चंडीगढ़: केंद्र सरकार की तरफ से नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिल गई है. सरकार का दावा है कि इस नई शिक्षा नीति से देश में शिक्षा के मायने को बदला जाएगा. इससे न सिर्फ युवाओं को शिक्षा के नए अवसर मिलेंगे, बल्कि रोजगार प्राप्त करने में भी आसानी होगी, लेकिन आम लोगों के मन में अभी भी शंका है कि आखिर इस नई शिक्षा नीति में ऐसा क्या है जिससे इतना बड़ा बदलाव आ जाएगा.
सबसे पहले ईटीवी भारत की टीम ने शिक्षाविद प्रोफेसर बिमल अंजुम से आसान भाषा में ये जानने की कोशिश की कि नई शिक्षा नीति, 12वीं तक के कक्षा के विद्यार्थियों के लिए नई शिक्षा व्यवस्था कितनी कारगर साबित होगी और बच्चों के भविष्य पर इसका क्या असर पड़ेगा, लेकिन इससे पहले हम आपको बता दें कि सरकार जो नई शिक्षा नीति लेकर आई है वो है क्या?
34 साल पुरानी थी शिक्षा नीति
आपको बता दें कि आज तक हमारे देश में जिस शिक्षा नीति के तहत पढ़ रहे हैं वो करीब 34 साल पुरानी है. साल 1986 में राजीव गांधी सरकार के दौरान लागू की गई थी और उसके बाद 1992 में इसमें थोड़ा बदलाव किया गया था. अब 1992 के बाद एजुकेशन पॉलिसी में बदलाव करने के लिए मंजूरी दी गई है. सरकार ने इस बदलाव को 5+3+3+4 फार्मूला के आधार पर किया है.
क्या है 5+3+3+4 फार्मूला ?
नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली शिक्षा में बड़ा बदलाव करते हुए 10+2 के फॉर्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है. अभी तक हमारे देश में स्कूली पाठ्यक्रम 10+2 के हिसाब से चलता रहा है, लेकिन अब ये 5+ 3+ 3+ 4 के हिसाब से होगा. इसका मतलब है कि अब स्कूली शिक्षा को 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए विभाजित किया गया है. इसमें प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, फिर तीसरी से पांचवीं तक दूसरा हिस्सा, छठी से आठवीं तक तीसरा हिस्सा और नौंवी से 12वीं तक आखिरी हिस्सा होगा. चलिए इस बात को एक टेबल से समझाते हैं.
क्या ये व्यवस्था फायदेमंद है?
बिमल अंजुम के मुताबिक, पहले अमीर लोग अपने बच्चे को पहली कक्षा से पहले प्राइमरी शिक्षा देते थे. आर्थिक रूप से पिछले लोगों के बच्चे करीब 6 साल की उम्र तक शुरुआती शिक्षा हासिल ही नहीं करते थे, लेकिन इस नई शिक्षा नीति के मुताबिक 3-6 साल के सभी बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है, जो बच्चे के मानसिक विकास के लिए जरूरी है.
कितना फायदेमंद है?
बिमल अंजुम कहते हैं कि पहले की शिक्षा नीति में जब उम्र और कक्षा के साथ कोई फार्मूला निर्धारित नहीं था. अब उम्र के हिसाब से संतुलन बनाते हुए ज्ञान हासिल करेगा, अब बच्चा जब 8 साल का होगा तो वो दूसरी कक्षा में होगा, लेकिन पहले इस उम्र का बच्चा तीसरी या चौथी कक्षा में पहुंच जाता था. ऐसे में बच्चों काफी दबाव बन जाता था. इस दबाव से बच्चों पर मानसिक बोझ भी आ जाता था, लेकिन अब नई शिक्षा नीति आने से ऐसा नहीं होगा.
फाउंडेशन स्टेज में बच्चों पर नहीं होगा किताबों का बोझ
बिमल अंजुम कहते है कि सबसे अच्छी बात ये है कि सरकार ने ये फैसला लिया है कि पहले पांच साल बच्चों को पढ़ाई संबंधित किसी भी तरह के बोझ से परे रखा जाएगा. विद्यार्थियों को किताबों का बोझ भी नहीं रहेगा. शिक्षक विद्यार्थियों को बस ओरल पढ़ाई करवाएंगे.
प्रीपेटरी स्टेज में बच्चे क्षेत्रीय भाषा में लेंगे शिक्षा
बिमल अंजुम का कहना है कि अब जोर इस पर दिया जाएगा कि कम से कम पांचवीं क्लास तक बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जा सके. किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी. स्कूल में आने की उम्र से पहले भी बच्चों को क्या सिखाया जाए, ये भी पैरेंट्स को बताया जाएगा.
उदाहरण के लिए जैसे पंजाब के बच्चों को शुरुआत में पंजाबी में ही पढ़ाया जाएगा. वहीं अगर एक स्कूल में अलग-अलग क्षेत्रों और मातृभाषा से ताल्लुक रखने वाले बच्चें पढ़ रहे हैं. तो ऐसे में उन बच्चों के लिए व्यवस्था की जाएगी.
मिडिल स्टेज के बच्चों के लिए होंगे वोकेशनल कोर्स
कक्षा 6 से ही बच्चों को वोकेशनल कोर्स पढ़ाए जाएंगे, यानी जिसमें बच्चे कोई स्किल सीख पाए. बाकायदा बच्चों की इंटर्नशिप भी होगी, चाहे वो कारपेंटर हो, आर्ट्स एंड क्राफ्ट या इलेक्ट्रिक कोर्स या कुछ भी हो सकता है. इसके अलावा छठी क्लास से ही बच्चों की प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग होगी. बच्चों को कोडिंग भी सिखाई जाएगी.
बिमल अंजुम ने बताया कि आज तक देश में स्किल्ड कर्मियों की कमी हमेशा खलती रही है, लेकिन ऐसी नीतियों से बचपन में ही बच्चों में एक स्किल डालने की कोशिश की जाएगी, ताकि भावी पीढ़ी का कौशल विकास भी हो सके.
दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं को बनाया गया आसान
पिछले एक दशक में बोर्ड परीक्षाओं में कई बदलाव किए गए. कभी 10वीं की परीक्षा को वैकल्पिक किया गया, कभी नबंर के बजाए ग्रेड्स की बात की गई, लेकिन अब परीक्षा के तरीके में बदलाव की बात नई शिक्षा नीति में की गई है. बोर्ड एग्जाम होंगे, और अब दो बार होंगे. लेकिन इनको पास करने के लिए कोचिंग की जरूरत नहीं होगी.
परीक्षा का स्वरूप बदल कर अब छात्रों की 'क्षमताओं का आंकलना' किया जाएगा, ना कि उनके यादाश्त का. केंद्र की दलील है कि नंबरों का दवाब इससे खत्म होगा. 2022-23 वाले सत्र से इस बदलाव को लागू करने की मंशा है.
इन बोर्ड परीक्षाओं के अतिरिक्त राज्य सरकारें कक्षा 3, 5 और 8 में भी परीक्षाएं लेंगी. इन परीक्षाओं को करवाने के लिए गाइड लाइन बनाने का काम नई एजेंसी को सौंपा जाएगा, जो शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत ही काम करेगी.
रिपोर्ट कार्ड में अतिरिक्त गतिविधियों के भी अंक जुड़ेंगे
छात्रों के वार्षिक रिपोर्ट कार्ड अब पहले की तरह तैयार नहीं किया जाएगा. किसी छात्र को फाइनल नंबर देते समय उसके व्यवहार, शिक्षा के अलावा अन्य गतिविधियों में उसके प्रदर्शन और उसकी मानसिक क्षमताओं का भी ध्यान रखा जाएगा. इसके अलावा रिपोर्ट कार्ड को 360 डिग्री असेस्मेंट के आधार पर तैयार किया जाएगा. इसमें छात्र खुद को भी अंक देंगे, विषय पढ़ाने वाले शिक्षक भी छात्र को अंक देंगे और छात्रों के सहपाठी भी उनका आंकलन करेंगे.
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