फरीदाबाद: उत्तर भारत समेत हरियाणा में इन दिनों प्रचंड गर्मी से हाहाकार मचा है. ऐसे में लोग प्यास बुझाने के लिए ठंडे पानी का सेवन कर रहे हैं. हम में से ज्यादातर लोग प्लास्टिक की बोलत में पानी रखते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से आप कैंसर (side effects of plastic bottles) जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो सकते हैं? जल विशेषज्ञ निर्मल की माने तो 25 डिग्री से ज्यादा तापमान में आते ही प्लास्टिक से जहरीला कैमिकल पानी में घुलने लगता है.
तेज धूप, गोदामों और गाड़ियों में तापमान बेहद ज्यादा हो जाता है. पानी को कम तापमान में रखने की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता. लिहाजा प्लास्टिक के गर्म होने से उसमें से बिस्फेनॉल ए नाम का कैमिकल निकलता है जो पानी को टॉक्सिक कर देता है. प्लास्टिक गर्म होने से जहरीला डाइऑक्सिन भी पानी मे घुल जाता है. इस पानी का प्रयोग करने से इंसान शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन (plastic bottles harmful effects) होते हैं. इंसान के हारमोंस में भी बदलाव आता है.
खासतौर से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारी ज्यादा होती है. इसके साथ ही कम उम्र के बच्चों में भी बीमारी की संभावनाएं ज्यादा बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि अगर हाई क्वालिटी और ब्रांडेड बोतलों का इस्तेमाल किया जाता है तो कैमिकल के पानी में घुलने की संभावना कम हो जाती हैं. जबकि घटिया प्लास्टिक से बनी बोतलों में भारी मात्रा में केमिकल पानी में घुलता है.
होम्योपैथी स्वास्थ्य विभाग के एमडी डॉक्टर प्रवेश अग्रवाल ने बताया कि किसी भी प्रकार का प्लास्टिक जब गर्म होता है तो वो जहरीला केमिकल छोड़ता है. अगर प्लास्टिक अच्छी क्वालिटी की है तो वो कम मात्रा में जहरीला केमिकल छोड़ेगी और अगर प्लास्टिक बेहद हल्की क्वालिटी की है वो ज्यादा कैमिकल छोड़ेगी. सड़कों पर जो पानी की बोतल और पैकेट बेचे जाते हैं. उनकी क्वालिटी बेहद हल्की होती है. धूप के संपर्क में रहने के कारण वो जहरीला केमिकल पानी में घुल जाता है. उस पानी को पीने से कई तरह की बीमारियां जन्म लेती हैं.
इन बीमारियों में पेट खराब होना, किडनी की बीमारी और कैंसर जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है. अगर इन सभी बीमारियों से बचाव करना है तो सबसे पहले प्लास्टिक की बोतलों और पैकेट में बेचे जाने वाले पानी को पीने से परहेज करना होगा. सरकार से मान्यता प्राप्त ब्रांडेड बोतल में पानी भर कर पिया जाए तो इससे बचा जा सकता है. मिट्टी की बोतलें और बांस से बनी बोतलों का प्रयोग किया जा सकता है. जितना हो सकता है पानी की टंकियों से पानी दिया जाए और मटके का पानी ज्यादा प्रयोग में लाया जाए.
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