चंडीगढ़: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि राज्य सरकार प्रदेश में बढ़ते संगठित अपराध को नियंत्रित करने के लिए कर्तव्यबद्ध है और इसी उद्देश्य के साथ विधानसभा में हरियाणा संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक- 2023 पारित कर दिया गया. विधानसभा बजट सत्र के आखिरी दिन इस विधेयक पर जमकर हंगामा हुआ. कांग्रेस विधायक शमशेर गोगी ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा, 'मैं इस विधेयक के खिलाफ हूं'. इस पर सीएम ने एमएलए गोगी से सवाल किया कि क्या आप गैंगस्टर के साथ हैं या सरकार के? इस सवाल के बाद कांग्रेस विधायकों ने सदन में हंगामा करना शुरू कर दिया. सदन में इस मुद्दे पर जोरदार बहस हुई.
हरियाणा विधानसभा में संगठित अपराध विधेयक 2023 को लेकर विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ. इस दौरान मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने यह भी पूछा कि क्या कांग्रेस पार्टी एमएलए गोगी के साथ है या फिर शमशेर गोगी जो कह रहे हैं वह उनके अपने विचार हैं. इसको लेकर एक बार फिर कांग्रेस ने सदन में जोरदार हंगामा किया. जिसके बाद 15 मिनट के लिए सदन की कार्रवाई स्थगित कर दी गई.
पढ़ें: इन किसानों को प्राथमिकता पर ट्यूबवेल कनेक्शन देगी सरकार, मुख्यमंत्री ने सदन में की घोषणा
इससे पहले विधानसभा बजट सत्र के आखिरी दिन हरियाणा संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक- 2023 पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि इस कानून से न केवल गैंगस्टरों, उनके मुखियाओं और संगठित आपराधिक गिरोह के सदस्यों के खिलाफ प्रभावी कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित होगी बल्कि इस तरह के मजबूत कानून से अपराधियों के खिलाफ ठोस और कानून सम्मत कार्रवाई करने के लिए पुलिस को सशक्त बनाएंगे.
मुख्यमंत्री ने कहा कि संगठित अपराधों में शामिल लोगों पर नकेल कसते हुए अपराधों की आय से अर्जित संपत्ति को जब्त करने और इन अधिनियम के तहत अपराधों के मुकदमों के निष्तारण के लिए विशेष अदालतों और विशेष अभियोजकों की व्यवस्था करने का भी प्रावधान किया गया है. मुख्यमंत्री ने अधिनियम की कुछ प्रावधानों को लेकर कांग्रेस द्वारा किए गए हंगामे पर स्पष्ट करते हुए कहा कि इस विधेयक में गैरकानूनी गतिविधि जारी रखने का अर्थ तीन वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय कोई संज्ञेय अपराध है.
जो संगठित अपराध सिंडिकेट की ओर से या तो अकेले या संयुक्त रूप किया गया है, जिसके संबंध में एक से अधिक आरोप-पत्र 10 वर्ष की पूर्ववर्ती अवधि के भीतर सक्षम न्यायालय के सम्मुख दायर किए गए हैं और इस पर कोर्ट ने ऐसे अपराध का संज्ञान लिया है. उन्होंने सदन को अवगत कराया कि विधेयक 25 (1) (ए) के प्रावधान के अनुसार इस अधिनियम के अधीन किसी संगठित अपराध को उप पुलिस महानिरीक्षक के रैंक से नीचे के अधिकारी के पूर्व अनुमोदन के बिना किसी पुलिस अधिकारी द्वारा कोई भी सूचना अभिलिखित नहीं की जाएगी. इसके अलावा, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन किसी अपराध का की जांच पुलिस उप अधीक्षक के रैंक से नीचे के किसी अधिकारी द्वारा नहीं की जाएगी. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उक्त अधिकारियों के समक्ष बयान दर्ज कराने के बाद दोषियों का बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किया जाएगा.