चंडीगढ: कहते है संगठन में शक्ति होती है और सियासत के लिए संगठन अहम चीज है. जिसका नेटवर्क जमीनी स्तर तक हो. ऐसे में लोकसभा चुनाव 2019 में प्रदेश में विपक्षी पार्टियों के सफाए और बीजेपी की प्रचंड जीत का एक कारण विपक्षी पार्टियों के पास संगठन का अभाव और बीजेपी का मजबूत संगठन भी है.
साल 2014 में हरियाणा की सत्ता हासिल करने के बाद बीजेपी प्रदेश में लगातार अपने संगठन को मजबूत करने का काम करती रही. पार्टी नेताओं ने अभियान चलाकर लोगों को बीजेपी से जोड़ा और धीरे-धीरे जमीनी स्तर के कार्यकर्ता खड़े कर लिए.
लोकसभा चुनाव आते-आते प्रदेश में बीजेपी का संगठन इतना बड़ा हो गया था कि बीजेपी ने प्रदेश के तकरीब सभी बूथ पर, बूथ प्रमुख और पन्ना प्रमुख नाम से अपनी मजबूत ब्रिगेड खड़ी कर दी.
बीजेपी का माइक्रो लेवल बूथ मैनेजमेंट
लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने माइक्रो लेवल का बूथ मैनेजमेंट किया. बीजेपी ने हर बूथ पर करीब 22 कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगाई. जिसमें एक बूथ अध्यक्ष, 4 पदाधिकारी और 17 पन्ना प्रमुखों को नियुक्त किया गया. बीजेपी के एक पन्ना प्रमुख को तकरीबन 60 मतदाताओं के वोट डलावने की जिम्मेदारी दी गई थी. वहीं बूथ अध्यक्ष को अपना बूथ जीतने की जिम्मेदारी दी गई. जिसके लिए बीजेपी ने 'मेरा बूथ, सबसे मजबूत' कार्यक्रम चलाया.
पन्ना प्रमुख सम्मेलन
लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे प्रदेश में बीजेपी के नेता पन्ना प्रमुख सम्मेलन कर पन्ना प्रमुखों की बैठक लेते रहे और उन्हें प्रशिक्षित करते रहें. इस दौरान बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता भी आपस में लगातार जुड़े रहे.
पीएम मोदी,अमित शाह का सीधा कार्यकर्ताओं से संवाद
लोकसभा चुनाव से पहले और चुनाव की प्रक्रिया के दौरान बीजेपी का हाईकमान छोटे कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ता रहा.'मेरा बूथ,सबसे मजबूत' कार्यक्रम के तहत 28 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में 15 हजार जगहों पर बीजेपी के बूथ अध्यक्षों को सीधे संबोधित किया. इस दौरान प्रधानमंत्री ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से बातचीत भी की.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बारे में कहा जाता है कि वे लगातार स्थानीय नेताओं से बात करते हैं. खुद भी फोन लगाते रहते हैं और बात की शुरुआत ‘दोस्त बोल रहा हूं’ से करते हैं.
अमित शाह अपनी यात्राओं के दौरान बहुत कम ही किसी होटल में रुकते हैं. वे किसी कार्यकर्ता या फिर सर्किट हाउस में रुकना पसंद करते हैं. उनका मानना है कि इससे कार्यकर्ताओं के करीब रहकर उनके मन की बात जान सकते हैं.
कहा ये भी जाता है कि 2014 में अमित शाह को जब यूपी बीजेपी का प्रभारी बनाकर यूपी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी तब अमित शाह को यूपी की हर लोकसभा सीट के कम से कम 100 स्थानीय नेताओं के नाम याद रहते थे.
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में बीजेपी को संगठन का कितना फायदा मिला इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोहतक सीट को छोड़कर प्रदेश की बाकी सभी लोकसभा सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशियों ने 50 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत से ज्यादा तक का वोट शेयर हासिल किया और जबरदस्त तरीके से विरोधियों का सफाया कर दिया. चुनाव के दौरान पार्टी संगठन सभी उम्मीदवारों के चुनाव से जुड़े काम देखता रहा.
कांग्रेस का जर्जर संगठन
अगर कांग्रेस की बात करें तो पिछले तकरीबन 5 सालों से जिला और ब्लॉक लेवल पर पार्टी का कोई संगठन ही नहीं है. साथ ही जो नेता प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज कहे जाते हैं, उनमें से ज्यादातर एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते. ऐसे में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के नेताओं को पार्टी के संगठन से कोई खास मदद नहीं मिली और सभी उम्मीदवार अपनी-अपनी टीम के बलबुते ही लड़ाई लड़ते रहे.
इनेलो-जेजेपी के पास कैडर नहीं
बात अगर इंडियन नेशनल लोकदल की करें तो पार्टी में टूट के बाद उसके ज्यादातर नेता जननायक जनता पार्टी में चले गए. लिहाजा इनेलो का तो पूरा संगठन ही लोकसभा चुनाव से पहले ध्वस्त हो चुका था. जबकि जेजेपी में तो अभी पार्टी की अलग-अलग इकाईयों के गठन का ही काम चल रहा था.