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भारत-चीन विवाद का रक्षाबंधन पर पड़ा असर, चाइनीज राखी की डिमांड में 50% गिरावट

कोरोना महामारी के कारण इस बार का रक्षाबंधन पहले की अपेक्षा फीका नजर आ रहा है. बाजारों में ना तो ज्यादा राखी की दुकानें लगी हैं और ना ही खरीदारों की चहल-पहल दिख रही है. वहीं भारत-चीन विवाद का असर भी इस बार रक्षाबंधन पर साफ-साफ देखा जा रहा है जहां लोगों ने चीनी सामानों के साथ-साथ चीनी राखियों का भी बहिष्कार करना शुरू कर दिया है.

india china relation effect on rakshabandhan
india china relation effect on rakshabandhan
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Published : Jul 30, 2020, 9:18 PM IST

Updated : Jul 31, 2020, 9:07 PM IST

गुरुग्रामः सावन का महीना आते ही बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिए तैयारियां शुरु कर देती हैं. इस पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और राष्टीय महत्व है. इसे श्रावण पूर्णिमा के दिन उत्साह पूर्वक मनाया जाता है. भाई को इस बार कैसी राखी बांधनी है. कौन-से रंग की राखी लेनी है. लाइट वाली, गुड्डे वाली या रेशमी. बहनें इसकी तैयारी हफ्तों पहले से शुरु कर देती हैं. लेकिन रक्षाबंधन पर इस साल बाजार की त्योहारी रौनक कोरोना की भेंट चढ़ चुकी है. पहले जहां बाजार रंग-बिरंगी राखियों से सज जाता था तो वहीं इस बार बाजार से रौनक गायब है.

बाजारों से गायब रौनक

भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन त्यौहार पर इस बार कोरोना महामारी का असर साफ दिखाई दे रहा है. रक्षाबंधन के त्यौहार में सिर्फ कुछ ही दिन बचे हैं लेकिन बाजार में रौनक नहीं दिख रही है. पिछले साल तक राखी के मौके पर महीने भर पहले रंग-बिरंगी राखियों में बाजार सज जाता था, लेकिन इस बार बाजार में कोई रौनक नहीं दिख रही है. इसकी एक बड़ी वजह चाइना से बंद आयात भी है.

भारत-चीन विवाद का रक्षाबंधन पर पड़ा असर, चाइनीज राखी की डिमांड में 50 प्रतिशत गिरावट

चीनी राखी का बहिष्कार

यूं तो सभी त्यौहारों पर कोरोना का असर पड़ा है. लेकिन राखी पर कोरोना के अलावा भारत-चीन विवाद का भी असर साफ देखा जा सकता है. क्योंकि राखियों का व्यापार चीन से काफी होता था जो इस बार कम हो गया है क्योंकि चीन विवाद के चलते देश के लोग चीनी राखी नहीं खरीदना चाहते. दुकानदार भी इस बार चाइनीज राखी से बच रहे हैं.

'चीन को पछाड़ना है'

गुरुग्राम में राखी विक्रेताओं का कहना है कि वो इस बार चाइनीज राखियां नहीं बेच रहे हैं. उनका कहना है कि वो भारतीय राखियों को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि हर क्षेत्र में स्वदेशी सामानों का आगे ले जाया जा सके और चीन को पछाड़ा जा सके. यही वजह है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल चाइनीज राखी की डिमांड में 50 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है.

ये भी पढ़ेंः बकरा व्यापारियों के माथे पर चिंता की लकीरें, कैसे मनेगा त्योहार ?

घरेलू बाजार में भी गिरावट

पिछले कुछ वक्त में तेल के रेट बढ़े हैं और लॉकडाउन की वजह से भी ट्रांसपोर्ट महंगा हुआ है. जिसकी वजह से कई जगहों पर राखी की कीमतों में उछाल आया है. इसीलिए लोग महंगी राखी खरीदने से बच रहे हैं. इसके अलावा कोरोना इफेक्ट की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण देश में भी राखियों की सप्लाई नहीं हो पाई है. जिसके चलते घरेलू बाजारों में भी राखी की बिक्री में करीब 30 फीसदी की गिरावट आई है.

पुरुष खरीद रहे हैं राखियां

कोरोना के कहर के चलते महिलाएं राखी खरीदने के लिए घर से बाहर निकलने से कतरा रही हैं. गुरुग्राम में राखी विक्रेताओं का कहना है कि बाजारों का आलम ये है कि पहले जहां महिलाएं ग्रुप में राखियां खरीदने आती थी तो वहीं इस बार पुरुष ही राखी खरीदने आ रहे हैं. जिसके कारण बाजारों में ना तो रौनक है और ना ही त्यौहार का उत्साह और यही एक बड़ा कारण है त्यौहार पर सूने पड़े इस बाजार के पीछे का.

लोकल के लिए वोकल

चीन से तनाव के बाद जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की बात कही थी उसपर कहीं ना कहीं लोगों ने भी काम करना शुरु कर दिया है. लोकल के लिए वोकल बनने का ताजा उदाहरण रक्षाबंधन में ही देखने को मिल रहा है. जहां दुकानदार नुकसान उठाकर भी स्वदेशी राखियों को बढ़ावा दे रहे हैं. ये एक अच्छी पहल है जिससे भारतीय बाजार को भी बढ़ावा मिलेगा और आत्मनिर्भर भारत का सपना भी सच होगा.

गुरुग्रामः सावन का महीना आते ही बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिए तैयारियां शुरु कर देती हैं. इस पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और राष्टीय महत्व है. इसे श्रावण पूर्णिमा के दिन उत्साह पूर्वक मनाया जाता है. भाई को इस बार कैसी राखी बांधनी है. कौन-से रंग की राखी लेनी है. लाइट वाली, गुड्डे वाली या रेशमी. बहनें इसकी तैयारी हफ्तों पहले से शुरु कर देती हैं. लेकिन रक्षाबंधन पर इस साल बाजार की त्योहारी रौनक कोरोना की भेंट चढ़ चुकी है. पहले जहां बाजार रंग-बिरंगी राखियों से सज जाता था तो वहीं इस बार बाजार से रौनक गायब है.

बाजारों से गायब रौनक

भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन त्यौहार पर इस बार कोरोना महामारी का असर साफ दिखाई दे रहा है. रक्षाबंधन के त्यौहार में सिर्फ कुछ ही दिन बचे हैं लेकिन बाजार में रौनक नहीं दिख रही है. पिछले साल तक राखी के मौके पर महीने भर पहले रंग-बिरंगी राखियों में बाजार सज जाता था, लेकिन इस बार बाजार में कोई रौनक नहीं दिख रही है. इसकी एक बड़ी वजह चाइना से बंद आयात भी है.

भारत-चीन विवाद का रक्षाबंधन पर पड़ा असर, चाइनीज राखी की डिमांड में 50 प्रतिशत गिरावट

चीनी राखी का बहिष्कार

यूं तो सभी त्यौहारों पर कोरोना का असर पड़ा है. लेकिन राखी पर कोरोना के अलावा भारत-चीन विवाद का भी असर साफ देखा जा सकता है. क्योंकि राखियों का व्यापार चीन से काफी होता था जो इस बार कम हो गया है क्योंकि चीन विवाद के चलते देश के लोग चीनी राखी नहीं खरीदना चाहते. दुकानदार भी इस बार चाइनीज राखी से बच रहे हैं.

'चीन को पछाड़ना है'

गुरुग्राम में राखी विक्रेताओं का कहना है कि वो इस बार चाइनीज राखियां नहीं बेच रहे हैं. उनका कहना है कि वो भारतीय राखियों को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि हर क्षेत्र में स्वदेशी सामानों का आगे ले जाया जा सके और चीन को पछाड़ा जा सके. यही वजह है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल चाइनीज राखी की डिमांड में 50 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है.

ये भी पढ़ेंः बकरा व्यापारियों के माथे पर चिंता की लकीरें, कैसे मनेगा त्योहार ?

घरेलू बाजार में भी गिरावट

पिछले कुछ वक्त में तेल के रेट बढ़े हैं और लॉकडाउन की वजह से भी ट्रांसपोर्ट महंगा हुआ है. जिसकी वजह से कई जगहों पर राखी की कीमतों में उछाल आया है. इसीलिए लोग महंगी राखी खरीदने से बच रहे हैं. इसके अलावा कोरोना इफेक्ट की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण देश में भी राखियों की सप्लाई नहीं हो पाई है. जिसके चलते घरेलू बाजारों में भी राखी की बिक्री में करीब 30 फीसदी की गिरावट आई है.

पुरुष खरीद रहे हैं राखियां

कोरोना के कहर के चलते महिलाएं राखी खरीदने के लिए घर से बाहर निकलने से कतरा रही हैं. गुरुग्राम में राखी विक्रेताओं का कहना है कि बाजारों का आलम ये है कि पहले जहां महिलाएं ग्रुप में राखियां खरीदने आती थी तो वहीं इस बार पुरुष ही राखी खरीदने आ रहे हैं. जिसके कारण बाजारों में ना तो रौनक है और ना ही त्यौहार का उत्साह और यही एक बड़ा कारण है त्यौहार पर सूने पड़े इस बाजार के पीछे का.

लोकल के लिए वोकल

चीन से तनाव के बाद जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की बात कही थी उसपर कहीं ना कहीं लोगों ने भी काम करना शुरु कर दिया है. लोकल के लिए वोकल बनने का ताजा उदाहरण रक्षाबंधन में ही देखने को मिल रहा है. जहां दुकानदार नुकसान उठाकर भी स्वदेशी राखियों को बढ़ावा दे रहे हैं. ये एक अच्छी पहल है जिससे भारतीय बाजार को भी बढ़ावा मिलेगा और आत्मनिर्भर भारत का सपना भी सच होगा.

Last Updated : Jul 31, 2020, 9:07 PM IST
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