फरीदाबाद: हिंदू धर्म में कई व्रत त्योहार आते हैं, इनकी सबकी अपनी-अपनी मान्यताएं हैं और हर व्रत व त्योहार को मनाने की अलग-अलग विधि विधान है. इसी कड़ी में आज हम जिक्र कर रहे हैं सीता नवमी यानि माता सीता की जयंती की. वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी मनाई जाती है. मान्यता यह है कि सीता नवमी को अगर महिलाएं माता-पिता की पूजा पूरे विधि विधान से करती हैं तो उनके परिवार में कभी भी किसी भी तरह का कष्ट, विकार, क्लेश नहीं आता है और वैवाहिक जीवन सुखमय बीतता है.
कहा जाता है कि महिलाएं अगर सीता नवमी के दिन माता सीता की पूजा विधि विधान से करती है तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. माता सीता और प्रभु राम की कृपा सदैव उन पर बरसती रहती है. सीता माता को लक्ष्मी का भी रूप माना जाता है और इसलिए इस व्रत को विधि विधान से करने पर धन की भी प्राप्ति होती है. जिस तरह से हर कठिनाइयों में माता सीता ने प्रभु श्री राम का साथ दिया, जब रावण का प्रभु श्री राम के साथ युद्ध हो रहा था.
उस दौरान माता सीता प्रभु श्रीराम के विजय के लिए प्रार्थना कर रही थी और इस लड़ाई में प्रभु श्रीराम की जीत हुई. इसीलिए महिलाएं अगर इस व्रत को करती हैं तो उनके पति को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. उनके वैवाहिक जीवन में कभी भी किसी तरह से कोई कठिनाइयां नहीं आती हैं और महिलाओं के पति को हर क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है.
सीता नवमी पर पूजा की विधि: इस बार सीता नवमी 29 अप्रैल को पूरे देश में मनाई जाएगी, नवमी तिथि 28 अप्रैल को शाम 4 बजकर 1 मिनट से शुरू होकर 29 अप्रैल शाम 6 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में 29 अप्रैल को सीता नवमी का व्रत आप रख सकते हैं. सबसे पहले सुबह उठकर साफ पानी में गंगा जल मिलाकर उससे आप स्नान कर लें. उसके बाद नए वस्त्र पहन कर मंदिर में जाकर राम और माता सीता की पूजा कर सकते हैं. अगर आप मंदिर ना जा सके तो घर में ही आप माता सीता और राम की मूर्ति को लाल कपड़े पर रखें.
उसके बाद उनके सामने देशी घी का दिया जलाकर, फल और मिठाई का प्रसाद चढ़ाए, इसके अलावा माता सीता को श्रृंगार का सामान भी चढ़ाएं. माता सीता का पाठ करें और उनकी आरती करें. शाम को भी माता सीता की आरती करके पूरा विधि विधान से माता का पाठ और पूजा करें. इसके बाद अगले दिन माता पर चढ़ाए हुए प्रसाद को घर के परिवारों में बांटे और माता पर चढ़ाए गए सिंगार का सामान किसी गरीब को दान कर दें. इससे माता सीता काफी प्रसन्न होती हैं और आप की मनोकामना को पूर्ण करती हैं.
सीता माता का जन्म कैसे हुआ: महंत मुनिराज बताते हैं कि मान्यताओं के अनुसार राजा जनक की नगरी में एक बार सूखा पड़ गया. जिस वजह से राजा बहुत चिंतित रहने लगे. इसी दौरान राजा ने अपने यहां ऋषि-मुनियों को बुलाया और कहा कि इस समस्याओं से कैसे निजात मिले. जिसके बाद ऋषि-मुनियों ने राजा जनक को कहा कि आपको खुद ही हल लेकर खेत को जोतना पड़ेगा. जिसके बाद यहां पर वर्षा होगी और सूखा दूर होगा.
पढ़ें : Shubh Vivah: शादी में सात नहीं चार फेरे ही हैं काफी, जानिए क्यों
ऋषि की बात सुनते ही राजा जनक हल लेकर खेत की ओर चल पड़े और खेत में हल से जोतना शुरू कर दिया. इसी दौरान राजा जनक को हल से कोई चीज टकराने का आभास हुआ. जिसके बाद वहां पर खोदा गया तो वहां पर एक सुंदर से कलश में एक कन्या थी. जिसके बाद राजा जनक उस कन्या को लेकर अपने घर आ गए और अपनी बेटी के रूप में स्वीकार किया और उनका नाम सीता रखा और बाद में श्री राम भगवान के साथ उनकी शादी हुई.