फरीदाबाद: चेहरे पर शिकन, आंखों में आंसू और मन में अपनों से दूर रहने का मलाल, लेकिन एक उम्मीद ये कि उनके बेटे उन्हें एक दिन यहां से जरूर लेकर जाएंगे. दिल को रुला देने वाली ये कहानी है फरीदाबाद एनआईटी क्षेत्र में बने ताऊ देवीलाल वृद्धाश्रम की. ये बुजुर्ग माता-पिता वो हैं, जिन्होंने अपने बच्चों के पालन पोषण में कोई कमी नहीं होने दी. जिन बच्चों ने इनकी उंगली थामकर चलना सीखा था. अपने पैरों पर खड़ा होने के बाद वही बुढ़ापे में इनका हाथ थामने को तैयार नहीं.
शिव देयी वो अभागी मां है जिसका एक बेटा विदेश में काम करता है और खूब पैसे कमा रहा है, लेकिन इस मां के लिए ना तो उसके पास समय है और ना ही दिल में थोड़ी सी भी जगह. इस बेबस मां की आपबीती सुनकर पत्थर का दिल भी पसीज जाए.
पथराई आंखों से छलक पड़ते हैं आंसू
यूपी के मुज्जफरनगर के रहने वाले रतिराम 100 साल से भी ज्यादा के हो चुके हैं. उन्होंने 1984 के दंगों में अपनी पत्नी को खो दिया. उसके बाद बेटों ने भी इनका साथ छोड़ दिया. हर तरफ से लाचार उम्र के इस पड़ाव पर रतिराम अब वृद्धाश्रम में रह रहे हैं. अपने शहर और घर को याद करते हुए इन पथराई आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं.
...लेकिन आखिर में उन्हें क्या मिला?
कुछ ऐसी ही कहानी राजन की भी है. बात करने पर वो अपने बच्चों के साथ बिताए सारे पलों को याद करने लगती हैं. कैसे अपना सबकुछ दांव पर लगाकर बच्चों को पाला पोसा, पढ़ाया-लिखाया और इस काबिल बनाया कि इस दुनिया में अपना मुकाम हासिल कर सकें, लेकिन आखिर में उन्हें क्या मिला? घर से धक्का और वृद्धाश्रम में बेरुखी के दिन.
फिर भी अपने बच्चों के लिए दुआ ही मांगते हैं ये बुजुर्ग
सविता कौर, शिव देयी, रतिराम और राजन जैसे और भी बुजुर्ग हैं जो हमारे समाज में अपने बच्चों की अनदेखी और जुल्म का शिकार हैं. उम्र के जिस पड़ाव पर उन्हें परिवार की जरूरत है. उस मोड़ पर वो अकेले हैं. गुर्बत और बेबसी में होकर भी इन मां-बाप का दिल देखिए कि अपने बच्चों के लिए सिर्फ दुआ ही मांगते हैं.
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