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हिंदी दिवस 2019: क्यों पहचान खो रही है हिंदी, जानिए क्या कहना है पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्रों का

हिंदी दिवस के मौके पर ईटीवी भारत की टीम पंजाब यूनिवर्सिटी पहुंची. जहां हमने युवाओं से हिंदी के बारे में उनकी राय जानी.

हिंदी दिवस युवाओं की राय
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Published : Sep 14, 2019, 1:32 PM IST

चंडीगढ़: 6500, ये वो भाषाएं है जो दुनियाभर में बोली और लिखी-पढ़ी जाती हैं. इन हजारों भाषाओं में एक भाषा ऐसी भी है जो पूरे विश्व में अपनी जगह बनाए हुए है. हम बात हिंदी की कर रहे हैं. ये वही हिंदी भाषा है जिसके कई शब्द ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने भी अपनाए हैं. जैसे आधार और बापू. दुख की बात ये है की आज जिस हिंदी को पूरा विश्व जानता है. उसी हिंदी को हिंदुस्तान के लोग ही भूल गए हैं. लिखना तो छोड़िए लोग हिंदी बोलने में भी शर्म महसूस करते हैं.

क्लिक कर जानिए क्या है हिंदी दिवस पर क्या है छात्रों की राय?

क्यों युवाओं को हिंदी बोलने में आती है शर्म ?
14 सितंबर को पूरा देश हिंदी दिवस के रूप में मना रहा है. कोशिश की जा रही है कि हिंदी को उसकी खोई हुई पहचान वापिस दिलाई जा सके. माना जाता है कि अगर हिंदी को उसकी खोई पहचान और सम्मान दिलाना है तो इसके लिए देश के युवाओं को आगे आना होगा. जिस देश के सभी युवा हिंदी बोलने में शर्म नहीं करेंगी. उस दिन में हिंदी दिवस की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

क्यों हिंदी से ज्यादा इंग्लिश बोलते हैं देश के युवा ?
हिंदी दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने पंजाब यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों से बातचीत की. हमने उनसे बात कर ये जानने की कोशिश की आखिर वो हिंदी बोलने में खुद को कितना सहज महसूस करते हैं? हिंदी को लेकर उनकी क्या राय है?

हिंदी सबकी लेकिन हिंदी का कौन ?
जब हिंदी को लेकर युवाओं से बात की गई तो युवाओं की ओर से कई तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली. इन युवाओं का कहना था कि हालांकि हिंदी हमारी मातृभाषा है और हमें हिंदी का इस्तेमाल सबसे ज्यादा करना चाहिए, लेकिन इस वक्त देश में ऐसी मानसिकता है कि अगर हम अपनी बात को इंग्लिश में रखेंगे तो ही सामने वाला हमारी बात को ज्यादा गंभीरता से लेगा.

ये भी पढ़िए: हिंदी दिवस 2019: 'अंग्रेजी नहीं आती तो शर्माने की जरूरत नहीं, हिंदी में एक्सपर्ट हैं तो नौकरियों की कमीं नहीं'

'नौकरी के लिए इंग्लिश आनी जरूरी है'
इन छात्रों ने कहा कि वो जहा भी नौकरी के लिए जाते हैं वहां इंटरव्यू में उन्हें इंग्लिश में ही बात करनी पड़ती है, इसलिए इंग्लिश का आना उनके लिए बेहद जरूरी है. नेपाल से आई एक छात्रा ने बताया की हिंदी बहुत अच्छी भाषा है. नेपाल में भी बहुत से लोग हिंदी में ही बात करते हैं. हालांकि वहां ज्यादातर लोग नेपाली भाषा बोलते हैं, लेकिन लगभग सभी लोगों को हिंदी भाषा बोलनी आती है और वो हिंदी में बात भी करते हैं.

हिंदी के लिए सिर्फ 1 दिन !
छात्रों ने ये भी कहा कि साल में सिर्फ 1 दिन हिंदी दिवस मनाया जाता है. ये काफी नहीं है. हमें पूरा साल लोगों को हिंदी को लेकर जागरूक करना चाहिए. जिससे हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को हिंदी भाषा के साथ जोड़ सकें. साल में सिर्फ 1 दिन हिंदी भाषा की बात करना और फिर पूरा साल इस बारे में कोई बात ना करना, इससे हिंदी को बढ़ावा नहीं मिल सकता है.

चंडीगढ़: 6500, ये वो भाषाएं है जो दुनियाभर में बोली और लिखी-पढ़ी जाती हैं. इन हजारों भाषाओं में एक भाषा ऐसी भी है जो पूरे विश्व में अपनी जगह बनाए हुए है. हम बात हिंदी की कर रहे हैं. ये वही हिंदी भाषा है जिसके कई शब्द ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने भी अपनाए हैं. जैसे आधार और बापू. दुख की बात ये है की आज जिस हिंदी को पूरा विश्व जानता है. उसी हिंदी को हिंदुस्तान के लोग ही भूल गए हैं. लिखना तो छोड़िए लोग हिंदी बोलने में भी शर्म महसूस करते हैं.

क्लिक कर जानिए क्या है हिंदी दिवस पर क्या है छात्रों की राय?

क्यों युवाओं को हिंदी बोलने में आती है शर्म ?
14 सितंबर को पूरा देश हिंदी दिवस के रूप में मना रहा है. कोशिश की जा रही है कि हिंदी को उसकी खोई हुई पहचान वापिस दिलाई जा सके. माना जाता है कि अगर हिंदी को उसकी खोई पहचान और सम्मान दिलाना है तो इसके लिए देश के युवाओं को आगे आना होगा. जिस देश के सभी युवा हिंदी बोलने में शर्म नहीं करेंगी. उस दिन में हिंदी दिवस की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

क्यों हिंदी से ज्यादा इंग्लिश बोलते हैं देश के युवा ?
हिंदी दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने पंजाब यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों से बातचीत की. हमने उनसे बात कर ये जानने की कोशिश की आखिर वो हिंदी बोलने में खुद को कितना सहज महसूस करते हैं? हिंदी को लेकर उनकी क्या राय है?

हिंदी सबकी लेकिन हिंदी का कौन ?
जब हिंदी को लेकर युवाओं से बात की गई तो युवाओं की ओर से कई तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली. इन युवाओं का कहना था कि हालांकि हिंदी हमारी मातृभाषा है और हमें हिंदी का इस्तेमाल सबसे ज्यादा करना चाहिए, लेकिन इस वक्त देश में ऐसी मानसिकता है कि अगर हम अपनी बात को इंग्लिश में रखेंगे तो ही सामने वाला हमारी बात को ज्यादा गंभीरता से लेगा.

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'नौकरी के लिए इंग्लिश आनी जरूरी है'
इन छात्रों ने कहा कि वो जहा भी नौकरी के लिए जाते हैं वहां इंटरव्यू में उन्हें इंग्लिश में ही बात करनी पड़ती है, इसलिए इंग्लिश का आना उनके लिए बेहद जरूरी है. नेपाल से आई एक छात्रा ने बताया की हिंदी बहुत अच्छी भाषा है. नेपाल में भी बहुत से लोग हिंदी में ही बात करते हैं. हालांकि वहां ज्यादातर लोग नेपाली भाषा बोलते हैं, लेकिन लगभग सभी लोगों को हिंदी भाषा बोलनी आती है और वो हिंदी में बात भी करते हैं.

हिंदी के लिए सिर्फ 1 दिन !
छात्रों ने ये भी कहा कि साल में सिर्फ 1 दिन हिंदी दिवस मनाया जाता है. ये काफी नहीं है. हमें पूरा साल लोगों को हिंदी को लेकर जागरूक करना चाहिए. जिससे हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को हिंदी भाषा के साथ जोड़ सकें. साल में सिर्फ 1 दिन हिंदी भाषा की बात करना और फिर पूरा साल इस बारे में कोई बात ना करना, इससे हिंदी को बढ़ावा नहीं मिल सकता है.

Intro:14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जा रहा है जिसका मकसद है कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा हिंदी के लिए जागरूक करना। लेकिन हिंदी अपने ही देश में पीछे जा रही है। ज्यादातर लोग इंग्लिश की ओर आकर्षित हो रहे हैं ।इसी मुद्दे को लेकर हमने पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर गुरमीत सिंह से बात की।


Body:ईटीवी से खास बातचीत करते हुए प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि आजादी से पहले तक हिंदी को ही देश की राष्ट्रभाषा माना जाता था। राष्ट्रभाषा शब्द का इस्तेमाल महात्मा गांधी ने भी किया था। उस समय राजभाषा का कोई शब्द नहीं था और हिंदी को राष्ट्रभाषा और मातृभाषा कहा जाता था ।जो आजादी के बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने की बात उठी तो, गैर हिंदी भाषी राज्यों के नेताओं ने इसका विरोध जताया। उनका कहना था कि अगर हिंदी को राजभाषा बना दिया गया तो गैर हिंदी भाषी राज्यों के लोग पिछड़ जाएंगे । उनके विरोध के बाद यह फैसला लिया गया कि अगले 15 सालों तक अंग्रेजी को भी हिंदी के समान दर्जा दिया जाएगा और यह सरकार की सबसे बड़ी भूल थी। क्योंकि इस वजह से हिंदी के साथ साथ दूसरी भाषाएं भी पिछड़ भी चली गई और अंग्रेजी पूरे भारत में छा गई।
प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं है कि अगर किसी को इंग्लिश नहीं आती तो उसके लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे ।लेकिन शर्त यह है कि व्यक्ति को जो भी भाषा आती हो वह बेहतरीन तरीके से आती हो ।तभी वह उस भाषा का रोजगार के लिए लाभ ले पाएगा।
उन्होंने कहा कि सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सरकारी दफ्तरों में इंग्लिश भाषा का ज्यादा प्रयोग होता है खासकर अदालतों में हिंदी का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाता महात्मा गांधी ने भी कहा था कि जो लोग अदालत में न्याय पाने आते हैं। उन्हें समझ ही नहीं आता कि उन्हें न्याय मिल पा रहा है या नहीं। क्योंकि वह लोग इंग्लिश नहीं समझ पाते। इसलिए कम से कम अदालतों में सिर्फ हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाए और बाद में उन लेखों को इंग्लिश में भी ट्रांसलेट किया जाए। लेकिन आज अदालतों में सिर्फ इंग्लिश भाषा का ही प्रयोग किया जाता।
प्रोफेसर गुरमीत ने कहा की लोगों के दिमाग में यह बात बैठ चुकी है कि अगर इंग्लिश नहीं आएगी तो उन्हें नौकरी भी नहीं मिलेगी। जबकि यह सरासर गलत है। क्योंकि आज के लोग एमबीए करते हैं इंजीनियरिंग करते हैं और इसके बावजूद भी उन्हें नौकरी नहीं मिलती। जबकि उन्हें इंग्लिश भी अच्छे से आती है। तो ऐसा मानना बिल्कुल गलत है कि नौकरियां इंग्लिश के साथ ही मिलती हैं ।जो लोग हिंदी में पूरी तरह से निपुण है उनके लिए भी नौकरियों की कोई कमी नहीं है।
प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि वे कोई भी भाषा सीखे उसे अच्छी तरह से सीखे तब वही भाषा आप को नौकरियां दिलाने में सहायक सिद्ध होंगी और ऐसा ही हिंदी भाषा के साथ भी है। अगर आपको हिंदी बेहतरीन तरीके से आती है तो हिंदी भाषा के जरिए भी आपको बहुत सी नौकरियां मिल जाएंगी।


जैसे स्कूलों में टीचर की नौकरी, यूनिवर्सिटी और कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी, ट्रांसलेटर की नौकरी ,रेडियो में ,टीवी में, अखबारों में , न्यूज़ चैनल्स में, फिल्मों में राइटिंग , विदेशों में भी हिंदी टीचर की बहुत सी नौकरियां है , इसके अलावा प्रूफ रीडिंग, पब्लिशिंग, हाउस स्क्रिप्ट राइटर की भी बहुत सी नौकरियां युवाओं को मिल सकती है । आजकल तो राजनीतिक पार्टियों ने भी हिंदी में निपुण युवाओं को नौकरी पर रखना शुरू कर दिया है। ताकि वह युवा पार्टी के नेताओं के लिए भाषण और नारे लिखकर दे सकें। इसके लिए राजनीतिक पार्टियां इन्हें अच्छा खासा वेतन भी देती है। इसलिए यह कहा जाना सरासर गलत है कि हिंदी पढ़ने वाले युवाओं को नौकरियां नहीं मिलेंगी अगर इस विषय में जानकारी हासिल की जाए तो हिंदी पढ़ने वाले युवाओं के लिए भी बहुत सी नौकरियां है।


one2one with. प्रोफेसर गुरमीत सिंह ,अध्यक्ष, हिंदी विभाग, पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़



Conclusion:
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