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यू-ट्यूब पर सेना से जुड़ी सामग्री अपलोड वाले की अग्रिम जमानत याचिका खारिज

फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर एक व्यक्ति ने सेना से जुड़े कुछ वीडियो यू ट्यूब पर डाली थी. जिस पर कोर्ट ने फ्रीडम ऑफ स्पीच का गलत इस्तेमाल बताते हुए उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है.

punjab and haryana high court cancelled Anticipatory bail of uploaded military related content to youtube
Youtube पर सेना से जुड़ी सामग्री अपलोड वाले की हाई कोर्ट ने खारिज की अग्रिम जमानत
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Published : Oct 14, 2020, 12:29 PM IST

चंडीगढ़: विचारों की अभिव्यक्ति या अभिव्यक्ति की आजादी यानी कि फ्रीडम ऑफ स्पीच का मतलब ये नहीं कि आप दूसरों के अधिकारों और मान सम्मान को ठेस पहुंचा सके. भारत के हर नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुन नहीं है कि कोई जंगली बनकर दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाने में सीमा ही लांघ दे. पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर अकाउंट पर सेना की एक यूनिट के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करने के एक आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए की.

सेना से जुड़ी सामग्री अपलोड का मामला

इस मामले में सेना की एक पूर्व महिला अधिकारी सेना के एक कमांडिंग ऑफिसर की पत्नी है. उसने अंबाला कैंट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई कि सबका सैनिक संघर्ष कमेटी नामक यू ट्यूब चैनल का एडमिन कपिल देव अपने चैनल पर सेना के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड कर रहा है. चैनल ने सेना की एक यूनिट के खिलाफ कुछ वीडियो अपलोड किए, जिसमें कहा गया कि कुछ जवानों को यूनिट के कमांडिंग अधिकारी की पत्नी को सलाम ना करने पर सजा दी गई. इस बाबत उसने सेना और अधिकारियों के खिलाफ हेट स्पीच भी दी.

यू-ट्यूब पर सेना से जुड़ी सामग्री अपलोड वाले की अग्रिम जमानत याचिका खारिज

पूर्व महिला सेना अधिकारी ने हाई कोर्ट में आरोपी की अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि उसने सेना में मेजर के पद पर काम किया और उसके पति अभी कमांडिंग ऑफिसर है, लेकिन आरोपी ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया और सेना के कई महत्वपूर्ण और गोपनीय दस्तावेज अपलोड किए. इससे उनके सम्मान, प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति को गहरी ठेस पहुंची है.

हाई कोर्ट के जस्टिस एचएस मदान ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता ना संबंधित अधिकारी हैं, उनके पति अभी भी देश की सेवा कर रहे हैं. उनको छोड़कर भी किसी आम आदमी की प्रतिष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचाने का किसी को कोई हक नहीं है. ऐसे आरोपों को हल्के में नहीं लिया जा सकता. बेंच ने कहा कि विचारों की अभिव्यक्ति का मतलब ये कतई नहीं है कि आप किसी के मान-सम्मान को चोट पहुंचाए.

कोर्ट ने खारिज की अग्रिम जमानत

उन्होंने ने कहा कि इस मामले में आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ करना जरूरी है कि आरोपित सेना की यूनिट अधिकारियों के खिलाफ यूट्यूब पर वीडियो अपलोड कर रहा है. इसके पीछे उसका वास्तविकता क्या है? और उसके साथी कौन हैं? पुलिस ने आरोपी का मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया और कोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत खारिज कर दी है.

ये भी पढ़ें:-15 अक्टूबर से खुल रहे हैं देश भर के थिएटर्स, सिनेमा घरों में किए गए हैं ये बदलाव

बेंच ने कहा कि याची ने नफरत भरे भाषणों के माध्यम से सेना के खिलाफ असंतोष और दरार पैदा करने का प्रयास किया. इसके अलावा उसने आधिकारिक दस्तावेजों और सेना प्रतिष्ठानों की गतिविधियों के प्रतिबंधित वीडियो अपलोड कर देश की सुरक्षा और राष्ट्र हितों का नुकसान करने का गंभीर अपराध किया है. इससे पहले मई में अंबाला जिला अदालत ने उसको अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया था.

चंडीगढ़: विचारों की अभिव्यक्ति या अभिव्यक्ति की आजादी यानी कि फ्रीडम ऑफ स्पीच का मतलब ये नहीं कि आप दूसरों के अधिकारों और मान सम्मान को ठेस पहुंचा सके. भारत के हर नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुन नहीं है कि कोई जंगली बनकर दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाने में सीमा ही लांघ दे. पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर अकाउंट पर सेना की एक यूनिट के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करने के एक आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए की.

सेना से जुड़ी सामग्री अपलोड का मामला

इस मामले में सेना की एक पूर्व महिला अधिकारी सेना के एक कमांडिंग ऑफिसर की पत्नी है. उसने अंबाला कैंट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई कि सबका सैनिक संघर्ष कमेटी नामक यू ट्यूब चैनल का एडमिन कपिल देव अपने चैनल पर सेना के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री अपलोड कर रहा है. चैनल ने सेना की एक यूनिट के खिलाफ कुछ वीडियो अपलोड किए, जिसमें कहा गया कि कुछ जवानों को यूनिट के कमांडिंग अधिकारी की पत्नी को सलाम ना करने पर सजा दी गई. इस बाबत उसने सेना और अधिकारियों के खिलाफ हेट स्पीच भी दी.

यू-ट्यूब पर सेना से जुड़ी सामग्री अपलोड वाले की अग्रिम जमानत याचिका खारिज

पूर्व महिला सेना अधिकारी ने हाई कोर्ट में आरोपी की अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि उसने सेना में मेजर के पद पर काम किया और उसके पति अभी कमांडिंग ऑफिसर है, लेकिन आरोपी ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया और सेना के कई महत्वपूर्ण और गोपनीय दस्तावेज अपलोड किए. इससे उनके सम्मान, प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति को गहरी ठेस पहुंची है.

हाई कोर्ट के जस्टिस एचएस मदान ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता ना संबंधित अधिकारी हैं, उनके पति अभी भी देश की सेवा कर रहे हैं. उनको छोड़कर भी किसी आम आदमी की प्रतिष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचाने का किसी को कोई हक नहीं है. ऐसे आरोपों को हल्के में नहीं लिया जा सकता. बेंच ने कहा कि विचारों की अभिव्यक्ति का मतलब ये कतई नहीं है कि आप किसी के मान-सम्मान को चोट पहुंचाए.

कोर्ट ने खारिज की अग्रिम जमानत

उन्होंने ने कहा कि इस मामले में आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ करना जरूरी है कि आरोपित सेना की यूनिट अधिकारियों के खिलाफ यूट्यूब पर वीडियो अपलोड कर रहा है. इसके पीछे उसका वास्तविकता क्या है? और उसके साथी कौन हैं? पुलिस ने आरोपी का मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया और कोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत खारिज कर दी है.

ये भी पढ़ें:-15 अक्टूबर से खुल रहे हैं देश भर के थिएटर्स, सिनेमा घरों में किए गए हैं ये बदलाव

बेंच ने कहा कि याची ने नफरत भरे भाषणों के माध्यम से सेना के खिलाफ असंतोष और दरार पैदा करने का प्रयास किया. इसके अलावा उसने आधिकारिक दस्तावेजों और सेना प्रतिष्ठानों की गतिविधियों के प्रतिबंधित वीडियो अपलोड कर देश की सुरक्षा और राष्ट्र हितों का नुकसान करने का गंभीर अपराध किया है. इससे पहले मई में अंबाला जिला अदालत ने उसको अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया था.

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