चंडीगढ़ः हरियाणा की राजनीति में हमेशा तीन लालों देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल का जिक्र होता रहता है. लेकिन बीते पांच सालों में प्रदेश की सियासत जिस सड़क पर चली है, उसको देखकर यही कहा जा सकता है कि मौजूदा वक्त में सूबे की सियासत में मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल बस अकेले 'लाल' हैं.
2014 में हरियाणा की कमान मनोहर लाल के हाथ में आने के बाद से प्रदेश की पॉलिटिक्स धीरे-धीरे ना सिर्फ मनोहर लाल के इर्द-गिर्द सिमटती दिखाई दे रही है. बल्कि दिवंगत हो चुके तीनों लालों देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल की सियासी विरासत भी खत्म होने के कगार पर है.
खतरे में तीन 'लालों' की विरासत
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश स्तर पर हरियाणा में मनोहर लाल ने बीजेपी की कमान संभाल रखी थी और इस दौरान देवीलाल परिवार के तीन चिरागों दुष्यंत चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला की सियासी दुर्गति देखने को मिली. 2014 में हिसार से सांसद बने दुष्यंत चौटाला को बीजेपी उम्मीदवार बृजेंद्र सिंह से 3 लाख 14 हजार 68 वोटों के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा.
सोनीपत और कुरुक्षेत्र लोकसभा सीटों पर दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए.
बात अगर बंसीलाल के कुनबे की करें तो भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से चुनाव लड़ रही उनकी पोती श्रुति चौधरी को भी बीजेपी उम्मीदवार धर्मबीर सिंह से 4 लाख 44 हजार 463 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा.
भजनलाल के पोते भव्य बिश्नोई भी हिसार लोकसभा सीट से ताल ठोकर रहे थे. लेकिन मनोहर लाल के सियासी चक्रव्यूह में फंस कर वो भी अपनी जमानत जब्त करा बैठे.
2014 में मनोहर लाल के सीएम बनने के बाद से ही हरियाणा में बीजेपी एक के बाद एक जीत हासिल कर रही है. सूबे की सत्ता संभालने के बाद से मनोहर लाल ने फरीदाबाद और गुरुग्राम नगर निगम बीजेपी के खाते में डाला. उसके बाद 2018 में करनाल, हिसार, पानीपत, यमुनानगर और रोहतक समेत पांच नगर निगमों के चुनाव में बीजेपी को प्रचंड जीत दिलाई
जींद, हिसार, रोहतक में पहली बार जीती बीजेपी
जिस जींद विधानसभा सीट पर बीजेपी ने कभी जीत दर्ज नहीं की थी, विधानसभा के उपचुनाव में मनोहर लाल उस सीट को भी बीजेपी की झोली में ले आए. लोकसभा चुनाव 2019 में तो बीजेपी ने रोहतक और हिसार लोकसभा सीटों पर कब्जा कर लिया, जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो.
मनोहर लाल की अगुवाई में ही प्रदेश बीजेपी ने अपनी जादुई रणनीति और सोशल इंजीनियरिंग के बूते हरियाणा की सभी 10 सीटें केंद्रीय नेतृत्व की झोली में डाल दिया.
गैर जाट नेता की ब्रांड इमेज
प्रदेश में फरवरी 2016 में हुए जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान सख्त रुख अपनाने को लेकर मनोहर लाल की छवि एक सख्त नेता की बन गई. ये भी कहा गया था कि जाट आंदोलन आरक्षण के लिए नहीं बल्कि जाट मुख्यमंत्री के लिए हुआ है. इसके बाद मनोहर लाल की छवि नॉन जाट नेता के तौर पर बननी शुरू हो गई.
सूबे की सियासत में बीजेपी ने भी मनोहर लाल को गैर जाट नेता के तौर पर ही पेश किया था. इसी रणनीति पर चलते हुए मनोहर लाल ने ना सिर्फ गैर जाटों को साधा बल्कि भजनलाल के बाद हरियाणा की सियासत का बड़ा चेहरा बनने वाले दूसरे गैर जाट नेता भी बन गए.
जाट और नॉन जाट की सियासत वाले सूबे में मनोहर लाल ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग से सियासत की धारा बदल दी. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे में भी उनकी खूब चली और दो बार विधानसभा चुनाव हारने वाले संजय भाटिया जैसे नेता को करनाल सीट से टिकट दिलाया और उन्हें जीत मिली.
सियासी जानकारों का मानना है कि लगातार जीत का परचम लहराने के बाद फिलहाल मनोहर लाल के मुकाबले हरियाणा में कोई दूसरा नेता नजर नहीं आ रहा है. रोहतक से दीपेन्द्र हुड्डा और सोनीपत से भूपेन्द्र हुड्डा की हार साथ ही कमजोर कांग्रेस इस चर्चा पर मुहर लगाते हैं.