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केंद्र से करोड़ों मिले, फिर भी नहीं बढ़ा हरियाणा का जलस्तर, NGT ने मांगी रिपोर्ट

प्रदेश को पिछले साढ़े तीन साल में केंद्र से जल संचयन के लिए मिले 1009 करोड़ रुपये, फिर भी घटा जलस्तर.

फाइल फोटो एनजीटी
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Published : Aug 5, 2019, 1:37 PM IST

Updated : Aug 5, 2019, 5:06 PM IST

चंडीगढ़: प्रदेश में घटते जल स्तर को लेकर विधानसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने आने की स्थिति में है. विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही, यह मुद्दा और बढ़ रहा है.

हकीकत यह है कि जल संरक्षण के लिए प्रदेश में सरकारों ने कभी गंभीरता से प्रयास नहीं किए. अब पिछले कुछ दिनों से लोगों को जागरुक करने से लेकर यात्रा तक शुरू की जा रही है. यह जागरूकता अभियान भी तब चलाए जा रहे हैं जब पीएम मोदी ने जल संरक्षण के लिए पहल की और एनजीटी ने तालाबों, झीलों की प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी.


तालाबों को अस्तित्व में लाने का कार्य शुरू
एनजीटी में मामला पहुंचने के बाद प्रदेश में करीब 16 हजार तालाबों को फिर से अस्तित्व में लाने का अब प्रयास शुरू हो रहा है. क्योंकि सरकार को दिसंबर में एनजीटी को जवाब देना है.

जल संचयन को मिले थे 1009 करोड़
हरियाण सरकार को केंद्र की ओर से जल संजयन करने के लिए पिछले साढ़े तीन सालों में 1009 करोड़ रुपये मिले हैं. ये राशि कहां और कैसे खर्च हुई है यह तो सरकार ही जानती है.

बढ़ने की वजह घटा जलस्तर
केंद्र की करोड़ों की मदद के बाद भी पिछले पांच साल में प्रदेश के अंदर जलस्तर बढ़ने की वजह 2.20 घट चुका है.
प्रदेश के अंदर कुछ ब्लॉकों में भूमिगत जलस्तर स्थिति बहुत बुरी है.
भूमिगत जलस्तर की सबसे बुरी स्थिति महेंद्रगढ़ की है. महेंद्रगढ़ में 48.54 मीटर तक पानी जमीन में नीचे जा चुका है. वहीं फतेहाबाद में भी 6.17 मीटर नीचे चला गया है.
हरियाणा में वर्ष 2014 से जून 2018 तक औसतन भूमिगत जलस्तर 17.37 से 19.57 मीटर नीचे की ओर बढ़ गया है. पानी का लगातार दोहन होता रहा तो हालात बिगड़ भी सकते हैं. क्योंकि हरियाणा को फिलहाल 35 एमएएफ पानी की जरूरत है.

दूषित पानी पीने से 100 से ज्यदा मौत

  • प्रदेश के लोग दूषित पानी पीने को मजबूत हैं, जिससे डायरिया जैसी बीमारी फैल रही है.
  • साल 2016 में प्रदेश में 2 लाख 24 हजार 780 लोग बीमार हुए थे. जिनमें 14 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
  • साल 2017 में 2 लाख 36 हजार 752 बीमार लोगों में से 20 लोगों की मौत हो गई.
  • साल 2018 में 2 लाख 19 हजार 415 लोगों में से 55 की मौत हो गई.

चंडीगढ़: प्रदेश में घटते जल स्तर को लेकर विधानसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने आने की स्थिति में है. विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही, यह मुद्दा और बढ़ रहा है.

हकीकत यह है कि जल संरक्षण के लिए प्रदेश में सरकारों ने कभी गंभीरता से प्रयास नहीं किए. अब पिछले कुछ दिनों से लोगों को जागरुक करने से लेकर यात्रा तक शुरू की जा रही है. यह जागरूकता अभियान भी तब चलाए जा रहे हैं जब पीएम मोदी ने जल संरक्षण के लिए पहल की और एनजीटी ने तालाबों, झीलों की प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी.


तालाबों को अस्तित्व में लाने का कार्य शुरू
एनजीटी में मामला पहुंचने के बाद प्रदेश में करीब 16 हजार तालाबों को फिर से अस्तित्व में लाने का अब प्रयास शुरू हो रहा है. क्योंकि सरकार को दिसंबर में एनजीटी को जवाब देना है.

जल संचयन को मिले थे 1009 करोड़
हरियाण सरकार को केंद्र की ओर से जल संजयन करने के लिए पिछले साढ़े तीन सालों में 1009 करोड़ रुपये मिले हैं. ये राशि कहां और कैसे खर्च हुई है यह तो सरकार ही जानती है.

बढ़ने की वजह घटा जलस्तर
केंद्र की करोड़ों की मदद के बाद भी पिछले पांच साल में प्रदेश के अंदर जलस्तर बढ़ने की वजह 2.20 घट चुका है.
प्रदेश के अंदर कुछ ब्लॉकों में भूमिगत जलस्तर स्थिति बहुत बुरी है.
भूमिगत जलस्तर की सबसे बुरी स्थिति महेंद्रगढ़ की है. महेंद्रगढ़ में 48.54 मीटर तक पानी जमीन में नीचे जा चुका है. वहीं फतेहाबाद में भी 6.17 मीटर नीचे चला गया है.
हरियाणा में वर्ष 2014 से जून 2018 तक औसतन भूमिगत जलस्तर 17.37 से 19.57 मीटर नीचे की ओर बढ़ गया है. पानी का लगातार दोहन होता रहा तो हालात बिगड़ भी सकते हैं. क्योंकि हरियाणा को फिलहाल 35 एमएएफ पानी की जरूरत है.

दूषित पानी पीने से 100 से ज्यदा मौत

  • प्रदेश के लोग दूषित पानी पीने को मजबूत हैं, जिससे डायरिया जैसी बीमारी फैल रही है.
  • साल 2016 में प्रदेश में 2 लाख 24 हजार 780 लोग बीमार हुए थे. जिनमें 14 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
  • साल 2017 में 2 लाख 36 हजार 752 बीमार लोगों में से 20 लोगों की मौत हो गई.
  • साल 2018 में 2 लाख 19 हजार 415 लोगों में से 55 की मौत हो गई.
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प्रदेश में पानी को लेकर विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में सत्ता पक्ष और विपक्ष अामने-सामने हैं। विधानसभा चुनाव नजदीक है, इसलिए यह मुद्दा और बढ़ रहा है। हकीकत यह है कि जल संरक्षण के लिए प्रदेश में सरकारों ने कभी गंभीरता से प्रयास ही नहीं किए। अब कुछ दिनों से लोगों को जागरुक करने से लेकर यात्रा तक शुरू की जा रही है। 



यह भी तब हुआ जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल संरक्षण के लिए पहल की और एनजीटी ने तालाबों, झीलों पर रिपोर्ट मांगी है। एनजीटी में एक मामला पहुंचने के बाद प्रदेश के करीब 16 हजार तालाबों को दोबारा वास्तविक स्थिति में लाने का अब प्रयास शुरू हो रहा है। क्योंकि सरकार को दिसंबर में जवाब देना है। चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले साढ़े तीन सालों में हरियाणा को केंद्र से जल संचयन के लिए 1009 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि मिली है। 



यह राशि कहां व कैसे खर्च हुई होगी, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पानी का स्तर बढ़ने की बजाए पांच सालों में 2.20 मीटर तक गहरा चुका है।  हाल यह है कि लोगों को शुद्ध पेयजल भी नहीं मिल रहा है। हरियाणा में आज भी 15 लाख से ज्यादा परिवारों को नलों से पानी नहीं मिल रहा है। घटते भूजल का असर न केवल खेती बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा है। लाखों लोग न केवल बीमार हो रहे हैं बल्कि अनेक की मौत की वजह भी दूषित पानी बन रहा है।

 



15 लाख परिवारों को नलों से नहीं मिलता पानी  



सरकार भले ही हर गांव और घर तक शुद्ध पेयजल पहुंचाने का दावा करे लेकिन सच अलग है। प्रदेश में 32 लाख 88 हजार 145 ग्रामीण परिवार हैं। इनमें 17 लाख 58 हजार 292 कनेक्शन लगे हुए हैं। यानि 53.47 फीसदी परिवारों को ही नलों से पानी मिल रहा है। आज भी 15 लाख 29 हजार से ज्यादा परिवारों को इधर-उधर से पानी लाना पड़ रहा है। जबकि दावा यह किया जा रहा है कि 2024 तक हर घर में नल से पानी पहुंचाया जाएगा।



ब्लॉकों में ये हैं हालात 



भूमिगत जल स्तर की सबसे बुरी स्थिति महेंद्रगढ़ जिले की है। यहां 48.54 मीटर तक पानी जमीन में नीचे जा चुका है। जबकि फतेहाबाद में भी 6.17 मीटर और गहरा गया है। हरियाणा में वर्ष 2014 से जून 2018 तक औसतन जल स्तर17.37 से 19.57 मीटर पाताल की ओर बढ़ गया है। पानी का लगातार दोहन होता रहा तो हालात बिगड़ भी सकते हैं। क्योंकि हरियाणा को फिलहाल 35 एमएएफ पानी की जरूरत है। 

 



पानी का संचयन होता नहीं, ट्यूबवेलों से 61 फीसदी ब्लॉकों में हो रहा पानी का अति दोहन 

हरियाणा में करीब आठ लाख ट्यूबवेल हैं। बारिश का पानी इकट्‌ठा न करने की वजह से कृषि पर आधारित प्रदेश के लोगों की आजीविका का बड़ा साधन खेती है। पानी के लिए ट्यूबवेल से भूमिगत जल खूब खींचा जा रहा है। हाल यह है कि 128 ब्लॉकों के हुए विश्लेषण में 78 ब्लॉक यानि 61 फीसदी ब्लॉकों को अति दोहन की श्रेणी में शामिल किया गया है। हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और दिल्ली के बाद 36 राज्य और यूटी में चौथे नंबर है, जहां अति दोहन वाले ब्लॉकों का प्रतिशत सबसे ज्यादा है। प्रदेश में 21 ब्लॉकों की स्थिति अत्यंत गंभीर तो 3 की गंभीर बनी हुई है। परिणाम यह हुआ कि ट्यूबवेल के लिए बिजली का कनेक्शन किसानों को नहीं मिल रहे।

 



दूषित पानी से तीन साल में 8 लाख हुए बीमार, 100 से ज्यादा मौत  



प्रदेश में लोग दूषित पानी पीने को मजबूत हैं, जिससे डायरिया जैसी बीमारी फैल रही है। 2016 में प्रदेश में 2 लाख 24 हजार 780 लोग बीमार हुए। जिनमें 14 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 2017 में 2 लाख 36 हजार 752 बीमार लोगों में 20 और 2018 में 2 लाख 19 हजार 415 लोगों में 55 की मौत हो गई। इसी प्रकार इन्हीं तीन सालों में टाइफाइड की चपेट में आए करीब सवा लाख लोगों में 12 की मौत हुई। 


Conclusion:
Last Updated : Aug 5, 2019, 5:06 PM IST
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