चंडीगढ़। भारतीय किसान यूनियन चढूनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार गुरनाम सिंह चढूनी का कहना है कि दिल्ली में 13 माह 13 दिन चले किसान आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार ने लिखित में हुए समझौते के अनुसार सभी प्रकार के केस वापस लेने का वादा किया था. लेकिन लगभग एक साल का समय बीत जाने पर भी अभी तक रेलवे के केस वापस नहीं किए गए. उन्होंने बताया कि यूनियन के मीडिया प्रभारी राकेश कुमार बैंस द्वारा मांगी सूचना में रेलवे विभाग ने बताया कि हरियाणा में किसान आंदोलन के दौरान 12 केस दर्ज किए गए थे. परंतु इस केसों को वापस लेने का कोई भी आदेश विभाग को नही मिला है.
हरियाणा सरकार ने भी वायदे पूरे नहीं किए : चढूनी ने कहा कि इसी प्रकार आंदोलन के दौरान हरियाणा सरकार से हुई वार्ता में भी सभी केस वापस लेने की शर्त मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मानी थी. सारे पुराने केस वापस लेने व आंदोलन के सहायक लोगों को किसी भी प्रकार से पीड़ित न करने का वायदा किया था. जबकि कई लोगों के हथियारों के लाइसेसंस व पासपोर्ट आदि का कार्य सरकार ने जान बूझकर रोका है. इसी प्रकार 30 मुकदमे पहले से आंदोलनों के पेंडिंग हैं. अभी तक कई केस वापस नहीं लिए गए. चढ़ूनी ने कहा कि 24 नवंबर किसानों के लिए अहम दिन है. इस दिन तीनों काले कानून वापस लेने के लिए आंदोलन की शुरुआत मोहड़ा अनाज मंडी से हुई थी. 26 नवंबर को दिल्ली के बॉर्डर पर 13 महीने 13 दिन आंदोलन चला था. इसी दिन किसान मसीहा सर छोटू राम की जयंती भी है.
जीएम फसलों का विरोध जारी : चढूनी ने कहा कि 24 नवंबर को मोहड़ा की अनाज मंडी में किसानों का बड़ा जनसमूह होगा. गुरनाम सिंह ने वार्ता के दौरान बताया जीएम फसलों का वे पहले दिन से विरोध करते आ रहे हैं. उन्होंने लगभग 15 वर्ष पूर्व भी मोनोसेंटो कंपनी द्वारा लुक -छिपकर किए जा रहे धान की फसल व मक्का की फसल के ट्राइल को जलाया था. जीएम सरसों से किसानों का नहीं, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का लाभ होगा और यह बीटी कॉटन में भी साबित हो चुका है. जीएम सरसों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का भ्रमजाल बताते हुए सरदार गुरनाम सिंह ने कहा कि उत्पादन और कीट न लगने का जो दावा किया गया है, वह बीटी कॉटन में पूरी तरह से झूठ साबित हुआ है. साथ ही उसने सरकार को यह भी ध्यान दिलाया कि देश में सबसे अधिक किसानों की आत्महत्याएं बीटी कॉटन के क्षेत्र में हुई हैं.
मालामाल हो रही हैं निजी कंपनियां : चढूनी के मुताबिक धीरे-धीरे किसानों के हाथ से बीज निकल रहा है और निजी कंपनियां बीज बेचकर मालामाल हो रही हैं. वहीं दूसरी ओर जीएम सरसों के बारे में देश का किसान कोई जानकारी नहीं रखता है. जीएम सरसों से होने वाले प्रभाव के बारे में कोई विस्तृत शोध के अभाव में इसका मानव स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होगा, इसका भी कोई तथ्यात्मक अध्ययन नहीं किया गया है. देश में पहले ही फसलों में प्रयोग कीटनाशक के जरिये कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां बढ़ रही हैं. जीएम सरसों से बने खाद्य तेलों या सरसों के साग के साथ कीटनाशक के रूप में देश के नागरिक जहर खाने को मजबूर होंगे. 60 के दशक में देश के पास अपनी जरूरत के खाद्य तेल का 97% उत्पादन अपना था. सरकारों की गलत आयात नीतियों के कारण अब लगभग 50 फीसदी से अधिक तेल का आयात करने लगे हैं. गेहू व सरसों का पैदावार रकबा लगभग बराबर था. परंतु गेहू का रेट 29% बढ़ा है, जबकि सरसों का रेट 22.5% बढ़ाया गया है. इस कारण से सरसों का पैदावार रकबा गेहूं में तब्दील हो गया है. इससे स्पष्ट है कि किसानों के लिए तिलहन उत्पादन फायदेमंद नहीं रहा. यह केवल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को मायाजाल है.
जुमला मुस्तरका मालिकन भूमि का मुद्दा उठाया : चढ़ूनी ने कहा कि जुमला मुस्तरका मालिकन भूमि के पंजाब व हरियाणा सरकार के आदेशों को लेकर विरोध शुरू किया जाएगा. हरियाणा व पंजाब द्वारा आदेश जारी किया गया है कि सभी शामलात देह व जुमला मुस्तरका मालकान भूमि के मालिकाना हक़ काश्तकार किसानो से वापस लेकर पंचायत व नगरपालिकाओं के नाम किया जाएगा, जबकि देह शामलात की ज़मीन पर आज़ादी से पहले भी किसानो का पूरा मालिकाना हक था. किसान इन जमीनो को खरीद बेच सकते थे. गिरदावरी भी कई पीढ़ियों से किसानो के नाम हैं. जुमला मालकान भूमि जमीन इस्तेमाल के समय किसानो की मालकियत ज़मीन में से कट लगाकर किसानों ने अपने साझे काम के लिए छोड़ी थी, जिसका किसी किसान कोई भी मुआवजा नहीं दिया गया.
किसानों की भूमि छीनने की साजिश : सरकार ने पहले रेवेन्यू सेटलमेंट के अनुसार सभी मुस्तरका मालकान व शामलात-देह की सभी तरह की ज़मीनों को पंचायत-देह में तबदील करने का आदेश दे दिया है, जोकि न्याय संगत नहीं है. शामलाल देह व जुमला मुस्तरका मालकान जमीनों पर पीढ़ियों से काश्त कर रहे किसान बेदखल हो जाएंगे. उनकी भूमि उनसे छिन जाएगी. जबकि इन जमीनो पर आज़ादी से पहले भी किसान काबिज थे और उक्त जमीन के हिस्सेदार के रूप में मालिक भी थे और उक्त जमीन बहुत बार आगे खरीदी बेची भी जा चुकी है. इस भूमि पर मकान, दुकान, फ़ैक्टरी भी बनाई हुई है. इसलिए ये फैसला किसानों व आमजन के हित में नहीं है. हम पंजाब व हरियाणा सरकार के इन आदेशों का विरोध करेंगे.
लखीमपुर खीरी का मुद्दा भी उठाया : लखीमपुर खीरी में किसान आंदोलन के दौरान केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा का विरोध करते हुए किसानों को उक्त मंत्री व उसके बेटे द्वारा कार से कुचल दिया गया था. 5 किसानों की मौत हो गई थी किंतु अभी तक भी आरोपी मंत्री व उसके पुत्र पर ठोस कानूनी करवाई नही हुई है. जबकि सत्ता का दुरुपयोग करते हुए निर्दोष किसानो को जेल में बंद कर दिया गया है और आरोपी मंत्री पर मुकदमा तक दर्ज नहीं किया गया. इससे पूरे देश के किसानों में रोष है. इसके खिलाफ भाकियू (चढूनी) बड़ा आंदोलन खड़ा करेगी.
एमएसपी पर केंद्र की कमेटी स्वीकार नहीं : किसानों को फसल का उचित मूल्य (MSP) ना मिलने के कारण देश का किसान कर्ज के दलदल में डूबा हुआ है व आत्महत्या कर रहा है. इसलिए किसानों को पूर्ण रूप से कर्जामुक्त किया जाए. जब देश में बड़े- बड़े पूंजीपतियों का कर्ज़ माफ किया जा रहा है तो फिर अन्नदाता किसान का कर्ज माफ क्यों नहीं किया जाता, जबकि देश की खाद्य सुरक्षा किसान के कंधों पर टिकी है व देश को अर्थव्यवस्था कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है. भाकियू (चढूनी) ये मांग करती है कि भाजपा सरकार अपने चुनावी वायदे अनुरूप किसानों को पूर्ण रूप से कर्जमुक्त करे. इसके साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी किसानों को मंजूर नहीं है, क्योंकि केंद्र सरकार जिन किसानों को सदस्य बनाया गया, उनका आंदोलन से कोई वस्ता नहीं था. वे लोग पहले से ही तीनों कानूनों के समर्थन में थे. (Haryana farmers again angry) (Farmers agitation on 24 November) (Rail stop in Ambala)