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कानून उसकी मदद करता है जो सतर्क रहें, अधिकारों के प्रति सोए रहने वालों की नहीं- हाई कोर्ट

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Published : Mar 11, 2021, 10:23 PM IST

1966 में हुई दुर्घटना में ड्यूटी के दौरान मारे गए भारतीय सेना के जवान के बच्चों ने हाई कोर्ट में 20 एकड़ भूमि की मांग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी. हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया है.

petition 20 acres land rejected
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चंडीगढ़: 1966 में हुई दुर्घटना में ड्यूटी के दौरान मारे गए भारतीय सेना के जवान के बच्चों द्वारा 53 साल बाद 20 एकड़ भूमि की मांग को लेकर दाखिल याचिका पंजाब हाई कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दी. याचिका दाखिल करते हुए अंबाला निवासी सरदार चरण सिंह व अन्य बच्चों ने हाई कोर्ट को बताया कि उनके पिता भारतीय सेना में 1952 में सिख रेजीमेंट में भर्ती हुए थे.

सेवा के दौरान 1966 में एक दुर्घटना में शहीद हो गए थे. उनके शहीद होने के बाद याची की मां ने 1962 में वित्तीय सहायता के लिए सेना से मदद की मांग की थी. इसके बाद उन्हें फैमिली पेंशन जारी कर दी गई. इसके बाद ही याची की मां की 1999 में मौत हो गई.

ये भी पढ़ें- हाईकोर्ट के निर्देश: POCSO एक्ट में जांच तय मानक प्रक्रिया के मुताबिक हो

2017 मैं याचिकाकर्ता ने अपने पिता को शहीद बताते हुए खुद को उनका वारिस बता राज्य तथा केंद्र की नीतियों के तहत आर्थिक सहायता की मांग की. इस पर यमुनानगर के जिला सैनिक एवं अर्ध सैनिक कल्याण विभाग ने सैनिक गुरनाम सिंह के बारे में सिख रेजीमेंट के रिकॉर्ड ऑफिसर से जानकारी मांगी. वहां से बताया गया कि गुरनाम सिंह सेना में थे और हादसे में उनकी मौत हो गई लेकिन वह शहीद नहीं थे.

2018 में दोबारा दिए गए लीगल नोटिस के जवाब में ऐसी एस फाइनेंस हरियाणा ने बताया कि 1966 1967 की केंद्र नीति के तहत इस प्रकार के मामलों में बेकार पड़ी जमीन का प्रावधान था. सभी जिलों के देशों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश में कोई ऐसी जमीन नहीं है. हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद याचिका को खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें- भाग कर शादी करने वाले दंपतियों को सुरक्षित घर उपलब्ध करवाना जरूरी- हाई कोर्ट

हाई कोर्ट ने कहा कि कानून उसकी मदद करता है जो सतर्क रहें. अधिकारों के प्रति सोए रहने वालों की नहीं. इस मामले में याची के पिता को गुजरे हुए 53 साल हो चुके हैं और याचिकाकर्ताओं की आयु की 50 से ऊपर है. याची की मां की मौत 1999 में हो गई थी और 2017 में जाकर उन्होंने लीगल नोटिस दिया. संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय से मांग करने के लिए कानूनी अधिकार साबित करना जरूरी है जो याची नहीं कर पाया.

चंडीगढ़: 1966 में हुई दुर्घटना में ड्यूटी के दौरान मारे गए भारतीय सेना के जवान के बच्चों द्वारा 53 साल बाद 20 एकड़ भूमि की मांग को लेकर दाखिल याचिका पंजाब हाई कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दी. याचिका दाखिल करते हुए अंबाला निवासी सरदार चरण सिंह व अन्य बच्चों ने हाई कोर्ट को बताया कि उनके पिता भारतीय सेना में 1952 में सिख रेजीमेंट में भर्ती हुए थे.

सेवा के दौरान 1966 में एक दुर्घटना में शहीद हो गए थे. उनके शहीद होने के बाद याची की मां ने 1962 में वित्तीय सहायता के लिए सेना से मदद की मांग की थी. इसके बाद उन्हें फैमिली पेंशन जारी कर दी गई. इसके बाद ही याची की मां की 1999 में मौत हो गई.

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2017 मैं याचिकाकर्ता ने अपने पिता को शहीद बताते हुए खुद को उनका वारिस बता राज्य तथा केंद्र की नीतियों के तहत आर्थिक सहायता की मांग की. इस पर यमुनानगर के जिला सैनिक एवं अर्ध सैनिक कल्याण विभाग ने सैनिक गुरनाम सिंह के बारे में सिख रेजीमेंट के रिकॉर्ड ऑफिसर से जानकारी मांगी. वहां से बताया गया कि गुरनाम सिंह सेना में थे और हादसे में उनकी मौत हो गई लेकिन वह शहीद नहीं थे.

2018 में दोबारा दिए गए लीगल नोटिस के जवाब में ऐसी एस फाइनेंस हरियाणा ने बताया कि 1966 1967 की केंद्र नीति के तहत इस प्रकार के मामलों में बेकार पड़ी जमीन का प्रावधान था. सभी जिलों के देशों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश में कोई ऐसी जमीन नहीं है. हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद याचिका को खारिज कर दिया.

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हाई कोर्ट ने कहा कि कानून उसकी मदद करता है जो सतर्क रहें. अधिकारों के प्रति सोए रहने वालों की नहीं. इस मामले में याची के पिता को गुजरे हुए 53 साल हो चुके हैं और याचिकाकर्ताओं की आयु की 50 से ऊपर है. याची की मां की मौत 1999 में हो गई थी और 2017 में जाकर उन्होंने लीगल नोटिस दिया. संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय से मांग करने के लिए कानूनी अधिकार साबित करना जरूरी है जो याची नहीं कर पाया.

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