चंडीगढ़: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने किसानों से अपील की है कि जल संरक्षण के लिए पिछले साल जिस प्रकार लगभग डेढ़ लाख एकड़ धान के क्षेत्र में अन्य वैकल्पिक फसलों की खेती की है, उसी प्रकार इस साल भी धान की जगह कम पानी वाली खपत की फसलों की खेती करें. साथ ही, जिन क्षेत्रों में धान के अलावा अन्य वैकल्पिक फसलों की खेती नहीं होती है, उन क्षेत्रों में किसान डीएसआर पद्धति से धान की बुवाई करें जिससे लगभग 50 प्रतिशत पानी की बचत होती है. मुख्यमंत्री आज पंचकूला में हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण द्वारा आयोजित 2 दिवसीय जल संगोष्ठी-अमृत जल क्रांति के पहले दिन के समापन सत्र में बोल रहे थे.
सीएम ने कहा कि किसानों को जल संरक्षण के लिए जागरूक करने की आवश्यकता है. इसके लिए आईईसी गतिविधियों को जोरों शोरों से चलाया जाए. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा किसानों को विभिन्न योजनाओं के तहत प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है. इन समर्पित प्रयासों से निश्चित तौर पर हरियाणा में जल को बचाने की दिशा में सार्थक परिणाम सामने आएंगे.
उन्होंने कहा कि हरियाणा देश में सर्वाधिक फसलों को एमएसपी पर खरीदने वाला राज्य है. किसानों को धान के स्थान पर कम पानी वाली फसलों जैसे बाजरा, कपास और मक्का इत्यादि की बुवाई को अपनाना चाहिए. हम किसानों को अन्य फसलों के विपणन में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आने देंगे.
डेमोंस्ट्रेटिंग फार्म तैयार करने के लिए संस्था को मुहैया की जाएगी जमीन: मुख्यमंत्री ने कहा कि कोई संस्था या कोई सरकारी संगठन भी यदि हरियाणा में प्राकृतिक खेती के डेमोंस्ट्रेटिंग फार्म तैयार करने के लिए आगे आएगी तो राज्य सरकार की ओर से उन्हें 50 या 100 डेमोंस्ट्रेटिंग फार्म तैयार करने के लिए जमीन मुहैया करवाएगी. वह संस्था सूक्ष्म सिंचाई का उपयोग, पेस्टिसाइड का कम उपयोग करके, कम पानी की खपत वाली फसलों की खेती करने जैसे विभिन्न उपायों को अपनाकर प्राकृतिक खेती करेगी. किसानों को यह डेमोंस्ट्रेटिंग फॉर्म दिखाएं जाएंगे, ताकि उन्हें प्राकृतिक खेती को अपनाने की ओर प्रेरित किया जा सके.
हरियाणा में सिंचाई के लिए 24 एमएएफ पानी की आवश्यकता: मनोहर लाल ने कहा कि पीने के पानी और अन्य उपयोगों को मिलाकर भी पानी की खपत सिंचाई में अधिक होती है. हरियाणा में 80 लाख एकड़ भूमि कृषि योग्य है, यदि औसतन दो फसलें भी लेते हैं और औसतन तीन बार पानी लगाते हैं, तो सिंचाई के लिए 24 एमएएफ पानी की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि पानी को बचाने के अलावा आज दूसरी आवश्यकता पानी को रिसाइकल करके उसका उपयोग को बढ़ाने की है.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने मेरा पानी-मेरी विरासत के तहत धान की उपज की बजाए अन्य फसलों की खेती के लिए किसानों को 7000 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दे रहे हैं. इस योजना को और सुदृढ़ बनाना है. विश्वविद्यालय इस दिशा में अनुसंधान करे और बागवानी से संबंधित विशेषज्ञ भी सिंचाई में खपत होने वाले पानी की बचत का सुझाव दें.
मोटे अनाज को पीडीएस से जोड़ने पर सरकार कर रही विचार: मुख्यमंत्री ने कहा कि मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार ने 3 महीने के लिए पीडीएस के माध्यम से डिपो पर बाजरे की सप्लाई के लिए अनुमति ली. हमें 5 महीने की अनुमति मिल गई थी कि लेकिन बाजरे की उपलब्धता उतनी नहीं थी. इसके अलावा, पीडीएस में मक्का को भी जोड़ने पर विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय मोटे अनाज की फसलों में से राज्य में सबसे अधिक मात्रा में कौन कौन सी फसलें पैदा की जा सकती, इस पर अनुसंधान करें.
जल संग्रह के लिए तालाब पूजन की प्रथा शुरू करने की अपील: मनोहर लाल ने कहा कि पहले गांवों में तालाबों के माध्यम से पानी का संग्रह किया जाता था और उनका उपयोग भी सुनिश्चित होता था. आज के समय में तालाबों के पानी का उपयोग कम होता जा रहा है. इसे बढ़ावा देने के लिए तालाब पूजन की प्रथा शुरू करने की जरूरत है. साल में एक दिन या किसी विशेष दिन पर गांवों में तालाब का पूजन किया जाए. इससे एक ओर पवित्रता का भाव आएगा तो दूसरी ओर पानी का संग्रह भी होगा.
'कॉन्क्लेव में आए सुझावों का अध्ययन कर नई योजना बनाएं अधिकारी': समापन सत्र के दौरान विशेषज्ञों द्वारा पानी को बचाने और सिंचाई में पानी की खपत को कम करने के लिए विभिन्न सुझाव दिए गए. सोलर ट्यूबवेल के लिए मोबाइल सोलर सिस्टम को बढ़ावा देना, डीएसआर पद्धति से धान की बुवाई, रेनीवेल योजना को तकनीकी रूप से सुदृढ़ करने के अनेक सुझाव आए. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को संबंधित सुझावों का विस्तार से अध्ययन कर नई योजना बनाने तथा पायलट प्रोजेक्ट लगाने के निर्देश दिए.
पिछले 8 सालों में जल संरक्षण के लिए बनाई गई विभिन्न योजनाएं: संगोष्ठी के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले 8 सालों में राज्य सरकार द्वारा जल संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाएं बनाई गई हैं जिसकी सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य संस्थाओं द्वारा भी समय-समय पर की गई है. उन्होंने कहा कि लगभग 2500 करोड़ रुपये की लागत से वेस्टर्न यमुना कनाल को मजबूत किया गया है, जिसका कार्य अगले साल तक पूरा हो जाएगा. इससे पानी की बचत भी होगी और और पानी की उपलब्धता भी बढ़ेगी.
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