चंडीगढ़: हरियाणा में आरक्षण का मुद्दा एक बार गरमाने वाला है. दरअसल राज्य सरकारों को ओबीसी आरक्षण के लिए जातियों की सूची तैयार करने का अधिकार देने वाले बिल पर लोकसभा के बाद अब राज्यसभा ने मुहर लगा दी है. संविधान में 127वें संशोधन के लिए लाए गए विधेयक (OBC list amendment bill) के तहत राज्यों को अपने मुताबिक ओबीसी आरक्षण के लिए सूची तैयार करने की ताकत मिलेगी. अब ये बिल राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद देश भर में कानून के तौर पर लागू हो जाएगा.
इस नए कानून से हरियाणा समेत कई राज्यों को स्थानीय स्तर पर जातियों को ओबीसी आरक्षण की सूची में शामिल करने का मौका मिलेगा. हम आपको बताते हैं कि इस नए कानून से हरियाणा पर क्या पड़ेगा. हरियाणा में आरक्षण को लेकर समय-समय पर आंदोलन होते रहते हैं. आरक्षण को लेकर आखिरी बड़ा आंदोलन साल 2016 में जाटों (jaat reservation agitation) की तरफ से किया गया था. इस आंदोलन में खूब हिंसा हुई थी और कई लोगों की जान भी गई थी. बाद में सरकार ने जाटों के सामने झुकते हुए जाटों को आरक्षण दे दिया था. हालांकि जाट आंदोलन के बाद सरकार ने जाटों को अलग से आरक्षण नहीं दिया गया था, उन्हें इकॉनोमिकल वीकर सेक्शन (EWS) के तहत आरक्षण दिया गया था. जिसमें कई अन्य जातियों को भी शामिल किया गया था. ये आरक्षण 10 फीसदी था.
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बाद में जाट आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक लगा दी गई थी. ऐसे में इस नए बिल के पास होने से अब हरियाणा में आरक्षण को लेकर एक बार फिर से माहौल गरमाने वाला है. क्योंकि अब आरक्षण देना राज्य सरकार के हाथ में है. नए बिल और हरियाणा में इसके प्रभाव को लेकर हमने राजनीतिक विश्लेषक और पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के वकील रमेश कुमार बामला से बात की. उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण बिल पास करने का स्वागत किया जाना चाहिए. इससे राज्य सरकारों के पास यह अधिकार आ गया है कि वे किसी भी जाति को ओबीसी में शामिल कर सकती है.
उन्होंने कहा कि इससे जो जातियां पिछले लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रही थी अब राज्य सरकारों के लिए उनकी मांगों को पूरा करना आसान हो गया है, लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है. बिल पारित होने के बावजूद राज्य सरकारों को इसकी अलग तैयारी करनी पड़ेगी. उन्हें इसके लिए एक खास रणनीति तैयार करनी होगी तभी वे इस इस बिल को प्रदेशों में लागू कर पाएंगे. हरियाणा को लेकर उन्होंने कहा कि जिन जातियों को हरियाणा में आरक्षण दिया गया है उनमें से कई जातियां ऐसी हैं जिन्हें केंद्र में आरक्षण नहीं दिया जाता. ऐसे में केंद्र सरकार सबसे पहले ये सुनिश्चित करें कि जिन जातियों को प्रदेश में आरक्षण प्राप्त है उन्हें केंद्र में भी आरक्षण दिया जाए. इसके अलावा आरक्षण में 50% की सीमा तय की गई है, उसे भी हटाया जाना चाहिए.
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हरियाणा में जाट आंदोलन का मुद्दा काफी गर्माया था. तब राज्य सरकार केंद्र का नाम लेकर हमेशा इससे बचती आई, लेकिन अब राज्य सरकार के पास केंद्र का नाम लेने की गुंजाइश नहीं बची है क्योंकि अब उसे खुद अधिकार दे दिया गया है. ऐसे में अन्य जातियां भी आरक्षण का मुद्दा उठा सकती हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि जाट एक सामान्य वर्ग है तो उन्हें आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. क्योंकि गरीब लोग तो हर जाति में होते हैं और उन्हें आरक्षण मिलना ही चाहिए. बल्कि आरक्षण जाति के आधार पर नहीं आर्थिक तौर पर मिलना चाहिए चाहे वह कोई भी जाति हो, लेकिन आर्थिक तौर पर आरक्षण देने की बात कोई सरकार नहीं उठाती. क्योंकि ये वोट बैंक का मुद्दा है. कोई भी सरकार इस मुद्दे को छोड़कर अपना वोट बैंक बिगाड़ना नहीं चाहती.
हरियाणा में ओबीसी आरक्षण के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा की जनसंख्या 2 करोड़ 53 लाख 50 हजार है. जिनमें ओबीसी मतदाताओं की जनसंख्या 24 प्रतिशत हैं. जिन्हें 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. इनमे 16 प्रतिशत बीसी-ए और 11 प्रतिशत बीसी-बी को दिया गया है. बीसी-ए में जातियों की संख्या ज्यादा है वहीं बीसी-बी में जातियों की संख्या कम है. जाटों को इकॉनोमिकल वीकर सेक्शन (ईडब्लयूएस) के तहत आरक्षण दिया गया था. जिसमें कई अन्य जातियों को भी शामिल किया गया था.
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अब जब ये नया बिल लागू होगा तो आरक्षण की रणनीति सरकार को भारी भी पड़ सकती है. वोट बैंक बढ़ाने के चक्कर में सरकार एक बड़ा वोट बैंक गंवा भी सकती है. क्योंकि अगर सरकार जाटों को आरक्षण देती है तो अन्य जातियां जैसे- राजपूत, बढ़िया, ब्राह्मण आदि भी सरकार के सामने आरक्षण की मांग उठाएंगे. अगर मांग नहीं मानी गई तो ये लोग सरकार के खिलाफ आंदोलन भी शुरू कर सकते हैं. ऐसे में सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी कि वह किस जाति को आरक्षण दे और किस जाति को आरक्षण न दे. आरक्षण की सीमा भी 50% सीमित है, सरकार इससे ऊपर नहीं जा सकती. इसलिए सरकार को इस मामले में बहुत तो समझकर काम करने की जरूरत पड़ेगी नहीं तो आरक्षण की ये राजनीति सरकार को उल्टी भी पड़ सकती है.