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Pulgaon Fire Incident: रक्षा बलों में सेवारत वर्दीधारी सिविल कर्मचारियों को नहीं दिया जा सकता बलिदानी का दर्जा, रक्षा मंत्रालय ने हाई कोर्ट में दी जानकारी

Pulgaon Fire Incident: पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में सेना वर्दीधारी सिविल कर्मचारी को बलिदानी का दर्जा देने संबंधी एक याचिका के जवाब में रक्षा मंत्रालय ने अपना जवाब दाखिल किया है. यह मामला 4 सितंबर का है, रक्षा मंत्रालय ने हाई कोर्ट में दिए अपने जवाब में यह साफ किया है.

Punjab Haryana High Court
पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Sep 18, 2023, 6:14 PM IST

चंडीगढ़: पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में सेना वर्दीधारी सिविल कर्मचारी को बलिदानी का दर्जा देने संबंधी एक याचिका के जवाब में रक्षा मंत्रालय ने अपना जवाब दाखिल किया है. यह मामला 4 सितंबर का है, रक्षा मंत्रालय ने हाई कोर्ट में दिए अपने जवाब में यह साफ किया है कि वह रक्षा बलों में सेवारत वर्दीधारी सिविल कर्मचारियों को बैटल कैजुअल्टी या बलिदानी का दर्जा नहीं दे सकता है.

दरअसल, पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में एक पिता ने बेटे को बलिदानी का दर्जा दिए जाने के लिए याचिका लगाई थी. यह याचिका देश के सबसे बड़े महाराष्ट्र में स्थित केंद्रीय गोला बारूद डिपो पुलगांव, वर्धा में आग पर काबू पाने के दौरान बलिदान देने वाले फायरमैन नवजोत सिंह के पिता ने कोर्ट में लगाई थी. इस याचिका के जवाब में रक्षा मंत्रालय ने हाई कोर्ट के सामने अपना जवाब दाखिल किया है.

ये भी पढ़ें: Cyber Fraud : साइबर धोखाधड़ी से बचाने के लिए गूगल ने पेश किया नया फीचर

इस मामले में महेंद्रगढ़ निवासी राजपाल ने महाराष्ट्र में अपने बेटे के लिए युद्ध बलिदानी का दर्जा और काम के दौरान मरने वालों के लिए उदारीकृत पारिवारिक पेंशन की मांग की थी. इस अग्निकांड में 19 कर्मियों की जान चली गई थी. नवजोत के पिता का दाव रक्षा मंत्रालय की कोर्ट आफ इंक्वायरी के निष्कर्षों पर आधारित था, जिसमें कहा गया था कि मुश्किल हालातों के बाद भी आग से निपटने में उनकी पहल की वजह से आगे की क्षति को रोका जा सका और उसका काम उल्लेखनीय रहा है.

कोर्ट ऑफ इंक्वायरी ने खासतौर पर यह भी सिफारिश की थी कि डिफेन्स सिक्योरिटी कोर्प और डिफेन्स फायर सर्विस कर्मियों सभी 19 जिनकी हादसे में जान चली गई और जो गंभीर रूप से घायल हुए है, उनको युद्ध हताहतों के रूप में वर्गीकृत किया जाए. सुनवाई के दौरान रक्षा मंत्रालय ने कोर्ट को बताया कि सेना के जवानों को पेंशन व अन्य लाभ देने का काम रक्षा मंत्रालय देखता है. जबकि सेना के वर्दीधारी सिविलियन कर्मचारियों को केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा देखा जाता है.

रक्षा मंत्रालय के जवाब दाखिल करने के बाद, हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद भारद्वाज ने मृतक के पिता को पारिवारिक पेंशन और अन्य लाभ के लिए केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से संपर्क करने के लिए कहा है. कोर्ट ने डीओपीटी के सामने प्राधिकारी को इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह के भीतर जल्द इस पर विचार करने का भी आदेश दिया.

कोर्ट ने इसके साथ ही कहा कि अगर याचिकाकर्ता डीओपीटी के मुताबिक पारिवारिक पेंशन का हकदार पाया जाता है, तो बकाया राशि व आवश्यक लाभ तीन महीने के भीतर दिए जाएंगे. कोर्ट ने यह भी साफ किया कि याचिकाकर्ता भुगतान में देरी के लिए आवेदन जमा करने की तारीख से उसके लाभ मिलने तक प्रति वर्ष की दर से ब्याज का हकदार होगा.

ये भी पढ़ें: काशी के ज्ञानवापी मामले की इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई आज

बता दें कि 31 मई 2016 को पुलगांव के हथियार के डिपो में भीषण आग लग गई थी. इस हादसे में 19 लोगों की मौत और 17 गंभीर रूप से घायल हुए थे. याचिकाकर्ता का बेटा अग्निशमन सेवाओं में तैनात था. याचिकाकर्ता के बेटे नवजोत सिंह की हादसे में मौत हो गई थी. मरने वाले 19 लोगों में से युद्ध में हताहत होने का लाभ छह कर्मियों को दिया गया था और बाकी कर्मियों को इस आधार पर देने से इंकार कर दिया गया कि सेना के जवान नहीं थे. जिसके बाद याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी कि उसके बेटे के साथ अन्य छह सेना कर्मियों के समान व्यवहार किया जाए.

चंडीगढ़: पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में सेना वर्दीधारी सिविल कर्मचारी को बलिदानी का दर्जा देने संबंधी एक याचिका के जवाब में रक्षा मंत्रालय ने अपना जवाब दाखिल किया है. यह मामला 4 सितंबर का है, रक्षा मंत्रालय ने हाई कोर्ट में दिए अपने जवाब में यह साफ किया है कि वह रक्षा बलों में सेवारत वर्दीधारी सिविल कर्मचारियों को बैटल कैजुअल्टी या बलिदानी का दर्जा नहीं दे सकता है.

दरअसल, पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में एक पिता ने बेटे को बलिदानी का दर्जा दिए जाने के लिए याचिका लगाई थी. यह याचिका देश के सबसे बड़े महाराष्ट्र में स्थित केंद्रीय गोला बारूद डिपो पुलगांव, वर्धा में आग पर काबू पाने के दौरान बलिदान देने वाले फायरमैन नवजोत सिंह के पिता ने कोर्ट में लगाई थी. इस याचिका के जवाब में रक्षा मंत्रालय ने हाई कोर्ट के सामने अपना जवाब दाखिल किया है.

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इस मामले में महेंद्रगढ़ निवासी राजपाल ने महाराष्ट्र में अपने बेटे के लिए युद्ध बलिदानी का दर्जा और काम के दौरान मरने वालों के लिए उदारीकृत पारिवारिक पेंशन की मांग की थी. इस अग्निकांड में 19 कर्मियों की जान चली गई थी. नवजोत के पिता का दाव रक्षा मंत्रालय की कोर्ट आफ इंक्वायरी के निष्कर्षों पर आधारित था, जिसमें कहा गया था कि मुश्किल हालातों के बाद भी आग से निपटने में उनकी पहल की वजह से आगे की क्षति को रोका जा सका और उसका काम उल्लेखनीय रहा है.

कोर्ट ऑफ इंक्वायरी ने खासतौर पर यह भी सिफारिश की थी कि डिफेन्स सिक्योरिटी कोर्प और डिफेन्स फायर सर्विस कर्मियों सभी 19 जिनकी हादसे में जान चली गई और जो गंभीर रूप से घायल हुए है, उनको युद्ध हताहतों के रूप में वर्गीकृत किया जाए. सुनवाई के दौरान रक्षा मंत्रालय ने कोर्ट को बताया कि सेना के जवानों को पेंशन व अन्य लाभ देने का काम रक्षा मंत्रालय देखता है. जबकि सेना के वर्दीधारी सिविलियन कर्मचारियों को केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा देखा जाता है.

रक्षा मंत्रालय के जवाब दाखिल करने के बाद, हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद भारद्वाज ने मृतक के पिता को पारिवारिक पेंशन और अन्य लाभ के लिए केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से संपर्क करने के लिए कहा है. कोर्ट ने डीओपीटी के सामने प्राधिकारी को इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह के भीतर जल्द इस पर विचार करने का भी आदेश दिया.

कोर्ट ने इसके साथ ही कहा कि अगर याचिकाकर्ता डीओपीटी के मुताबिक पारिवारिक पेंशन का हकदार पाया जाता है, तो बकाया राशि व आवश्यक लाभ तीन महीने के भीतर दिए जाएंगे. कोर्ट ने यह भी साफ किया कि याचिकाकर्ता भुगतान में देरी के लिए आवेदन जमा करने की तारीख से उसके लाभ मिलने तक प्रति वर्ष की दर से ब्याज का हकदार होगा.

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बता दें कि 31 मई 2016 को पुलगांव के हथियार के डिपो में भीषण आग लग गई थी. इस हादसे में 19 लोगों की मौत और 17 गंभीर रूप से घायल हुए थे. याचिकाकर्ता का बेटा अग्निशमन सेवाओं में तैनात था. याचिकाकर्ता के बेटे नवजोत सिंह की हादसे में मौत हो गई थी. मरने वाले 19 लोगों में से युद्ध में हताहत होने का लाभ छह कर्मियों को दिया गया था और बाकी कर्मियों को इस आधार पर देने से इंकार कर दिया गया कि सेना के जवान नहीं थे. जिसके बाद याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी कि उसके बेटे के साथ अन्य छह सेना कर्मियों के समान व्यवहार किया जाए.

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