चंडीगढ़: लॉकडाउन के बीच मजदूरों का पलायन जैसे ना खत्म होने वाली दास्तां बनती जा रही है. प्रवासी मजदूरों के पलायन की ये कहानी ना सिर्फ दर्दनाक है, बल्कि इसने पूरे सिस्टम के खोखलेपन की पोल खोलकर रख दी है. कोई पैदल, कोई साइकिल पर, कोई रिक्शा पर तो कोई ठेले पर, जिसे जो मिल रहा है उसी का सहारा लेकर मजदूर चले जा रहे हैं. सड़कों पर एक खत्म ना होने वाली कतार सी नजर आ रही है.
यमुनानगर में पुलिस की बर्बरता!
विचलित करने वाली तस्वीर तो यमुनानगर से सामने आई. जब मजदूरों को घरे जाने कि कीमत पुलिस की लाठियां खाकर चुकानी पड़ी. घर वापसी की उम्मीद लिए पंजाब से प्रवासी यमुनानगर पहुंचे. यहां प्रशासन ने उन्हें करेड़ा खुर्द गांव में के स्कूल में ठहराया. खाने-पीने और रहने की बदइंतजामी को देखते हुए मजदूरों ने घर जाने की जिद्द की. प्रवासी मजदूरों ने नेशनल हाईवे पर प्रदर्शन किया. सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची. मजदूरों को समझाने या उनकी परेशानी सुनने की जगह पुलिस ने लाठी मारना ही उचित समझा.
'प्लीज हमें घर जाने दो'
करनाल की तस्वीरें तो आपको विचलित कर सकती हैं. ना तो मजदूरों के पास पैसा है और ना ही खाने-पीने की कोई व्यवस्था. मरते क्या ना करें. प्रशासन की तरफ से भी कोई सहायता नहीं मिल रही. जब उन्होंने पैदल ही घर जाने का फैसला किया तो पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक दिया. जिसके बाद रोते-बिलखते मजदूरों ने सरकार से अपील करते हुए कहा कि प्लीज हमें घर जाने दो. इन मजदूरों की हालत ऐसी है कि देखकर किसी का भी दिल पसीज जाए. हैरानी की बात बस ये है कि ना तो प्रशासन का दिल पसीजा और ना ही सरकार का. अब भी ये मजदूर घर जाने की आस लिए जी रहे हैं.
जब मजदूरों ने चुना जंगलों का रास्ता
सोनीपत में कुछ प्रवासी मजदूर तपती धूप में खेतों और जंगलों के रास्तों से अपने घर के लिए जाते दिखे. ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत के दौरान मजदूरों ने अपनी दर्द भरी दास्तां सुनाई. उन्होंने कहा कि पुलिस के डर से उन्होंने इस रास्ते को चुना है. मजदूरों ने बताया कि पुलिस उन्हें जाने नहीं देती. ना तो उनके पास पैसे हैं और ना ही खाने का सामान. ये मजदूर लुधियाना में काम करते थे. लॉकडाउन की वजह से काम नहीं मिला. थोड़े बहुत दिन बचे हुए पैसों से गुजारा किया. जब पैसे खत्म हो गए तो उन्हें प्रशासन से कोई मदद भी नहीं मिली. जिसके बाद उन्होंने उबड़-खाबड़ रास्तों को चुनकर घर जाना बेहतर समझा.
दो राज्यों के बीच फंसे प्रवासी मजदूर
रोहतक में भी तस्वीर ज्यादा अलग नहीं मिली. सरकार और प्रशासन की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिलने पर उनका गुस्सा फूट पड़ा. यूपी जाने वालों मजदूरों ने कहा कि देश में वीआईपी कल्चर है. चीन के वुहान से तो लोगों को भारत लाया जा सकता है, लेकिन सरकार और प्रशासन हमें अपने ही घर जाने से रोक रही है. यूपी के बॉर्डर तक जाकर वापस लौटी गर्भवती महिला की आंखों से आंसू सूखने का नाम ही नहीं ले रहें. प्रशासन ने मदद के नाम पर महिला को दर्द कम करने के लिए पीने की सिरप और थोड़े से नींबू दे दिए.
फरीदाबाद में फंसे प्रवासी मजदूर
फरीदाबाद में भी सैकड़ों मजदूर फंसे हुए हैं. मजदूरों ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से उन्हें कोई साधन नहीं मिल रहा है. जिसके चलते वो पैदल ही घर जा रहे हैं. प्रवासी मजदूरों ने बताया कि उन्हें यूपी के महोबा जाना है. जिसकी दूरी यहां से सात सौ किलोमीटर है. उन्होंने बताया कि दिन के समय पुलिस सड़कों पर उन्हें चलने नहीं देती. जिसके चलते वो रात में सफर कर रहे हैं. प्रशासन के दावों को उन्होंने हवा-हवाई बताया.
अंबाला में पुलिस की बेरुखी
अंबाला में प्रवासी श्रमिक सड़कों पर हैं और तपती धूप में अपना सफर पूरा करने की कोशिश में हैं. भारी संख्या में प्रवासी मजदूर तपती धूप में अपने बीवी-बच्चों के साथ यूपी और बिहार का सफर पैदल ही तय करते दिखे. मजदूरों ने बताया कि पानी में भीगे चने खाकर पैदल सफर तय कर रहे हैं. हालांकि अन्य मजदूर ने बताया कि उन्हें रास्ते में खाना दिया गया है.
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हरियाणा-पंजाब बॉर्डर पर पुलिस की सख्ती के बाद प्रवासी मजदूर खेत खलिहान से होते हुए पैदल ही अपने सफर के लिए निकल पड़े. ईटीवी भारत के साथ बातचीत में प्रवासी मजदूरों ने बताया कि वो तकरीबन 1 हफ्ते से जम्मू और लुधियाना से अपना सफर पैदल ही तय कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने अपने-अपने राज्यों के अंदर बाकायदा रजिस्ट्रेशन भी करवाया. लेकिन उसका जवाब ना आने पर वो पैदल ही अपने घरों के लिए निकल पड़े. जगह-जगह पर पुलिस उन्हें वापस खदेड़ने का काम कर रही है. लेकिन वो खेतों, नदियों और नालों से होते हुए लगातार भूखे पेट सफर तय कर रहे हैं.