चंडीगढ़: हरियाणा मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान राज्य है. प्रदेश की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी कृषि से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है. यही नहीं देश में खाद्यान्न उत्पादन के मामले में हरियाणा दूसरे स्थान पर आता है. गेहूं और चावल यहां की प्रमुख फसलें हैं. हरियाणा खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर है और भारत के खाद्यान्न के केंद्रीय पूल में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है. हरियाणा ने केंद्रीय पूल में 14 प्रतिशत का अविश्वसनीय योगदान दिया है
हरियाणा के किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक मौसम की मार होती है. प्रदेश में इस साल मार्च महीने में हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं को नुकसान हो गया. करीब 70 फीसदी गेहूं की फसल खराब हो गई. सरकार ने किसानों को बेमौसमी बारिश से हुए नुकसान का मुआवजा देने की बात कही. लेकिन इसी बीच देश में कोरोनावायरस के बढ़ते दायरे के कारण 25 मार्च से लॉकडाउन हो गया. जिसके बाद सारी चीजें धरी की धरी रह गई.
सूत्रों ने कहा कि सर्वेक्षण करने वाले सरकारी अधिकारियों ने कुल 7.28 करोड़ रुपये के मुआवजे की सिफारिश की है, लेकिन प्रभावित किसानों को राशि का भुगतान नहीं किया गया है. यहां तक कि जिन किसानों ने अपनी फसल का बीमा करवाया था, उन्हें अब तक बीमा कंपनियों से उनके द्वारा दावा की गई राशि नहीं मिली है. सरकार की तरफ से इस तरफ कुछ किया भी जाता तो कोरोना संक्रमण की वजह से सब बंद हो गया.
केंद्र सरकार की तरफ से आत्मनिर्भर पैकेज के तहत किसानों को कई तरह की राहत देने की घोषणा की गई है. जिसमें छोटे किसानों के लिए 30,000 करोड़ का अतिरिक्त फंड नाबार्ड के जरिए तुरंत रिलीज किया जाएगा. ताकि रबी की फसलों की बुवाई का काम तेजी से हो सके. इससे 3 करोड़ किसानों को फायदा होगा. कृषि एक्सपर्ट का मानना है कि सरकार के इस कदम से किसानों को काफी फायदा होगा.
वहीं किसान नेता गुरनाम सिंह का मानना है कि जब तक खेती में तीन चीजें नहीं सुधरेंगी. तब तक प्रदेश के किसानों की हालत नहीं बदलने वाली. उन्होंने कहा कि केन्द्र के पैकेज में एमएसपी बढ़ाने की बात नहीं हुई. जो कि बढ़ाना चाहिए था. 94 प्रतिशत फसल हमारी एमएसपी पर नहीं बिकती है. केवल 6 फीसदी फसल ही एमएसपी पर बिकती है. 2-3 फसलें ही सरकार खरीदती है. केन्द्र के पैकेज में एमएसपी बढ़ाने की कोई बात नहीं.
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गुरनाम सिंह के मुताबिक खेती में तीन चीजें जब तक नहीं सुधरेगी किसानों की हालत नहीं बदलेगी. खेती में सरकार निवेश करे. बाढ़ वाले इलाकों में ही पानी 200 फीट नीचे चला गया है. बाढ़ के पानी को रोककर खेती के इस्तेमाल लायक बनाने का कोई प्रयास नहीं हुआ. खेती को बचाने के लिए भारी भरकम बजट खर्च करने की जरूरत है. अभी कंफ्यूजन तो ड्रॉफ्ट को लेकर है. सरकार के राहत पैकेज पर कब ड्रॉफ्ट बनेगा और किसानों को इसका फायदा कब मिलेगा. इसका इंतजार सभी किसानों को है.