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फरीदाबाद में फुटबॉल कोच बना ट्रक ड्राइवर, करीब 150 बच्चों को दे रहे फ्री ट्रेनिंग - football coach in faridabad

फरीदाबाद में एक ट्रक ड्राइवर फुटबॉल कोच (football coach in Faridabad) बनकर सभी के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गए हैं. इस ट्रक ड्राइवर का नाम है सलीम. सलीम आज किसी पहचान के मोहताज नहीं रहे हैं. सलीम आज लगभग 130 बच्चों को ट्रेनिंग दे रहे हैं.

truck driver become football coach in Faridabad
truck driver become football coach in Faridabad
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Published : Nov 20, 2022, 3:36 PM IST

फरीदाबाद: फरीदाबाद के बड़खल झील के किनारे सूखे पड़े मैदान में रोज शाम को आपको बच्चे और बड़े फुटबॉल प्रैक्टिस करते नजर आ जाएंगे और इन सब के बीच एक अधेड़ सा व्यक्ति कभी खिलाड़ियों को डांटते हुए, कभी खिलाड़ियों को फुटबॉल के गुण सिखाते हुए तो कभी ताली बजाकर हौसला अफजाई करते हुए नजर आएंगे. इनका नाम है सलीम. सलीम हर रोज शाम को जहां उन्हें जगह मिल जाए वहीं पर बच्चों को फुटबॉल के गुण सिखाते नजर आते हैं.

ट्रक ड्राइवर हैं सलीम: आपको जानकर हैरानी होगी कि सलीम कोई फुटबॉल कोच (football coach in Faridabad) नहीं बल्कि ट्रक ड्राइवर हैं. सलीम कभी स्कूल नहीं गए. कभी उन्होंने फुटबॉल का मैच नहीं खेला, लेकिन फिर भी वह बच्चों को फुटबॉल के गुण सिखा रहे हैं. आप भी सोच रहे होंगे कि सलीम कोई प्रोफेशनल फुटबॉलर नहीं हैं. फिर भी वह बच्चों को फुटबॉल सिखाते हैं.

फरीदाबाद में एक ट्रक ड्राइवर बना फुटबॉल कोच

जब स्कूल बैग की जगह संभाला ट्रक का स्टीयरिंग: बता दें कि सलीम बचपन से ही कुछ करना चाहते थे लेकिन परिवार की स्थिति इतनी ठीक नहीं थी कि सलीम कुछ कर पाते. यही वजह है कि वह स्कूल नहीं गए और उन्होंने स्कूल बैग की जगह ट्रक का स्टीयरिंग संभाल लिया. इसके बाद वह ट्रक ड्राइवर बन गए. जब सलीम के घर उनका पहला बेटा हुआ उस दौरान सलीम फुटबॉल मैच देख रहे थे, जिसमें इंडिया को करारी हार मिली थी. तब सलीम ने सोचा क्रिकेट में हम नंबर वन हैं, तो फुटबॉल में क्यों नहीं. तब उन्होंने अपने बेटों को फुटबॉलर बनाने का प्रण लिया.

130 के करीब बच्चे सीख रहे फुटबॉल के गुण: सलीम जब भी ट्रक चलाकर घर वापस लौटते तो वह यूट्यूब पर टीवी में फुटबॉल मैच को बड़े गौर से देखा करते थे. उनकी बारीकियों को सीखते थे और वहां से सीखे हुई बारीकियों को वह अपने बच्चों पर अप्लाई करते थे और यही वजह है कि आज सलीम के दोनों बेटे फुटबॉलर हैं. उनका बड़ा बेटा नदीम हरियाणा फुटबॉल का कप्तान रह चुका है. फिलहाल वह चोटिल है. वह घर पर रेस्ट कर रहे हैं. वहीं दूसरा बेटे का चयन अंडर-19 भारतीय फुटबॉल टीम में हुआ है. बता दें कि आज 130 से करीब बच्चे सलीम से फुटबॉल के गुण सीखे रहे हैं.

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जब स्कूल बैग की जगह संभाला ट्रक का स्टीयरिंग

आर्थिक स्थिति नहीं थी ठीक: सलीम ने बताया कि इंडियन क्रिकेट टीम बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है. वहीं फुटबॉल टीम का प्रदर्शन ठीक नहीं है और यही वजह है कि मैंने अपने बेटे को फुटबॉलर बनाने को सोचा. हालांकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिससे बेटे को बड़े क्लबों में दाखिला करवा सकूं. कई बार ऐसा भी हुआ कि बेटे का मैच रहता था और मुझे बेटे को लेकर जाना होता था लेकिन वहां जाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं होते थे.

जो पहले करते थे मना, आज वही करते हैं फोन: घर में ठीक से खाने पीने के लिए सही डाइट नहीं होता था. बच्चों के लिए प्रैक्टिस के लिए जूते नहीं होते थे. कई बार लोगों से उधार पैसे मांगकर देश के अलग-अलग हिस्सों में मैं अपने बेटे को लेकर गया. मेरे बेटा ट्रायल भी पास कर लेते थे, लेकिन पैसे की वजह से अपने बच्चे को उस क्लब में दाखिला नहीं करवा सका. कई बार तो मैंने कोच के सामने हाथ पैर जोड़े. उनसे विनती की कि मेरा बच्चा अच्छा खेलता है, आप इसको अपने क्लब की तरफ से प्रतिभाग कराएं. लेकिन सबने मना कर दिया. आज के दिन जिन लोगों ने मेरे बच्चों को लेने से मुझे मना कर दिया था, आज वही मुझे फोन करके कहते हैं कि आप अपने बच्चे को हमारे क्लब की तरफ से खिलाएं.

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130 के करीब बच्चे सीख रहे फुटबॉल के गुण

पीछे मुड़कर नहीं देखा: अब फुटबॉल कोच सलीम (truck driver become football coach) के पास से कई बच्चे अलग-अलग क्लबों के लिए खेल रहे हैं. सलीम चाहते हैं कि सरकार उन्हें फैसिलिटी दे ताकि आने वाले दिनों में भारत के लिए अच्छे खिलाड़ी तैयार कर सकें. सलीम के बड़े बेटे बताते हैं कि गरीबी में भी पापा ने कभी हौसला नहीं छोड़ा. पापा की मेहनत है कि आज हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं. प्रैक्टिस के लिए जूते नहीं होते थे, खाने के लिए पैसे नहीं होते थे, लोगों के ताने भी सुने लेकिन कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

फरीदाबाद: फरीदाबाद के बड़खल झील के किनारे सूखे पड़े मैदान में रोज शाम को आपको बच्चे और बड़े फुटबॉल प्रैक्टिस करते नजर आ जाएंगे और इन सब के बीच एक अधेड़ सा व्यक्ति कभी खिलाड़ियों को डांटते हुए, कभी खिलाड़ियों को फुटबॉल के गुण सिखाते हुए तो कभी ताली बजाकर हौसला अफजाई करते हुए नजर आएंगे. इनका नाम है सलीम. सलीम हर रोज शाम को जहां उन्हें जगह मिल जाए वहीं पर बच्चों को फुटबॉल के गुण सिखाते नजर आते हैं.

ट्रक ड्राइवर हैं सलीम: आपको जानकर हैरानी होगी कि सलीम कोई फुटबॉल कोच (football coach in Faridabad) नहीं बल्कि ट्रक ड्राइवर हैं. सलीम कभी स्कूल नहीं गए. कभी उन्होंने फुटबॉल का मैच नहीं खेला, लेकिन फिर भी वह बच्चों को फुटबॉल के गुण सिखा रहे हैं. आप भी सोच रहे होंगे कि सलीम कोई प्रोफेशनल फुटबॉलर नहीं हैं. फिर भी वह बच्चों को फुटबॉल सिखाते हैं.

फरीदाबाद में एक ट्रक ड्राइवर बना फुटबॉल कोच

जब स्कूल बैग की जगह संभाला ट्रक का स्टीयरिंग: बता दें कि सलीम बचपन से ही कुछ करना चाहते थे लेकिन परिवार की स्थिति इतनी ठीक नहीं थी कि सलीम कुछ कर पाते. यही वजह है कि वह स्कूल नहीं गए और उन्होंने स्कूल बैग की जगह ट्रक का स्टीयरिंग संभाल लिया. इसके बाद वह ट्रक ड्राइवर बन गए. जब सलीम के घर उनका पहला बेटा हुआ उस दौरान सलीम फुटबॉल मैच देख रहे थे, जिसमें इंडिया को करारी हार मिली थी. तब सलीम ने सोचा क्रिकेट में हम नंबर वन हैं, तो फुटबॉल में क्यों नहीं. तब उन्होंने अपने बेटों को फुटबॉलर बनाने का प्रण लिया.

130 के करीब बच्चे सीख रहे फुटबॉल के गुण: सलीम जब भी ट्रक चलाकर घर वापस लौटते तो वह यूट्यूब पर टीवी में फुटबॉल मैच को बड़े गौर से देखा करते थे. उनकी बारीकियों को सीखते थे और वहां से सीखे हुई बारीकियों को वह अपने बच्चों पर अप्लाई करते थे और यही वजह है कि आज सलीम के दोनों बेटे फुटबॉलर हैं. उनका बड़ा बेटा नदीम हरियाणा फुटबॉल का कप्तान रह चुका है. फिलहाल वह चोटिल है. वह घर पर रेस्ट कर रहे हैं. वहीं दूसरा बेटे का चयन अंडर-19 भारतीय फुटबॉल टीम में हुआ है. बता दें कि आज 130 से करीब बच्चे सलीम से फुटबॉल के गुण सीखे रहे हैं.

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जब स्कूल बैग की जगह संभाला ट्रक का स्टीयरिंग

आर्थिक स्थिति नहीं थी ठीक: सलीम ने बताया कि इंडियन क्रिकेट टीम बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है. वहीं फुटबॉल टीम का प्रदर्शन ठीक नहीं है और यही वजह है कि मैंने अपने बेटे को फुटबॉलर बनाने को सोचा. हालांकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिससे बेटे को बड़े क्लबों में दाखिला करवा सकूं. कई बार ऐसा भी हुआ कि बेटे का मैच रहता था और मुझे बेटे को लेकर जाना होता था लेकिन वहां जाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं होते थे.

जो पहले करते थे मना, आज वही करते हैं फोन: घर में ठीक से खाने पीने के लिए सही डाइट नहीं होता था. बच्चों के लिए प्रैक्टिस के लिए जूते नहीं होते थे. कई बार लोगों से उधार पैसे मांगकर देश के अलग-अलग हिस्सों में मैं अपने बेटे को लेकर गया. मेरे बेटा ट्रायल भी पास कर लेते थे, लेकिन पैसे की वजह से अपने बच्चे को उस क्लब में दाखिला नहीं करवा सका. कई बार तो मैंने कोच के सामने हाथ पैर जोड़े. उनसे विनती की कि मेरा बच्चा अच्छा खेलता है, आप इसको अपने क्लब की तरफ से प्रतिभाग कराएं. लेकिन सबने मना कर दिया. आज के दिन जिन लोगों ने मेरे बच्चों को लेने से मुझे मना कर दिया था, आज वही मुझे फोन करके कहते हैं कि आप अपने बच्चे को हमारे क्लब की तरफ से खिलाएं.

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130 के करीब बच्चे सीख रहे फुटबॉल के गुण

पीछे मुड़कर नहीं देखा: अब फुटबॉल कोच सलीम (truck driver become football coach) के पास से कई बच्चे अलग-अलग क्लबों के लिए खेल रहे हैं. सलीम चाहते हैं कि सरकार उन्हें फैसिलिटी दे ताकि आने वाले दिनों में भारत के लिए अच्छे खिलाड़ी तैयार कर सकें. सलीम के बड़े बेटे बताते हैं कि गरीबी में भी पापा ने कभी हौसला नहीं छोड़ा. पापा की मेहनत है कि आज हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं. प्रैक्टिस के लिए जूते नहीं होते थे, खाने के लिए पैसे नहीं होते थे, लोगों के ताने भी सुने लेकिन कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

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