustard crop protection from diseases
पत्ते पर लगा सफेद रतुआ

तना गलन- सरसों की फसल पर लगने वाला यह रोग सबसे ज्यादा खतरनाक है. यह भूमि व बीज से उगने वाला रोग है. इस रोग के लक्षण में सबसे पहले किसानों को यह ध्यान देने की जरूरत है कि यह हवा से ज्यादा फैलता है और सबसे पहले पत्तों पर गोलाकार सफेद धब्बे बन जाते हैं. फिर जैसे ही यह बीमारी बढ़ती है तो यह पत्तियों से तने पर आ जाती है. तने पर सफेद रंग की फफूंद दिखाई देती है और जब यह तने को पूरी तरह से कवर कर लेती है तो तना टूट जाता है और पौधा मुरझा कर सूख जाता है. जिससे फसल पर बेहद ज्यादा प्रभाव पड़ता है.

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हर साल कैसे आती है यह बीमारी

जब तना गलन बीमारी पूरी तरह से फैल जाती है तो इसके अंदर काले रंग के पिन बन जाते हैं. इन दोनों को सक्लोरोसिया बोलते हैं. फसल कटाई के बाद यह दाने जमीन में गिर जाते हैं या फिर तने के अंदर चले जाते हैं. इसकी वजह से अगली बार जब मौसम बीमारी के अनुकूल होता है तो फिर से यह जमीन में जर्मीनेट (पैदा) हो जाते हैं और फसल पर प्रभाव डालना शुरू कर देते हैं. यह बीमारी एक खेत से दूसरे खेत में हवा के द्वारा भी फैलती है.

तना गलन से बचाव के उपाय

तना गलन की रोकथाम के लिए डॉ. राकेश पूनिया ने बताया कि बिजाई के 45 से 50 दिन बाद कार्बेन्डाजिम (बविस्टीन), 1 ग्राम दवाई प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें, यानी अगर 200 लीटर पानी लगता है तो दवाई 200ml होनी चाहिए. वहीं पहले छिड़काव के 15 दिन बाद फिर यह छिड़काव करना चाहिए. इस तरीके से इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है. वहीं एतिहातन तौर पर किसानों को बिजाई से पहले इसी दवाई के साथ 1 किलो बीज में 2 ग्राम के हिसाब से बीज उपचार भी करना चाहिए.

mustard crop protection from diseases
तना गलन से नष्ट हुई फसल

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन के दौरान इस फसल की खेती कर किसान बना लखपति

सरसों की फसल में आने वाली बीमारियों को लेकर डॉ. राकेश पूनिया ने बताया कि इन बीमारियों की वजह से पौधे का विकास रूक जाता है. जैसे ही फलियां बननी शुरू होती हैं, तो पौधा बीच में से टूट जाता है या फिर कमजोरी के कारण सिकुड़ जाता है. इस वजह से किसानों की फसल पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है और पैदावार बहुत कम होती है. इस तरह की बीमारियां ज्यादातर किसानों की जमीन से ही फैलती है. क्योंकि पिछली बार फैली उस बीमारी का जो अंश जमीन में बच जाता है. अगली बार फिर वह फसल में फैलने लगता है. तना गलन से फसल बचाने के लिए किसानों को सबसे पहले बीज उपचार करना जरूरी होता है. इससे जमीन में पड़े बीमारी के अंश (स्क्लोरोसिया) को खत्म कर देता है. वही सफेद रतुआ के लिए लक्षण दिखते ही स्प्रे करना जरूरी होता है.

हरियाणा में देश की 13 फीसदी सरसों की पैदावार

हरियाणा में इस साल रबी मौसम में 7.6 लाख हेक्टेयर (करीब 19 लाख एकड़) में सरसों की फसल की बिजाई की गई है. वहीं पिछले साल 2020-21 में 6.1 लाख हेक्टेयर (करीब 15 लाख एकड़) में बोई गई थी. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक हरियाणा में देश का 13 फीसदी से अधिक सरसों पैदा होता है. वहीं इस बार सरसों का फसल का भाव एमएसपी से बेहद ज्यादा होने की वजह से अधिक क्षेत्र में बिजाई की गई है. हालांकि सरसों की फसल में यह बीमारी हर साल देखी जाती है. लेकिन इस समय में मौसम इस बीमारियों के अनुकूल होने के चलते ज्यादा फैलाव हो रहा है.

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