चंडीगढ़: खरीफ-2020 के दौरान कपास की फसल को सफेद मक्खी के हमले से बचाने के उद्देश्य से हरियाणा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने किसानों को एहतियाती उपाय करने की सलाह दी है, जिसमें नीम के घोल और कीटों के हमले की निगरानी रखने जैसे उपाय शामिल हैं. कृषि और किसान कल्याण मंत्री जे पी दलाल ने रविवार को चंडीगढ़ में जानकारी देते हुए बताया कि विभाग के अधिकारी सिरसा, हिसार, फतेहाबाद, जींद और भिवानी जिलों, जो राज्य में कपास के 80 प्रतिशत क्षेत्र में आते हैं, में सफेद मक्खी के हमले की घटनाओं की निगरानी कर रहे हैं.
अधिकारी कर रहे गांवों का दौरा
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के वैज्ञानिकों ने भी स्थिति का जायजा लेने तथा उपाय सुझाने के लिए विभिन्न जिलों में खेतों का दौरा किया. सिरसा, फतेहाबाद और जींद जिलों में सफेद मक्खी की घटनाएं इकनॉमिक थ्रेसहोल्ड लेवल (ईटीएल) से कम पाई गई, जबकि जिला हिसार के कुछ गांवों में थोड़े क्षेत्र में ईटीएल से ऊपर पाया गया. जिला भिवानी में सफेद मक्खी का संक्रमण स्तर लगभग 50 प्रतिशत है.
सफेद मक्खी से बचाव के लिए एडवाइजरी जारी
संक्रमण को आगे बढ़ने से रोकने के लिए विभाग ने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, सिरसा और बेयर क्रॉप साइंस द्वारा सुझाए गए उपायों सहित एक एडवाइजरी जारी की है, जिसमें प्रति एकड़ 40 से 50 कम लागत वाले पीले चिपचिपे ट्रैप की स्थापना करना शामिल है.
एडवाइजरी में ये भी कहा गया है कि बुवाई के 70 दिन बाद तक, किसान एक इमल्शन के दो स्प्रे कर सकते हैं, जिसमें एक प्रतिशत नीम का तेल और 0.05 से 0.10 प्रतिशत कपड़े धोने का डिटर्जेंट, या निम्बीसीडीन (0.03 प्रतिशत या 300 पीपीएम) शामिल है. ये इमल्शन एक लीटर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे किया जाना चाहिए. इस प्रक्रिया के बाद एक अन्य इमल्शन के दो स्प्रे करने होंगे, जिसमें कैस्टर ऑयल और 0.05 से 0.10 प्रतिशत कपड़े धोने वाला डिटर्जेंट शामिल है.
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किसान मध्य अगस्त के बाद कीट विकास नियामक कीटनाशकों जैसे डाईफेन्थाईयूरान (पोलो) नामक दवा की 200 ग्राम मात्रा, फ्लोनिकामिड 50डब्ल्यूजी दवा की 80 ग्राम मात्रा, डाईनॉटिफेयूरान 20 प्रतिशत एसजी की 60 ग्राम मात्रा और क्लोथियानिडिन 50डब्ल्यूजी की 20 ग्राम मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं. साथ ही एक ही कीटनाशक का लगातार छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए. इसके अलावा ज्यादा जानकारी के लिए कृषि अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं.
इस साल खरीफ के सीजन के दौरान राज्य के 14 जिलों में लगभग 7.36 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती की जा रही है. 95 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र बीटी कपास के अंतर्गत है. सफेद मक्खी पत्ती कर्ल वायरस रोग के प्रसार में एक वेक्टर के रूप में कार्य करती है और यह एक प्रवासी कीट हैं, जिससे इस पर नियंत्रण करना बहुत मुश्किल हो जाता है. इस कीट के अत्यधिक हमले से हरे कपास के पत्ते काले हो जाते हैं, इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है और उपज और उत्पाद की गुणवत्ता में काफी कमी आती है.
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