फतेहाबाद: हरियाणा में ई टेंडरिंग के बाद सरकार के एक और फैसले से सरपंच नाराज हो गये हैं. सरपंचों का आरोप है कि सरकार लगातार उनकी शक्तियों को छीनने में लगी है. इसके खिलाफ 9 जुलाई को पानीपत में सरपंचों ने बैठक बुलाई है. सरपंच एसोसिएशन एक साथ काम छोड़ने का ऐलान भी कर सकता है. हरियाणा सरपंच एसोसिएशन ने गुरुवार को प्रेस वार्ता कर सरकार को चेतावनी दी है. एसोसिएशन ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार इस तरह के नियम बनाकर पंचायतों का पैसा हड़पना चाहती है.
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गुरुवार को हरियाणा सरपंच एसोसिएशन के प्रदेश प्रवक्ता एवं भट्टूकलां ब्लॉक सरपंच एसोसिएशन के प्रधान चंद्रमोहन पोटलिया ने कहा कि सरकार बार-बार पंचायती राज अधिनियम में बदलाव करके ग्रामीण, किसान व सरपंचों के हाथ बांधने का काम कर रही है. उन्होंने कहा कि हाल ही में सरकार ने 6 जून को जो आदेश जारी किए हैं, उसमें सरपंचों को 19 काम करने की अनुमति दी गई है. इनमें 12 काम तो ऐसे हैं, जो पांच साल में भी करवाने मुनासिब नहीं हैं.
9 जुलाई को पानीपत में सरपंचों की बैठक: उन्होंने कहा कि इसको लेकर वह 9 जुलाई को पानीपत में एक बड़ी बैठक करने जा रहे हैं. इसमें पूरे प्रदेश के सरपंच शामिल होंगे. इस मीटिंग में सामूहिक तौर पर काम छोड़ने का फैसला भी लिया जा सकता है. सरपंच अपना काम बीडीपीओ को सौंप देंगे. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि गांवों में स्वागत द्वार पहले लगाए गए हैं, अब सरकार कह रही है कि नए स्वागत द्वारा लगाए जाएं. लेकिन जब पहले से ही स्वागत द्वार बने हुए हैं, तो वह दोबारा कैसे बनाए जा सकते हैं.
'पंचायत का पैसा हड़पना चाहती है सरकार': इस दौरान पोटलिया ने कहा कि सरपंच फिरनियां नहीं बनवा सकते और ना ही अन्य काम करवा सकते हैं. गांवों में खेतों तक पानी पहुंचाने का काम सरपंच का होता है. उसे पता है कि कहां खाल बनवाना है और कहां पानी की व्यवस्था करनी है. लेकिन यह अधिकार भी सरकार ने सरपंचों से छीन लिया है. अब तो सरकार ने ग्रामीण आंचल को एक तरह से अनाथ बनाने का षड्यंत्र रचना आरंभ कर दिया है. विधायकों को गांवों में विकास की शक्ति देकर सरकार एक तरह से ग्रामीण भाईचारे को समाप्त करना चाहती है. उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा है कि पंचायत के द्वारा इकट्ठा होने वाला पैसा हजम किया जा सके.
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क्या है नए नियम: दरअसल. सरकार ने ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषदों को अलग-अलग विकास कार्य आवंटित कर दिए हैं. सरकार ने ग्राम पंचायतों को अब सिर्फ 19 काम करने तक ही सीमित कर दिया है. इसके अलावा पंचायत समिति को 7 और जिला परिषद को 13 विकास कार्य कराने के लिए अधिकृत किया गया है. आपको बता दें कि इस संबंध में विकास एवं पंचायत विभाग के महानिदेशक ने पत्र भी जारी कर दिया है.
सरपंच के पास 19 कार्य करने का अधिकार: नए फैसले के मुताबिक अब ग्राम पंचायतें अपने पास उपलब्ध फंड से मर्जी के अनुसार विकास कार्य नहीं करा सकेंगी. सिर्फ निर्धारित 19 विकास कार्य में से ही कार्य कराए जाएंगे. इसमें खास है ये है कि इन 19 कामों में ज्यादातर काम मरम्मत और देखरेख के ही हैं. इससे पहले ग्राम पंचायतों को अपनी जरूरत के अनुसार सभी प्रकार के विकास कार्य कराने का अधिकार था.
विकास कार्य में विधायक का होगा दखल: एक दिन पहले ही प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल ने पंचायत राज एक्ट 1995 में संशोधन किया है. इसके तहत अब पंचायतों द्वारा किए जाने वाले विकास कार्य में विधायक भी शामिल होगा. विकास कार्यों के लिए दिए गए सहायता फंड से सरकारी सिफारिश के अनुसार काम कराने होंगे. इसमें पंचायत अपनी मर्जी नहीं कर सकेगी. इसके अलावा सरकार ने गांव के आमजन को भी सिफारिश करने का अधिकार दिया है. यानी इसके लिए वह सरकार से विकास कार्य के लिए सिफारिश कर सकेगा. ये सिफारिश मान्य तब ही होगी यदि विकास कार्य सार्वजनिक हित का होगा. जिसके बाद सरकार पंचायत को सिफारिश भेजेगी और वो काम पंचायत को कराना होगा.
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ई टेंडरिंग से भी खफा है सरपंच: आपको बता दें कि पंचायतों में होने वाले कामों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार ने ई-टेंडरिंग प्रक्रिया बनाई है. इसके तहत 2 लाख रुपए से अधिक के कामों के लिए ई टेंडरिंग जारी की जाएगी. फिर अधिकारी ठेकेदार के द्वारा गांव का विकास कार्य करवाएंगे. इसमें सरपंच सरकार को विकास कार्यों के बारे में ब्योरा देना होगा. जिसके बाद सरकार ठेकेदार से ई टेंडरिंग के जरिए विकास कार्य करवाएगी. सरकार का दावा है कि इस प्रक्रिया से भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आएगी.
'ई टेंडरिंग में सरकार ने छीने सरपंच के अधिकार': सरपंच पहले से ही सरकार की इस ई-टेंडरिंग का विरोध करते आ रहे हैं. दरअसल, सरपंचों का मानना है कि ये स्कीम सरपंचों के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि ई-टेंडरिंग से गांव का अच्छे से विकास नहीं हो पाएगा. सरपंचों का कहना है कि गांव के विकास के लिए अगर सरपंच को पैसा सीधे तौर पर नहीं दिया तो ठेकेदार और अधिकारी अपनी मनमर्जी से गांव में कार्य करवाएंगे. जिसके चलते सरपंच गांव का विकास नहीं करवा पाएंगे.
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