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हरियाणा में पोक्सो के 2256 केस पेंडिंग, पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग देने की भी जरूरत - हरियाणा पोक्सो एक्ट पेंडिंग केस

हरियाणा में साल 2015 से लेकर 2019 तक पोक्सो एक्ट के तहत कुल 7,145 मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें से 30 जून, 2019 तक 2256 मामले पेंडिंग थे.

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हरियाणा में पिछले 5 सालों में पोक्सो के 2256 केस हैं पेंडिंग
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Published : Mar 25, 2021, 8:58 PM IST

चंडीगढ़: भारत की कुल जनसंख्या में से करीब 37 फीसदी हिस्सा बच्चों का है. भारत की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, साथ ही बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में भी लगातार इजाफा हो रहा है, जो बेहद चिंता का विषय है. लिहाजा, इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर केंद्र सरकार ने साल 2012 में एक विशेष कानून 'पोक्सो एक्ट' बनाया था. इस कानून के तहत दोषी व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है, क्योंकि ये कानून बच्चों को छेड़खानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है.

खास बात ये कि साल 2018 में इस कानून में संशोधन किया गया था, जिसके बाद अब 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सजा देने का प्रावधान है. इससे 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस' यानी पोक्सो (पीओसीएसओ) एक्ट को काफी मजबूती मिली है.

हरियाणा में पिछले 5 सालों में पोक्सो के 2256 केस हैं पेंडिंग

क्यों पड़ी पोक्सो एक्ट की जरूरत?

नाबालिगों के साथ लगातार अपराध बढ़ रहे हैं. ऐसे में इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाती है, इसलिए ये एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है.

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हरियाणा में दर्ज पोक्सो केस

हरियाणा में हैं 22 पोक्सो स्पेशल कोर्ट

देशभर में ऐसी कईं पोक्सो कोर्ट बनाई गई हैं, जहां इस एक्ट के तहत आने वाले मामलों की जल्द से जल्द सुनवाई की जाती है. अगर बात हरियाणा की करें तो यहां हर एक जिले में एक पोक्सो कोर्ट बनाई गई है यानी की हरियाणा में कुल 22 पोक्सो कोर्ट हैं. जहां पोक्सो एक्ट के तहत आने वाले मामलों की सुनवाई की जाती है.

pocso specials courts haryana
पोक्सो केसों का जिलेवार आंकड़ा

अगर आंकड़ों पर गौर करें तो हरियाणा में साल 2015 से लेकर 2019 तक पोक्सो एक्ट के तहत कुल 7,145 मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें से 30 जून, 2019 तक 2256 मामले पेंडिंग थे.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अनिल मल्होत्रा ने बताया कि इस कानून के तहत अपराधियों को बहुत सख्त सजाएं दी गई हैं. अगर बच्चों के साथ गलत बर्ताव होता है तो सख्त सजा का प्रवधान भी है. उन्होंने बताया कि नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले जुर्म को लेकर अलग-अलग सजाएं निर्धारित की गई हैं.

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पोक्सो केसों का जिलेवार आंकड़ा

ये भी पढ़िए: हाईकोर्ट के निर्देश: POCSO एक्ट में जांच तय मानक प्रक्रिया के मुताबिक हो

वरिष्ठ वकील अनिल मल्होत्रा ने बताया कि आमतौर पर देखा जाता है कि पोक्सो कोर्ट में सुनवाई जल्दी होती है, क्योंकि पोक्सो कोर्ट में दूसरी कोर्ट की तरह आम सुनवाई नहीं होती है. कोर्ट की सुनवाई हफ्ते में किसी एक दिन होती है. ऐसे में कोशिश रहती है कि उसी दिन फैसला आ जाए.

पोक्सो एक्ट में किन बदलावों की जरूरत?

अनिल मल्होत्रा ने दावा किया कि हरियाणा में जो पोक्सो कोर्ट बनी हैं, उनका असर ज्यादा देखने को नहीं मिल रहा है. जिसका एक कारण ये भी है कि पुलिस कर्मचारी ऐसे मामलों में अब भी ढील देते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि पुलिस कर्मियों को पोक्सो और आईपीसी में अंतर तक नहीं पता होता. मामला पोक्सो का होने का बाद भी जानकारी के अभाव में पुलिस की ओर से मामला आईपीसी की धारा के तहत दर्ज किया जाता है.

ये भी पढ़िए: पोक्सो एक्ट के तहत एक महीने में पीड़ित का बयान दर्ज करना अनिवार्य: हाईकोर्ट

उन्होंने कहा कि जरूरी है कि पोक्सो के मामलों को देख रहे कर्मचारियों की इसकी सही जानकारी हो, इसके लिए ऐसे कर्मचारियों को खास तौर पर ट्रेनिंग दी जा सकती है. अनिल मल्होत्रा ने कहा कि ऐसा करके बच्चों को जल्द से जल्द न्याय दिलाया जा सकता है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि 16 से 18 साल तक के बच्चे जो अपराध को अंजाम देते हैं, उनके खिलाफ भी एक व्यस्क के तौर पर ही कार्रवाई की जानी चाहिए.

चंडीगढ़: भारत की कुल जनसंख्या में से करीब 37 फीसदी हिस्सा बच्चों का है. भारत की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, साथ ही बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में भी लगातार इजाफा हो रहा है, जो बेहद चिंता का विषय है. लिहाजा, इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर केंद्र सरकार ने साल 2012 में एक विशेष कानून 'पोक्सो एक्ट' बनाया था. इस कानून के तहत दोषी व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है, क्योंकि ये कानून बच्चों को छेड़खानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है.

खास बात ये कि साल 2018 में इस कानून में संशोधन किया गया था, जिसके बाद अब 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सजा देने का प्रावधान है. इससे 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस' यानी पोक्सो (पीओसीएसओ) एक्ट को काफी मजबूती मिली है.

हरियाणा में पिछले 5 सालों में पोक्सो के 2256 केस हैं पेंडिंग

क्यों पड़ी पोक्सो एक्ट की जरूरत?

नाबालिगों के साथ लगातार अपराध बढ़ रहे हैं. ऐसे में इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाती है, इसलिए ये एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है.

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हरियाणा में दर्ज पोक्सो केस

हरियाणा में हैं 22 पोक्सो स्पेशल कोर्ट

देशभर में ऐसी कईं पोक्सो कोर्ट बनाई गई हैं, जहां इस एक्ट के तहत आने वाले मामलों की जल्द से जल्द सुनवाई की जाती है. अगर बात हरियाणा की करें तो यहां हर एक जिले में एक पोक्सो कोर्ट बनाई गई है यानी की हरियाणा में कुल 22 पोक्सो कोर्ट हैं. जहां पोक्सो एक्ट के तहत आने वाले मामलों की सुनवाई की जाती है.

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पोक्सो केसों का जिलेवार आंकड़ा

अगर आंकड़ों पर गौर करें तो हरियाणा में साल 2015 से लेकर 2019 तक पोक्सो एक्ट के तहत कुल 7,145 मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें से 30 जून, 2019 तक 2256 मामले पेंडिंग थे.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अनिल मल्होत्रा ने बताया कि इस कानून के तहत अपराधियों को बहुत सख्त सजाएं दी गई हैं. अगर बच्चों के साथ गलत बर्ताव होता है तो सख्त सजा का प्रवधान भी है. उन्होंने बताया कि नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले जुर्म को लेकर अलग-अलग सजाएं निर्धारित की गई हैं.

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पोक्सो केसों का जिलेवार आंकड़ा

ये भी पढ़िए: हाईकोर्ट के निर्देश: POCSO एक्ट में जांच तय मानक प्रक्रिया के मुताबिक हो

वरिष्ठ वकील अनिल मल्होत्रा ने बताया कि आमतौर पर देखा जाता है कि पोक्सो कोर्ट में सुनवाई जल्दी होती है, क्योंकि पोक्सो कोर्ट में दूसरी कोर्ट की तरह आम सुनवाई नहीं होती है. कोर्ट की सुनवाई हफ्ते में किसी एक दिन होती है. ऐसे में कोशिश रहती है कि उसी दिन फैसला आ जाए.

पोक्सो एक्ट में किन बदलावों की जरूरत?

अनिल मल्होत्रा ने दावा किया कि हरियाणा में जो पोक्सो कोर्ट बनी हैं, उनका असर ज्यादा देखने को नहीं मिल रहा है. जिसका एक कारण ये भी है कि पुलिस कर्मचारी ऐसे मामलों में अब भी ढील देते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि पुलिस कर्मियों को पोक्सो और आईपीसी में अंतर तक नहीं पता होता. मामला पोक्सो का होने का बाद भी जानकारी के अभाव में पुलिस की ओर से मामला आईपीसी की धारा के तहत दर्ज किया जाता है.

ये भी पढ़िए: पोक्सो एक्ट के तहत एक महीने में पीड़ित का बयान दर्ज करना अनिवार्य: हाईकोर्ट

उन्होंने कहा कि जरूरी है कि पोक्सो के मामलों को देख रहे कर्मचारियों की इसकी सही जानकारी हो, इसके लिए ऐसे कर्मचारियों को खास तौर पर ट्रेनिंग दी जा सकती है. अनिल मल्होत्रा ने कहा कि ऐसा करके बच्चों को जल्द से जल्द न्याय दिलाया जा सकता है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि 16 से 18 साल तक के बच्चे जो अपराध को अंजाम देते हैं, उनके खिलाफ भी एक व्यस्क के तौर पर ही कार्रवाई की जानी चाहिए.

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