चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव विजय पताका लहराने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर से विधानसभा चुनावों के लिए पूरी तरह तैयार है. हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक चुनावी विसात बिछ चुकी है और बीजेपी नेता एक बार फिर इन चुनावों को पूरी गंभीरता से ले रहे है, ऐसे में सवाल ये है कि क्या लोकसभा चुनाव और निगम चुनाव की तरह ही बीजेपी एक तरफा जीत हासिल करते हुए अब तक सबसे बड़ा बहुमत पाएगी, या फिर ऐन मौके पर कांग्रेस में किए बदलाव से बीजेपी का विजय रथ हरियाणा में रुक जाएगा.
पांच पार्टी मैदान में
14वें विधानसभा के लिए चुनाव होना है और इस बार प्रदेश में पांच बड़ी पार्टी मैदान में है, (बीजेपी, कांग्रेस, इनेलो, जेजेपी, और आप), लेकिन इनमें से 4 पार्टियां वो हैं , जिनका प्रदर्शन पिछले चुनावों में बिल्कुल रंगहीन रहा है. बीजेपी के सामने ये कहीं नहीं टिक पाए हैं. फिर भी अगर कोई पार्टी इस समय प्रदेश बीजेपी को चुनौती दे सकती है तो वो है कांग्रेस. ऐन मौके पर प्रदेश नेतृत्व में कांग्रेस हाईकमान ने बदलाव किया है लेकिन फिर भी गुटबाजी की बात लगातार दिख ही रही है. लेकिन लोकसभा चुनाव रोहतक और सोनीपत गंवाने के बाद इस बार हुड्डा खुद को साबित करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे.
इनेलो की वापसी मुश्किल!
वहीं चौटाला परिवार में हुए राजनीतिक बिखराव के बाद जननायक जनता पार्टी और इनेलो भी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, जिसके कारण अतीत के चुनावों के बाद पहली बार इनेलो इतनी कमजोर दिख रही है. लोकसभा चुनाव में तो इनेलो की कई सीटों पर जमानत तक जब्त हो गई और अब तक चुनाव से ठीक पहले पार्टी वरिष्ठ नेता अशोक अरोड़ा ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया, जिसके बाद इनेलो इस समय वापसी करती नहीं दिख रही है.
लोग भूल गए 'सीएम आया..सीएम आया'!
जेजेपी की बात करें तो ये पार्टी राज्य में अपना अस्तित्व बनाने में लगी हुई है, दुष्यंत चौटाला जो सोच कर इनेलो से अलग हुए थे, उसका प्रभाव ज्यादा समय तक नहीं रहा, 2018 में अनुशासनहीनता के आरोपों में इनेलो से बाहर निकाले जाने के बाद दुष्यंत और दिग्विजय को लेकर लोगों में दिवानगी थी और 'सीएम आया ..सीएम आया' के नारे भी लगातार लग रहे थे, लेकिन समय और पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद ये उत्साह धीरे-धीरे ठंडा पड़ा गया.
उपचुनाव का जोश लोकसभा चुनाव में ठंडा!
जींद उपचुनाव के दौरान बतौर निर्दलीय प्रत्याशी दिग्विजय के प्रदर्शन से दुष्यंत गुट में जान लगातार बनी रही, लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणामों के साथ ही लोगों का आकर्षण कम होता दिखा. इसमें सबसे बड़ी वजह रही दुष्यंत चौटाला की हार.
दिल्ली वाले मॉडल से लुभाएंगे!
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी तथा उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार के चुनाव में भले ही छोटे प्लेयर्स की भूमिका में हों, लेकिन कमतर बिल्कुल भी नहीं हैं, क्योंकि जिस तरह से ये पार्टी लोकसभा चुनाव में जूझती नजर आई वो काबिलोतारीफ थी, और एक बार फिर इस चुनाव दिल्ली वाले स्कूल मॉडल और अस्पतालों के विकास मॉडल के साथ 'आप' हरियाणा की जनता को रिझाने की कोशिश कर सकती है.
पहली बार में ही 'मनोहर' शुरुआत..
प्रदेश के राजनीतिक बिसात को समझने के लिए राजनीतिक दलों की इतिहास में झांकना अहम हो जाता है. सबसे पहले चुनावी महासमर की सबसे बड़ी प्लेयर पार्टी भाजपा की बात करते हैं. हरियाणा के इतिहास में 2014 के चुनाव में पहला मौका था, जब भाजपा ने 47 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत वाली अपनी खुद की सरकार बनाई और दूसरे दलों की बैसाखियों को हमेशा के लिए छोड़ दिया. करनाल से पहली बार विधायक बने मनोहर लाल पहली बार में ही सूबे के मुख्यमंत्री बन गए.
कैसा होगा लोगों का माइंडसेट?
पंजाब से अलग होने के बाद 2014 में 13वें विधानसभा में पहला मौका था जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और अब 14वें विधानसभा में बीजेपी ने 75 पार का नारा देते हुए बड़ा लक्ष्य बनाया है और ये लोकसभा चुनाव के परिणामों को देखते हुए मुमकिन भी लग रहा है, क्योंकि में बीजेपी ने राज्य की सभी 10 सीटें जीतने के साथ ही 79 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल की है, लेकिन उस समय बीजेपी को राष्ट्र भक्ति और पीएम के चहरे पर वोट मिला था लेकिन इस समय मतदाता उससे अलग मानसिकता के साथ भी जा सकते हैं, जैसा कि हम मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में देख चुके हैं, जहां कांग्रेस की सरकार बनने के बावजूद लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बाजी मार ली.
पीएम की ओपनिंग, 'फिनिशर' कौन?
अब आने वाले दिनों कभी भी प्रदेश में आचार संहिता लागू हो सकती है और चुनावो का एलान भी हो सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोहतक से बीजेपी के लिए प्रचार की शानदार ओपनिंग कर दी है. नड्डा के साथ ही अमित शाह के दौरे भी जल्द ही होने वाले हैं. पीएम ने जिस तरीके से artilce 370 और जम्मू कश्मीर की बात की है, उससे ये लग रहा है कि बीजेपी के बाकि नेता भी विकास की बातों के साथ राष्ट्र भक्ति का मुद्दा एक बार फिर भुनाएंगे.
दिवाली से पहले की 'आतिशबाजी'
जहां तक बात चुनाव की है तो वो अक्टूबर महीने के मध्य में होने की उम्मीद है और उसी के 4-5 दिनों के भीतर परिणाम भी सामने आने की उम्मीद है, जिस में सब क्लियर हो जाएगा कि क्या इस मौजूदा समय में पीएम मोदी और अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी ही सबसे बड़ी प्लेयर है या फिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा जो कि लोकसभा चुनाव में अपना सब कुछ गवां चुके हैं, वो चैंपियन बीजेपी को बाउंसर लगाते अपने कद के साथ न्याय कर दिल्ली में खुद को साबित कर पाएंगे या नहीं.