चंडीगढ़: हरियाणा सरकार ने पानी बचाने के लिए प्रदेश के कुछ ब्लॉक्स में धान की खेती पर रोक लगाने का फैसला किया था. साथ ही किसानों से वैकल्पिक फसलों की खेती करने के लिए भी कहा गया था. किसानों को किसी प्रकार का नुकसान ना हो, इसके लिए सरकार ने कुछ अनुदान की व्यवस्था भी की है. वहीं ठेकेदारों की मांग पर कोर्ट ने सरकार के फैसले को पलट दिया है.
पिहोवा के ठेकेदारों ने की थी मांग
कुरुक्षेत्र के पिहोवा की ग्राम पंचायत में सरकार की अधिसूचना को पंचायतों से ठेके पर जमीन लेने वाले ठेकेदारों ने कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके तहत सरकार ने पंचायतों से जमीन पट्टे पर लेने पर धान की खेती करने पर रोक लगा दी थी. इस मामले पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में सुनवाई हुई, जहां कोर्ट ने हरियाणा सरकार की 23 अप्रैल 2020 को जारी अधिसूचना पर तुरंत रोक लगा दी है.
हाई कोर्ट में ठेकेदारों का तर्क
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में 51 जमीन ठेकेदारों ने एक याचिका लगाई थी, जिसमें कहा गया था कि अपनी रोजी-रोटी को कमाने के लिए वो ग्राम पंचायतों से एक साल के लिए जमीन ठेके पर लेते हैं. जहां पर धान की बिजाई की जाती है और साल 2019-2020 तक उनके पास जमीन थी और लॉकडाउन की वजह से ऑक्शन नहीं हो पाया और हरियाणा सरकार ने लीज पर जमीन लेने वालों को कहा गया कि वो लीज मनी 5% बढ़ा दें, जिस पर सभी ने मंजूरी दे दी.
साथ ही ठेकेदारों की ओर से कहा गया कि पंजाब विलेज कॉमन लैंड एक्ट के तहत इस तरह का कोई भी प्रावधान नहीं है कि धान की बिजाई नहीं की जा सकती. याचिका में ये भी बताया गया कि इस ब्लॉक से नहर भी जाती है और यहां पर ट्यूबवेल भी हैं. इसलिए धान की बिजाई के लिए पानी की कोई कमी नहीं है. हाई कोर्ट ने इस मामले में हरियाणा सरकार के आदेशों पर रोक लगा दी है.
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क्या है 'मेरा पानी, मेरी विरासत' योजना
बता दें कि, 23 अप्रैल 2020 को हरियाणा सरकार ने 'मेरा पानी, मेरी विरासत' योजना के तहत एक अधिसूचना जारी की थी. जिसमें प्रदेश के कुछ ब्लॉक में पानी की कमी को देखते हुए सरकार ने धान की खेती पर रोक लगा थी. साथ ही सरकार ने दूसरी फसल अपनाने पर प्रति एकड़ पर 7 हजार रुपये का अनुदान देने का वादा भी किया. सरकार की ओर से कहा गया कि जो किसान धान की खेती की जगह ज्वार, मक्का, कपास, दालें सब्जी आदि की खेती करेंगे उनको सरकार 7 हजार रुपये प्रति एकड़ पर देगी.