चंडीगढ़: हरियाणा में लगभग 4 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव में जाट आरक्षण का मुद्दा गरमा सकता है. लोकसभा चुनाव में भी जाट आरक्षण का मुद्दा सुर्खियों में रहा है.
आंदोलन के दौरान हुए उपद्रव की जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस एसएन झा की अध्यक्षता में कमीशन का गठन किया गया. जस्टिस एसएन कमीशन इस बार विधानसभा चुनाव से पहले अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंप देगा. कमीशन ने गवाही और सुनवाई की प्रकिया पूरी कर ली है. इस जांच में केवल प्रो. वीरेंद्र सिंह का मामला चंडीगढ़ हाई कोर्ट में अटका हुआ है, जिसके संबध में कमीशन ने दस्तावेज कोर्ट में पेश कर दिए हैं.
कमीशन ने 97 गवाहों को बुलाया था
जांच के लिए कमीशन ने 97 गवाहों को बुलाया. इस जांच प्रकिया में 31 शिकायतकर्ताओं में से 7 ने 13 गवाह कमीशन के सामने पेश किए. जांच कमीशन का समय 7 जुलाई को पूरा हो रहा है, लेकिन कमीशन ने रिपोर्ट को तैयार करने के लिए तीन माह का समय और मांगा है.
31 जुलाई को सुनवाई करेगा हाई कोर्ट
यदि सरकार कमीशन को तीन महीने का समय दे देता है तो कमीशन अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देगा. समय न बढ़ने की स्थिति में कमीशन जुलाई में अपनी अंतरिम रिपोर्ट सरकार को सौंप देगा. वहीं प्रो.वीरेंद्र सिंह के मामले में कोर्ट 31 जुलाई को सुनवाई करेगा.
पांच लोगों को जारी किया है नोटिस
कमीशन ने गवाहों और सबूतों के आधार पर पांच लोगों नोटिस जारी किया है. इनमें अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक, प्रो. वीरेंद्र सिंह, सुदीप कलकल, मनोज दुहन और कप्तान मान सिंह शामिल हैं. इन सभी को कमीशन ऑफ इंक्वारी एक्ट-1952 की धारा 8-बी के तहत नोटिस देकर पक्ष रखने को कहा गया था. सभी ने अपना पक्ष भी रखा, लेकिन प्रो. वीरेंद्र सिंह ने कमीशन को ही हाई कोर्ट में चैलेंज किया.
सूबे में जाट?
हरियाणा में किसानों की एक जाति जाट है. इस जाति के तमाम लोग राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी रहते हैं. देशभर में ज्यादातर जाट हरियाणा में ही रहते हैं. हरियाणा की राजनीति में जाटों का असर हमेशा ही दिखाई देता रहा है.
जाटों की मांग?
सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी वर्ग की तरह आरक्षण की मांग जाटो ने भी की. उनका कहना है सब की तरह उनको भी आरक्षण दिया जाए. अपनी मांग को लेकर जाटों ने कई बार प्रदर्शन भी किए हैं.
पहली बार 1991 में गुरनाम सिंह कमीशन की रिपोर्ट आयी. इस रिपोर्ट में जाटों को पिछड़ी जाति में रखा गया. जाटों के साथ ही अन्य 7 समुदाय के लोगों को भी उनके साथ रख दिया गया था, लेकिन भजन लाल सरकार ने इस अधिसूचना को वापस ले लिया था.
इसके बाद 2 नई कमेटियों का गठन किया गया. फिर भी जाटों को पिछ़ड़ी जाति में शामिल नहीं किया गया. सन 1966 में हरियाणा को पंजाब से काट कर अलग किया गया. तब से अब तक 10 में 7 मुख्यमंत्री जाट रहे हैं. यहां जाट वोटरों का प्रतिशत भी अच्छा है.
हरियाणा की जाट बेल्ट रोहतक, झज्जर, और भिवानी जानी जाती रही है. यहां हमेशा से ही जाटों का वर्चस्व रहा है. जाट राजनेताओं के लिए हरियाणा खास रहा है, लेकिन इस बार हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल गैर जाट नेता हैं.
जाटों की स्थिति
हरियाणा में उच्च स्तर की सरकारी नौकरियों में 18 फीसदी लोग जाट समुदाय से हैं. 40 से 50 फीसदी जाट निचले पदों पर कार्यरत हैं. शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी जाट हैं.
जाटो का मुख्य व्यवसाय किसानी है, लेकिन 10 फीसदी जाटों के पास तो खुद की जमीन तक नहीं है. 10 साल पहले तक जाटों के पास जमीनों की भरमार थी. शहरी करण और बढ़ते परिवार की वजह से जाटों की जमीन कम हो गई.
आरक्षण के दौरान नुकसान
- आंदोलन के दौरान प्रदेश में भारी नुकसान हुआ था. उपद्रव में करीब 10 से अधिक लोगों की जान भी चली गई थी.
- आरणक्ष के उपद्रव के दौरान 5 से 7 स्टोशनों को बर्बाद कर दिया गया था. इसमें करीब 200 करोड़ का नुकसान हुआ था. 800 से ज्यादा ट्रेनें रद्द कर दी गई थीं.
- कई बस स्टैंड और सरकारी दफ्तरों में आग लगा दी गई थी. सड़के खोद दी गई थीं. सड़कों पर जाम लगा दिए गए थे.
- इस दौरान पूरे राज्य का देश से संपर्क टूट गया था. सेना को भी हेलीकॉप्टर से प्रवेश करना पड़ा था.
- इस आगजनी में 1000 से ज्यादा वाहन और 500 से अधिक दुकान भी जला दी गई थीं. इस समय 20 ट्रेनें जम्मू की रद्द होने से करीब 30 हजा यात्री फंस गए थे.
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