हिसार: हरियाणा और पंजाब में बड़े स्तर पर गेहूं की खेती (Wheat Cultivation in Haryana) की जाती है. गेहूं की फसल में अब बालियां आने को हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों में मौसम के प्रभाव की वजह से इस तरह की परिस्थितियां बनी हुई हैं कि गेहूं की फसल में नुकसान होने की संभावना है. ऐसे में किसानों को सचेत रहने की जरुरत है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गेहूं वैज्ञानिक डॉक्टर ओपी बिश्नोई ने ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत में किसानों को कई तरह की सलाह दी.
ओपी बिश्नोई ने कहा कि भारत में लगभग 29.8 मिलयन हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की खेती होती है, भारत में हरियाणा गेहूं उत्पादन के प्रमुख राज्यों में शामिल है, पूरे देश का करीब 13.20% गेहूं हरियाणा में पैदा होता है. छोटा प्रदेश होने के बावजूद भी प्रति हैक्टेयर सबसे ज्यादा पैदावार के मामले में हरियाणा दूसरे नंबर पर है. भारत में धान के बाद गेहूं भारत की सबसे महत्वपूर्ण फसल है और खास तौर पर भारत के उत्तर और उत्तरी पश्चिमी राज्यों में इसका उत्पादन होता है.
फिलहाल इस समय गेहूं की अगेती फसल पर बालियां आ चुकी हैं और सामान्य बिजाई पर आने वाले सप्ताह में बालियां आ जाएंगी, इस मौसम में गेहूं की फसल को लेकर गेहूं विशेषज्ञ डॉक्टर ओपी बिश्नोई ने बताया कि लगभग सभी गेहूं के किसान फसल में चार पानी दे चुके हैं, बलिया आने के बाद गेहूं की फसल को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत है और ऐसे में किसानों को पानी देते समय हवा का जरूर ध्यान रखना चाहिए.
उन्होंने कहा कि अगेती फसल में बालियां आने के बाद हल्का पानी दे, जिससे हवाओं की वजह से गिरने का खतरा कम रहता है. फसल में बीमारियों को लेकर डॉक्टर ओपी बिश्नोई ने कहा कि किसान फसल का नियमित निरीक्षण करते रहें. सबसे पहले किसी भी बीमारी के लक्षण बाउंड्री के नजदीक वाले पौधों पर दिखाई देते हैं, असामान्य लक्षण दिखाई देने पर अपने नजदीकी किसान सेवा केंद्र पर सलाह लेकर हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा सिफारिश किए गए उपचार कर नुकसान से बच सकते हैं.
डॉक्टर ओपी बिश्नोई ने कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (Haryana Agricultural University) द्वारा समय-समय पर किसानों को सलाह भी दी जाती है कि किसान रोगग्राही किस्मों जैसे एचडी 2851, एचडी 2967, 343 किस्म, इन किस्मों में बीमारियां ज्यादा आती हैं. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा समय-समय पर किसानों को जागरूक भी किया जाता है कि इन किस्मों की बिजाई ना करें. फिर भी अगर किसी किसान ने ऐसी किस्म बोई है तो निरंतर फसलों का अवलोकन करते रहें और कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए उपचार करें.
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