चंडीगढ़: हरियाणा के 14 जिले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर (delhi ncr) में आते हैं, लेकिन अब इनमें से कुछ जिले एनसीआर के दायरे से बाहर निकालने की मांग होने लगी है. इसको लेकर संसद में भी हरियाणा के सांसद आवाज उठा रहे हैं. खास तौर पर इस मुद्दे पर करनाल के सांसद संजय भाटिया और भिवानी के सांसद धर्मवीर सिंह लगातार अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. बीजेपी सांसद संजय भाटिया इस मुद्दे को संसद के शीतकालीन सत्र में उठा चुके हैं. उन्होंने अपनी बात पानीपत की औद्योगिक इकाइयों में कोयले के इस्तेमाल की मांग को लेकर उठाई.
संजय भाटिया ने करनाल लोकसभा क्षेत्र को दिल्ली एनसीआर से बाहर करने की भी सिफारिश की. संजय भाटिया ने पानीपत औद्योगिक क्षेत्र की मांग को उठाते हुए कहा कि करनाल लोकसभा क्षेत्र में हजारों औद्योगिक इकाइयां हैं, जोकि कोयले से चलती हैं. उनको पीएनजी पर अचानक से शिफ्ट नहीं किया सकता. इन औद्योगिक इकाइयों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कोयले के इस्तेमाल को लेकर नोटिस दिया जा रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से औद्योगिक इकाइयों में लगे बॉयलर को कोयले की जगह पीएनजी में बदलने के नोटिस आ रहे हैं. बॉयलर को पीएनजी पर लाने से ईंधन की लागत बहुत अधिक बढ़ जाएगी.
उन्होंने कहा कि इससे पानीपत की औद्योगिक इकाइयां वैश्विक स्तर पर कीमतों में मुकाबला नहीं कर पाएंगी इसलिए करनाल संसदीय क्षेत्र को दिल्ली एनसीआर से बाहर किया जा जाना चाहिए. उनके बाद इस मुद्दे को लेकर भिवानी महेंद्रगढ़ से बीजेपी के सांसद धर्मवीर सिंह ने भी अपनी बात को लोकसभा में रखा. उन्होंने केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी की मौजूदगी में कहा कि उनके लोकसभा क्षेत्र को एनसीआर से बाहर निकाल दिया जाए. उन्होंने साथी सांसदों की हंसी के बीच व्यंग करते हुए कहा कि जो अड़चनें कनॉट प्लेस में है. वही उनके निर्वाचन क्षेत्र भिवानी और नागल चौधरी क्षेत्र में भी हैं.
क्या है दिल्ली एनसीआर क्षेत्र? दरअसल 1985 में बने कानून के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की स्थापना की गई थी. जिसका दायरा वक्त के साथ-साथ बढ़ता गया. ये दायरा इतना बढ़ गया है कि आज हरियाणा के 14 जिले दिल्ली एनसीआर के क्षेत्र में आते हैं. यानी इसकी वजह से हरियाणा का करीब 63 फीसदी इलाका दिल्ली एनसीआर में शामिल है. हालांकि एनसीआर क्षेत्र के करीब पड़ने वाले प्रदेश के कुछ जिलों में विकास तो बहुत तेजी से हुआ, लेकिन जैसे ही दिल्ली से हरियाणा के एनसीआर जिले की दूरी बढ़ने लगी तो विकास पीछे चला गया.
यही वजह है कि यहां की जनता और सांसद अपने इलाकों को दिल्ली एनसीआर क्षेत्र से बाहर करने की मांग कर रहे हैं. हरियाणा के जिलों को दिल्ली एनसीआर से बाहर करने की मांग इसलिए भी की जा रही है कि क्योंकि इन इलाकों पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले लागू होते हैं. सुप्रीम कोर्ट में हुई जब दिल्ली एनसीआर रीजन को लेकर कोई बात होती है, तो नियम इन पर भी लागू हो जाते हैं. जब दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ता है और एनजीटी कोई भी कड़े कदम उठाती है, तो सीधे तौर पर इस क्षेत्र के दायरे में आने वाले उद्योगों पर उसका असर पड़ता है.
यानी जो नोटिस एनजीटी के एनसीआर क्षेत्र के दायरे में जारी होते हैं. वही हरियाणा के इन जिलों में भी आते हैं. भिवानी महेंद्रगढ़ की आसपास के इलाके राजस्थान से सटे हुए हैं, लेकिन वो दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में आते हैं, जिसकी वजह से कोई भी योजना आसानी से आगे नहीं बढ़ पाती. इसी वजह से इन इलाकों को दिल्ली एनसीआर क्षेत्र से बाहर करने की मांग की जा रही है.
क्या कहते हैं जानकार? इस मुद्दे पर विशेषज्ञ सुभाष सपड़ा ने कहा कि 1985 में प्लानिंग बोर्ड ने इस एनसीआर क्षेत्र को इकट्ठा के लिए काम शुरू किया. जिसका दायरा वक्त के साथ दूर-दूर तक फैलता गया. एनसीआर का दायरा बढ़ने की फायदे भी हैं और नुकसान भी. शुरुआत में हरियाणा में जो भी सरकार रहीं. उन सब की ही कोशिश रही कि हरियाणा के ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र को एनसीआर के दायरे में लाया जाए. उनकी इसके पीछे की सोच ये थी कि जिस तरह गुरुग्राम, फरीदाबाद और नोएडा में विकास हो रहा है. उसका ज्यादा से ज्यादा फायदा हरियाणा को भी मिल सके.
वक्त के साथ-साथ हरियाणा के 14 जिले इस दायरे में आ गए, लेकिन अब भी हरियाणा कि दूर-दराज इलाके खासतौर पर भिवानी के आसपास के क्षेत्रों को अलग करने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि जो क्षेत्र एनसीआर के दायरे में आता है. उसके विकास के लिए फंड होता है, लेकिन वो फंड भी इन इलाकों को नहीं मिल पा रहा है. वहीं एनसीआर क्षेत्र पर जो एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश होते हैं. वही इन पर भी लागू हो जाते हैं।. जिसकी वजह से इन क्षेत्रों में पड़ने वाले उद्योग धंधों पर सीधा असर पड़ता है. चाहे बात कोयले से चलने वाले उद्योगों की हो चाहे वे ईंट भट्टों की. वे सभी बंद हो जाते हैं.
एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन ना होने पर करोड़ों रुपए का उद्योगों का जुर्माना भी लग जाता है. शुरुआत में जब ये क्षेत्र दिल्ली एनसीआर में शामिल हुए, तब लगा था कि एकतरफ विकास होगा और रोजगार भी बढ़ेगा, लेकिन जिस तरह से दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में 10 साल पेट्रोल और 15 साल पुरानी डीजल वाहनों को बंद कर दिया गया. उसका असर हरियाणा में भी पड़ा. जब भी प्रदूषण की समस्या आती है, सबसे पहले ईंट भट्ठे बंद कर दिए जाते हैं, कई उद्योगों को भी बंद कर दिया जाता है, क्योंकि ज्यादातर उद्योग कोयले की मदद से चलते हैं. जब एनजीटी के निर्देश लागू होते हैं तो कोयले से चलने वाले उद्योगों पर इसका सीधा असर हो जाता है.
इसी वजह से ही करनाल के सांसद संजय भाटिया कह रहे हैं कि वहां जो उद्योग चलते हैं. उनके पास इतने संसाधन नहीं है कि वो गैस की मदद से चल पाए. इसलिए वो उनके क्षेत्र को इस दायरे से बाहर करने की मांग कर रहे हैं. जिससे यहां के उद्योगों को कोयला इस्तेमाल करने की इजाजत मिल जाए. सिर्फ सांसद ही नहीं बल्कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी इस संबंध में अपनी आवाज उठा चुके हैं. वे भी इस संबंध में पत्र लिखकर मांग कर चुके हैं कि हरियाणा के जो दूरदराज के क्षेत्र हैं उनको एनसीआर क्षेत्र से बाहर निकाला जाए, क्योंकि इन क्षेत्रों के डिवेलपमेंट के लिए प्रदेश को पैसा तो मिलता नहीं है, लेकिन जब भी कोई समस्या होती है तो यह क्षेत्र सीधे तौर पर प्रभावित हो जाते हैं. जिससे इन क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ जाता है.
एनसीआर क्षेत्र में आने वाले जिले: वर्तमान में दिल्ली एनसीआर में हरियाणा के 14 जिले शामिल हैं. इनमें गुरुग्राम, फरीदाबाद, करनाल, जींद, महेंद्रगढ़ चरखी दादरी, भिवानी, पलवल, पानीपत, झज्जर, रेवाड़ी, सोनीपत, नूंह और रोहतक आता है. यानी प्रदेश का करीब 63 फीसदी हिस्सा एनसीआर क्षेत्र में आता है.