चंडीगढ़: हरियाणा में पंचायती राज एक्ट में संशोधन कर महिलाओं को मिलने वाला आरक्षण 50 प्रतिशत कर दिया गया है. साथ ही प्राइवेट क्षेत्रों में हरियाणा के युवाओं के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण देने वाले विधेयक को भी मंजूरी दी गई है. वैसे तो ये फैसले हरियाणा सरकार की ओर से लिए गए हैं, लेकिन इन दोनों का श्रेय सीधा-सीधा जननायक जनता पार्टी को दिया जा रहा है क्योंकि ये दो वो मुद्दें हैं जिन्हें जेजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में सबसे ऊपर रखा था. ऐसे में कई लोग ये सवाल उठा रहे हैं कि आखिर क्यों बीजेपी जेजेपी की घोषणाओं को इतनी प्राथमिकता से पूरा कर रही है.
इस बारे में ईटीवी भारत ने राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर गुरमीत सिंह से बात की. उन्होंने कहा कि इसके पीछे दो वजह हो सकती है. एक तो कृषि कानून पर हो रहा बीजेपी का विरोध और दूसरा बरोदा उपचुनाव. गुरमीत सिंह ने कहा कि गठबंधन को अभी एक साल हुआ है और क्योंकि जेजेपी की बीजेपी को जरूरत है, इसलिए बीजेपी के लिए जेजेपी की बात को नकारना मुश्किल हो जाता है.
बरोदा का वोट बैंक बना BJP की मजबूरी!
गुरमीत सिंह ने कहा कि जेजेपी को आलोचनाएं भी कृषि कानूनों को लेकर झेलनी पड़ी, लेकिन जेजेपी ने बीजेपी के साथ नहीं छोड़ा. वहीं बरोदा में जेजेपी को पिछले विधानसभा चुनाव में 32,000 वोट मिले थे. ऐसे में बीजेपी चाहती थी कि जेजेपी का वो वोट बैंक उसके पास ट्रांसफर हो जाए. इसके लिए हो सकता है कि बीजेपी ने जेजेपी की घोषणाओं को प्राथमिकता दी हो.
BJP नहीं लेना चाहती रिस्क!
इसके साथ ही गुरमीत सिंह ने ये भी कहा कि बीजेपी का जेजेपी के मुद्दों को इतनी तवज्जो देने का एक कारण ये भी हो सकता है कि पिछले कुछ वक्त में बीजेपी के दूसरे राज्यों में कई पुराने गठबंधन टूटे हैं. फिर चाहे वो महाराष्ट्र में शिवसेना का अलग होना हो या फिर पंजाब में कृषि कानूनों से खफा होकर एनडीए से अलग हुआ अकाली दल हो. ऐसा हो सकता है कि बीजेपी हरियाणा में कोई रिस्क ना लेना चाहती हो.
जेजेपी के मुद्दों को मिल रही प्रथामिकता के कारण चाहे जो भी हों, लेकिन जेजेपी इसे खुद की सफलता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है. इन घोषणाओं होने का पूरा श्रय डिप्टी सीएम दष्यंत चौटाला और उनकी पार्टी जेजेपी को दिया जा रहा है.
ये भी पढ़िए: अंबाला में अभी तक किसानों को नहीं मिली धान की पेमेंट, 505 करोड़ बकाया
गठबंधन में छोटी पार्टी होने के बावजूद जेजेपी ने अपने सबसे बड़े दो वादे पूरे करवा लिए हैं. जिसे वो अगले विधानसभा चुनाव में तो इस्तेमाल करेगी ही, साथ ही वो नए कृषि कानूनों को लेकर जनता के बीच पैदा हुए असंतोष की काट के तौर पर भी इन्हें इस्तेमाल करेगी.