चंडीगढ़: हिसार डिविजनल कमिश्नर ने 5 जून को संत रामपाल की महिला साथी सावित्री देवी की पैरोल की अपील को खारिज कर दिया था. जिसे सावित्री देवी के वकील अर्जुन चौहान ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी. जिसपर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सावित्री देवी को सुनाई गई बिना माफी आजीवन कारावास की सजा पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की सजा देने का अधिकार सिर्फ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के पास है. जिला अदालत इस प्रकार के फैसले नहीं सुना सकती. कोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला को पैरोल के योग्य करार देते हुए 5 जून 2020 को हिसार के डिविजनल कमिश्नर के पैरोल रद्द करने के आदेश को खारिज कर दिया है.
हाईकोर्ट ने कहा है कि याची कानूनन पैरोल के लिए अप्लाई कर सकती है जो उसका अधिकार भी है. हिसार डिविजनल कमिश्नर को हिदायत दी गई है कि याची से नए सिरे से एप्लीकेशन लेकर उसपर कानून के तहत फैसला लिया जाए.
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को ये बताया
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के और अन्य हाईकोर्ट के फैसलों से अवगत करवाया और बताया कि आजीवन कारावास की सजा काट रही सावित्री देवी के साथ मामले में दोषी पवन नामक बंदी को पैरोल मिल चुकी है, इसलिए सावित्री देवी को भी पैरोल मिलनी चाहिए.
एडवोकेट श्योराण ने कोर्ट को बताया कि सावित्री देवी ने उसे सुनाई गई सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए उसे पैरोल देने से वंचित नहीं किया जा सकता. सरकार की ओर से तर्क दिए गए की आजीवन कारावास के मामले में सजा का 1 वर्ष पूरा होने से पहले पैरोल नहीं दी जा सकती.
याची की ओर से कोर्ट को बताया गया कि जेल में रहने के दौरान उसके पति और बच्चों की मौत हो चुकी है और उसके घर की हालत बहुत खराब है. जिसकी मरम्मत करवाने के लिए 4 सप्ताह की बेल मांगी गई है. जस्टिस एस मुरलीधर की अध्यक्षता वाली बेंच ने चंडीगढ़ ज्यूडिशल एकेडमी को कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच के आदेशों की गाइडलाइन के आधार पर सभी जिला अदालतों के जजों को नोटिस भेजा जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की चूक ना हो.
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