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Union Budget 2023: बेरोजगारी और महंगाई बड़ी चुनौती, अर्थशास्त्री से जानिए बजट में क्या कर सकती है सरकार - बजट 2023 पर अर्थशास्त्री बिमल अंजुम

एक फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार का बजट (Union Budget 2023) पेश किया जायेगा. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण सरकार का नौवां बजट पेश करेंगी. बेरोजगारी और महंगाई को लेकर सरकार बुरी तरह घिरी हुई है. अगले साल 2024 में लोकसभा चुनाव हैं. ऐसे में सरकार के लिए इस बजट में हर वर्ग का ध्यान रखना बेहद चुनौतीपूर्ण है.

Economist Bimal Anjum on Union Budget 2023
बजट 2023 पर अर्थशास्त्री बिमल अंजुम
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Published : Jan 30, 2023, 8:19 PM IST

बेरोजगारी और महंगाई बड़ी चुनौती, अर्थशास्त्री से जानिए बजट में क्या कर सकती है सरकार

चंडीगढ़: देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार का नया बजट पेश करेंगी. 2024 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में जनता केंद्र सरकार से राहत की उम्मीद लगाए हुए हैं. कयास इस बात के भी लगाये जा रहे हैं कि चुनाव को देखते हुए इस बार केंद्रीय बजट में सरकार हर वर्ग को राहत देने के कुछ नये प्लान शामिल कर सकती है. केंद्रीय बजट को लेकर अर्थशास्त्र के जानकार किस तरह की उम्मीद कर रहे हैं. साथ ही बजट में क्या कुछ होना चाहिए, इसको लेकर ईटीवी भारत ने अर्थशास्त्री बिमल अंजुम से बातचीत की.

सवाल- सर्विस सेक्टर को लेकर आप सरकार से क्या उम्मीदें कर रहे हैं. क्या आपको लगता है कि केंद्र सरकार इस बजट में टैक्स स्लैब में राहत देगी?
जवाब- अगर हम सरकार के पिछले सालों के बजट को देखें तो सरकार का टारगेट गरीबी के उन्मुलन को लेकर था. इसमें कोई शक नहीं है कि सरकार ने करोना काल में गरीब लोगों के लिए अच्छा काम किया. गरीब जनता को भोजन मुफ्त में मुहैया करवाया. निश्चित तौर पर इससे गरीब तबके के लोगों को लाभ मिला. लेकिन इसका जो बोझ सबसे ज्यादा पड़ा, वो मध्यमवर्ग पर पड़ा है. पिछले 3 बजट में टैक्स के मामले को लेकर सरकार ने कुछ नहीं किया. अगर इसको पूर्णकालिक बजट के तौर पर देखा जाए तो यह सरकार का अंतिम बजट है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि टैक्स के स्लैब में बदलाव हो सकता है. टैक्स रेट को लेकर जो स्लैब तय किए गए हैं उसमें रिलीफ मिलने की उम्मीद की जानी चाहिए.

सवाल- क्या सरकार इस बजट में रोजगार के लिए कुछ नया कर सकती है?
जवाब- बेरोजगारी एक बहुत बड़ा चैलेंज है. बेरोजगारी के पीछे भी लॉजिक है. कुछ शैक्षणिक संस्थानों के बच्चे बड़े बड़े पैकेज पर विदेशों में जाते हैं. हम उसको लेकर तालियां बजाते हैं. ऐसी शिक्षा का क्या फायदा कि बच्चे अपने देश में काम नहीं कर सकते. इसके लिए हमारी नीतियां भी जिम्मेदार हैं कि हम उनको रिटेन नहीं कर पाते. ऐसे जो लोग हैं उनके लिए फंडिंग बढ़ाई जानी चाहिए ताकि वे स्वरोजगार की ओर अग्रसर हों. सरकार ने स्टार्टअप के लिए फंडिंग की है लेकिन हमें एमएसएमई सेक्टर में भी युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए काम करना पड़ेगा. इसके साथ ही एजुकेशन सेक्टर में सुधार की जरूरत है. हम जब बेरोजगारी की बात करते हैं, तो हम कहते हैं कि हमारे इतने प्रतिशत ग्रेजुएट अनइंप्लॉयड हैं. लेकिन उनमें से ज्यादातर नौकरी के काबिल भी नहीं हैं.

सवाल- भारत कृषि प्रधान देश है. किसान लगातार कई मुद्दों को लेकर आंदोलन में भी जुटे हैं. ऐसे में क्या आपको लगता है कि सरकार कृषि क्षेत्र के लिए कुछ विशेष घोषणा कर सकती है?
जवाब- अर्थशास्त्री होने के नाते मैं मानता हूं कि कृषि के मुद्दों पर राजनीति ज्यादा है. ऐसा नहीं है कि तीनों कृषि कानून बुरे थे. अगर हम सिर्फ एमएसपी की बात करें तो केवल उससे किसानों का भला नहीं हो सकता. क्योंकि उसके साथ साथ मार्केट को भी जनरेट करना पड़ेगा. अगर हम गन्ना ₹39 किलो के भाव से खरीदते हैं और शुगर ₹40 रुपये किलो बेचते हैं, इतनी सब्सिडी देकर आप उसके लिए पैसा कहां से लाएंगे. सरकार ने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के दस्तावेजों पर साइन किया है कि आप सब्सिडी को बंद करेंगे. हमें उन अनुबंधों को भी स्वीकार करना पड़ेगा. कृषि के क्षेत्र में सरकार इतना कर सकती है कि जो पैटर्न अभी चल रहा है उसको मेंटेन रखा जाए. उसको कम ना किया जाए. किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए इंसेंटिव दिए जाएं और उन फसलों का एमएसपी पहले से ही सरकार घोषित कर दे. ताकि हम नई फसलों की ओर भी पढ़ें.

सवाल- उद्योगों को लेकर सरकार बजट में क्या कुछ कर सकती है और आपको क्या उम्मीदें हैं?-
जवाब- अगर हम अंतरराष्ट्रीय पैरामीटर पर बात करें तो अभी बेहतर स्थिति नहीं है. अगर हम देश के सभी राज्यों की स्थिति और उनकी विभिन्नता को देखें तो इस पर काम करना जरूरी है. हर राज्य में कोई न कोई कला है. तो अगर लोग उन पारंपरिक कार्यों से जुड़े रहें तो उससे स्वरोजगार भी मिल जाएगा. सरकार को चाहिए कि जो विशेष तौर की कला में पारंगत हैं उनके लिए कोई स्पेशल इंसेंटिव दे. इस वक्त भारत में जी-20 हो रहा है. तो बाहर से आने वाले लोगों को जो गिफ्ट दें वह भी हमारे लोकल कला पर आधारित हो ताकि उनको भी बढ़ावा मिल सके.

सवाल- क्या आपको लगता है कि महंगाई के मुद्दे को भी इस बार के बजट में सरकार एड्रेस कर सकती है?

जवाब- अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट भी बता रही है कि जुलाई-अगस्त में अर्थव्यवस्था में रिसेशन का दौर आएगा. हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो सकता है और रहे लेकिन भारत में इसका असर बहुत ज्यादा नहीं पड़ेगा. अभी हमारे देश में जो इन्फ्लेशन रेट है वो ज्यादा खराब स्थिति की नहीं है. सभी आर्थिक प्रभाव के बावजूद डॉलर के मुकाबले रुपए खुद को एक स्थिर वाली स्थिति में रखा है. महंगाई बढ़ी है इसमें भी कोई दो राय नहीं है. पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए था. अगर पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा, तो वर्तमान में जो पेट्रोल और डीजल पर 30 से 32 रुपए टेक्स पड़ रहा है वह कम हो जाएगा. अगर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है तो उसे ना सिर्फ प्रोडक्शन की कीमत कम होगी बल्कि समान को लाने ले जाने पर जो खर्च होता है वह भी कम हो जाएगा. जिससे महंगाई भी कंट्रोल में आ जाएगी. इससे सरकार को कोई नुकसान नहीं होगा.

सवाल- रक्षा बजट क्या सरकार बढ़ाएगी? इसके साथ ही क्या OPS को लेकर भी सरकार कुछ करेगी.

जवाब- रक्षा बजट सरकार को बढ़ाना पड़ेगा. अगर रक्षा बजट बढ़ाया जाता है तो उसका हम पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा. पहले हम रक्षा मामलों में विदेशों पर निर्भरता ज्यादा थी. उससे हमारा पैसा बाहर जाता था. अब हमने जो मेक इन इंडिया पर फोकस किया है, उससे ना सिर्फ देश में हथियार बनने लगे बल्कि उससे लोगों को रोजगार भी मिला. इस दिशा में अगर डिफेंस बजट बढ़ता है तो उससे नुकसान नहीं होगा.

सरकार ने डिफेंस सेक्टर को पेंशन दिया वहीं 2004 के बाद अन्य सेक्टर की पेंशन बंद कर दी. अगर सरकार के सांसद या विधायक होते हैं तो उनको मल्टीपल पेंशन मिलती है. सोशल सिक्योरिटी के हिसाब से पेंशन होनी चाहिए. लेकिन उसमें एक यूनीफॉर्मिटी होनी चाहिए. बार-बार राजनीतिक दबाव में फैसले नहीं लेने चाहिए. कुछ राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम शुरू की गई है. केंद्र से जो पैसा वापस राज्यों को आता है उसको लेकर आरबीआई ने कहा है हम यह नहीं दे सकते. क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मैं यह मानता हूं कि सरकार को पेंशन देनी चाहिए, उसके लिए सरकार को प्रोविजन करना चाहिए. अगर डिफेंस और नेताओं को पेंशन दी जा रही है तो अन्य को भी पेंशन मिलनी चाहिए.

ये भी पढ़ें- Union Budget 2023: केंद्रीय बजट पेश होने से पहले जानिए हरियाणा के किसानों की क्या हैं मांगें?

बेरोजगारी और महंगाई बड़ी चुनौती, अर्थशास्त्री से जानिए बजट में क्या कर सकती है सरकार

चंडीगढ़: देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार का नया बजट पेश करेंगी. 2024 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में जनता केंद्र सरकार से राहत की उम्मीद लगाए हुए हैं. कयास इस बात के भी लगाये जा रहे हैं कि चुनाव को देखते हुए इस बार केंद्रीय बजट में सरकार हर वर्ग को राहत देने के कुछ नये प्लान शामिल कर सकती है. केंद्रीय बजट को लेकर अर्थशास्त्र के जानकार किस तरह की उम्मीद कर रहे हैं. साथ ही बजट में क्या कुछ होना चाहिए, इसको लेकर ईटीवी भारत ने अर्थशास्त्री बिमल अंजुम से बातचीत की.

सवाल- सर्विस सेक्टर को लेकर आप सरकार से क्या उम्मीदें कर रहे हैं. क्या आपको लगता है कि केंद्र सरकार इस बजट में टैक्स स्लैब में राहत देगी?
जवाब- अगर हम सरकार के पिछले सालों के बजट को देखें तो सरकार का टारगेट गरीबी के उन्मुलन को लेकर था. इसमें कोई शक नहीं है कि सरकार ने करोना काल में गरीब लोगों के लिए अच्छा काम किया. गरीब जनता को भोजन मुफ्त में मुहैया करवाया. निश्चित तौर पर इससे गरीब तबके के लोगों को लाभ मिला. लेकिन इसका जो बोझ सबसे ज्यादा पड़ा, वो मध्यमवर्ग पर पड़ा है. पिछले 3 बजट में टैक्स के मामले को लेकर सरकार ने कुछ नहीं किया. अगर इसको पूर्णकालिक बजट के तौर पर देखा जाए तो यह सरकार का अंतिम बजट है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि टैक्स के स्लैब में बदलाव हो सकता है. टैक्स रेट को लेकर जो स्लैब तय किए गए हैं उसमें रिलीफ मिलने की उम्मीद की जानी चाहिए.

सवाल- क्या सरकार इस बजट में रोजगार के लिए कुछ नया कर सकती है?
जवाब- बेरोजगारी एक बहुत बड़ा चैलेंज है. बेरोजगारी के पीछे भी लॉजिक है. कुछ शैक्षणिक संस्थानों के बच्चे बड़े बड़े पैकेज पर विदेशों में जाते हैं. हम उसको लेकर तालियां बजाते हैं. ऐसी शिक्षा का क्या फायदा कि बच्चे अपने देश में काम नहीं कर सकते. इसके लिए हमारी नीतियां भी जिम्मेदार हैं कि हम उनको रिटेन नहीं कर पाते. ऐसे जो लोग हैं उनके लिए फंडिंग बढ़ाई जानी चाहिए ताकि वे स्वरोजगार की ओर अग्रसर हों. सरकार ने स्टार्टअप के लिए फंडिंग की है लेकिन हमें एमएसएमई सेक्टर में भी युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए काम करना पड़ेगा. इसके साथ ही एजुकेशन सेक्टर में सुधार की जरूरत है. हम जब बेरोजगारी की बात करते हैं, तो हम कहते हैं कि हमारे इतने प्रतिशत ग्रेजुएट अनइंप्लॉयड हैं. लेकिन उनमें से ज्यादातर नौकरी के काबिल भी नहीं हैं.

सवाल- भारत कृषि प्रधान देश है. किसान लगातार कई मुद्दों को लेकर आंदोलन में भी जुटे हैं. ऐसे में क्या आपको लगता है कि सरकार कृषि क्षेत्र के लिए कुछ विशेष घोषणा कर सकती है?
जवाब- अर्थशास्त्री होने के नाते मैं मानता हूं कि कृषि के मुद्दों पर राजनीति ज्यादा है. ऐसा नहीं है कि तीनों कृषि कानून बुरे थे. अगर हम सिर्फ एमएसपी की बात करें तो केवल उससे किसानों का भला नहीं हो सकता. क्योंकि उसके साथ साथ मार्केट को भी जनरेट करना पड़ेगा. अगर हम गन्ना ₹39 किलो के भाव से खरीदते हैं और शुगर ₹40 रुपये किलो बेचते हैं, इतनी सब्सिडी देकर आप उसके लिए पैसा कहां से लाएंगे. सरकार ने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के दस्तावेजों पर साइन किया है कि आप सब्सिडी को बंद करेंगे. हमें उन अनुबंधों को भी स्वीकार करना पड़ेगा. कृषि के क्षेत्र में सरकार इतना कर सकती है कि जो पैटर्न अभी चल रहा है उसको मेंटेन रखा जाए. उसको कम ना किया जाए. किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए इंसेंटिव दिए जाएं और उन फसलों का एमएसपी पहले से ही सरकार घोषित कर दे. ताकि हम नई फसलों की ओर भी पढ़ें.

सवाल- उद्योगों को लेकर सरकार बजट में क्या कुछ कर सकती है और आपको क्या उम्मीदें हैं?-
जवाब- अगर हम अंतरराष्ट्रीय पैरामीटर पर बात करें तो अभी बेहतर स्थिति नहीं है. अगर हम देश के सभी राज्यों की स्थिति और उनकी विभिन्नता को देखें तो इस पर काम करना जरूरी है. हर राज्य में कोई न कोई कला है. तो अगर लोग उन पारंपरिक कार्यों से जुड़े रहें तो उससे स्वरोजगार भी मिल जाएगा. सरकार को चाहिए कि जो विशेष तौर की कला में पारंगत हैं उनके लिए कोई स्पेशल इंसेंटिव दे. इस वक्त भारत में जी-20 हो रहा है. तो बाहर से आने वाले लोगों को जो गिफ्ट दें वह भी हमारे लोकल कला पर आधारित हो ताकि उनको भी बढ़ावा मिल सके.

सवाल- क्या आपको लगता है कि महंगाई के मुद्दे को भी इस बार के बजट में सरकार एड्रेस कर सकती है?

जवाब- अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट भी बता रही है कि जुलाई-अगस्त में अर्थव्यवस्था में रिसेशन का दौर आएगा. हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो सकता है और रहे लेकिन भारत में इसका असर बहुत ज्यादा नहीं पड़ेगा. अभी हमारे देश में जो इन्फ्लेशन रेट है वो ज्यादा खराब स्थिति की नहीं है. सभी आर्थिक प्रभाव के बावजूद डॉलर के मुकाबले रुपए खुद को एक स्थिर वाली स्थिति में रखा है. महंगाई बढ़ी है इसमें भी कोई दो राय नहीं है. पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए था. अगर पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा, तो वर्तमान में जो पेट्रोल और डीजल पर 30 से 32 रुपए टेक्स पड़ रहा है वह कम हो जाएगा. अगर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है तो उसे ना सिर्फ प्रोडक्शन की कीमत कम होगी बल्कि समान को लाने ले जाने पर जो खर्च होता है वह भी कम हो जाएगा. जिससे महंगाई भी कंट्रोल में आ जाएगी. इससे सरकार को कोई नुकसान नहीं होगा.

सवाल- रक्षा बजट क्या सरकार बढ़ाएगी? इसके साथ ही क्या OPS को लेकर भी सरकार कुछ करेगी.

जवाब- रक्षा बजट सरकार को बढ़ाना पड़ेगा. अगर रक्षा बजट बढ़ाया जाता है तो उसका हम पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा. पहले हम रक्षा मामलों में विदेशों पर निर्भरता ज्यादा थी. उससे हमारा पैसा बाहर जाता था. अब हमने जो मेक इन इंडिया पर फोकस किया है, उससे ना सिर्फ देश में हथियार बनने लगे बल्कि उससे लोगों को रोजगार भी मिला. इस दिशा में अगर डिफेंस बजट बढ़ता है तो उससे नुकसान नहीं होगा.

सरकार ने डिफेंस सेक्टर को पेंशन दिया वहीं 2004 के बाद अन्य सेक्टर की पेंशन बंद कर दी. अगर सरकार के सांसद या विधायक होते हैं तो उनको मल्टीपल पेंशन मिलती है. सोशल सिक्योरिटी के हिसाब से पेंशन होनी चाहिए. लेकिन उसमें एक यूनीफॉर्मिटी होनी चाहिए. बार-बार राजनीतिक दबाव में फैसले नहीं लेने चाहिए. कुछ राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम शुरू की गई है. केंद्र से जो पैसा वापस राज्यों को आता है उसको लेकर आरबीआई ने कहा है हम यह नहीं दे सकते. क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मैं यह मानता हूं कि सरकार को पेंशन देनी चाहिए, उसके लिए सरकार को प्रोविजन करना चाहिए. अगर डिफेंस और नेताओं को पेंशन दी जा रही है तो अन्य को भी पेंशन मिलनी चाहिए.

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