चंडीगढ़: भारत-चीन विवाद इस समय चरम पर है. देश वासियों में चीन को लेकर गुस्सा इस कदर भर चुका है कि आज देश में शहर-शहर चीनी समान का बहिष्कार करने की बातें होने लगी हैं, लेकिन आज क्या हम इस स्थिति में हैं कि चीन के समान को पूरी तरह अपने जीवन से निकाल सकते हैं. इसी विषय पर ईटीवी भारत की टीम ने अर्थशास्त्री बिमल अंजुम से बातचीत की.
ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने अर्थशास्त्री बिमल अंजुम से सवाल किया कि क्या हम चीनी सामान का पूरी तरह से बहिष्कार कर पाने में सक्षम हैं तो उन्होंने इस बात से साफ इंकार कर दिया. उनका कहना है कि आज के दौर में भारतीय बाजार चीनी उत्पादों पर काफी निर्भर है. ऐसे में एक दिन में चीनी उत्पादों को अपनी जिंदगी से नहीं निकाल सकते हैं. इस रिपोर्ट में देखिए ईटीवी भारत के सवाल और अर्थशास्त्री बिमल अंजुम के जवाब.
सवाल: इस वक्त देश में कितना प्रतिशत सामान चाइना का इस्तेमाल हो रहा है?
जवाब: चीन से हमारा कुल आयात 16 से 18% है और उनका कहना है कि हमारे यहां से जो चीन को निर्यात होता है वह करीब 3% होता है. उनके मुताबिक अगर हम भावनाओं में बहकर यह सोचें कि हम चाइना के सामान का एकदम बहिष्कार कर लेंगे तो यह संभव नहीं है. उनका कहना है कि अगर हम चाइना के माल पर रोक भी लगा दें तो तब भी दो से तीन प्रतिशत आयात जारी रहेगा.
उन्होंने कहा कि हमारी कंपनियों ने चाइना की कंपनियों के साथ एग्रीमेंट किए हैं और कई कंपनियों ने कैपिटल गुड्स में इन्वेस्ट किया हुआ है, तो ऐसे में उनका जो सपोर्ट सिस्टम है वह चीन से ही चल सकता है. इन हालात में एकदम से उनका व्यापार बंद करना मुश्किल हो जाएगा. बड़े-बड़े ठेके और मशीनरी देश में इस्तेमाल हो रही है. वह भी चीन की है जो कंपनियों के चाइना की कंपनियों से कॉन्ट्रैक्ट हुआ है. वह भी 8 से 10 साल के हैं. ऐसे में चीन के उत्पादों का एकदम बहिष्कार कर पाना संभव नहीं है. उनके मुताबिक 8 से 10% तो इसमें कमी लाई जा सकती है, क्योंकि अभी लोगों की भावनाएं इससे जुड़ी हुई है.
सवाल: क्या लोग चीनी समान को खरीदना छोड़ देंगे?
जवाब: बिमल अंजुम के मुताबिक ऑटो इंडस्ट्री में 20 प्रतिशत उत्पाद चाइना से आता है. इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक बाजार में करीब 17 परसेंट आयात होता है. साथ ही हम जो आइटम या चीजें घर में इस्तेमाल करते हैं, उसमें भी हम 40 से 50% सामान चाइना का इस्तेमाल करते हैं. इसका मतलब है रसोई हो या डाइनिंग टेबल या फिर हमारा वॉशरूम यहां तक हमारा सारा सामान हम चाइना से लाते हैं. इसके साथ ही हमारे फर्नीचर का भी बहुत सारा सामान चाइना के बाजारों से आ रहा है.
45 फीसदी तक हम लेदर प्रोडक्ट भी चाइना से लेते हैं. हम चाइना पर डिपेंड नहीं करते तो यह कहना गलत है. हम यह भी कह सकते कि चाइना की इकोनॉमी भारतीय बाजार पर डिपेंड है.
उनके मुताबिक हमारी सरकारों ने पंच वर्षीय योजनाएं बनाईं, जिनकी दिक्कत यही रही कि कभी हम इंडस्ट्री को तो कभी कृषि को ही केंद्र में रखकर इस पर काम करते रहे, लेकिन जिस तरीके से हमें अपनी एमएसएमई को उठाना था वह हम नहीं कर पाए.
चाइना ने इसी मामले में हमें पीछे छोड़ा उनके मुताबिक पहले हम सोशलिस्टिक थे फिर हम मिक्स्ड में आए और अब हम कैपिटलस्टिक इकोनामी की ओर बढ़ रहे हैं. हमारे यहां छोटे-छोटे उद्योग से जुड़े लोगों को हमने ध्यान नहीं दिया. हमारे ज्यादातर उद्योग से जुड़े लोग चाइना से सामान लाते हैं और उसे यहां बेचते हैं भारत में बेशक मोबाइल की मैन्युफैक्चरिंग होती हो, लेकिन उसका ज्यादातर मटेरियल है. वह चाइना से आ रहा है यहां सिर्फ असेंबल हो रहा है
दुनिया के सभी देश चीन से करते हैं आयात
बिमल अंजुम का कहना है कि दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं है जो अभी चीन पर निर्भर नहीं है. यहां तक कि जापान भी चीन के बाजार से बहुत सारे प्रोडक्ट खरीदता है. अगर हम चाहे तो जो चीन पर भारत की निर्भरता है उसे कम करने की ओर बढ़ सकते हैं. उनके मुताबिक पूरी कोशिश करने के बाद भी हमारे जीवन में 3 से 4% चीन का सामान तो रहेगा ही.
हम पूरी तरह चीन के समान को अपने जीवन से नहीं निकाल सकते. 100 प्रतिशत चीनी सामान का बहिष्कार करने के लिए समय लगेगा. सरकारों को चरणबद्ध तरीके से काम करना होगा.