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कृषि अध्यादेश को लेकर अब हरियाणा और पंजाब में 'जंग'

पंजाब विधानसभा के मानसून सत्र में केंद्र की तीनों कृषि अध्यादेश रद्द करने का प्रस्ताव पारित कर करने के बाद, हरियाणा में भी अब विरोध की लहर तेज हो गई है. वहीं विपक्ष ने भी किसान संगठनों के साथ मिलकर सरकार की मोर्चाबंदी शुरू कर दी है.

Demand for cancellation of all three ordinances of the Center in Haryana, seen in Punjab
हरियाणा में भी केंद्र के तीनों अध्यादेशों को रद्द करने की मांग
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Published : Aug 29, 2020, 9:34 PM IST

Updated : Sep 1, 2020, 4:05 PM IST

चंडीगढ़: इस साल केंद्र सरकार तीन कृषि अध्यादेश लेकर आई. इन अध्यादेशों पर केंद्र ने राष्ट्रपति से मंजूरी भी हासिल कर ली. केंद्र सरकार का दावा है कि ये तीनों अध्यादेश कृषि क्षेत्र में क्रांति ला देंगे. सरकार का दावा है कि इन अध्यादेशों से किसान की आय में भी बढ़ोत्तरी होगी, लेकिन विपक्षी राजनीतिक दल और किसान संगठन लगातार इन तीनों अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं. यहां तक की पंजाब की कांग्रेस सरकार ने बकायदा एक इन अध्यादेशों के विरोध में प्रस्ताव पास किया है.

आखिर केंद्र की तरफ से लाए गए इन तीनों अध्यादेशों का विरोध क्यों हो रहा है, और विपक्ष इन अध्यादेशों को क्यों किसान विरोधी बता रही है, इन सवालों का जवाब जानने से पहले हम आपको संक्षेप में ये बता देते हैं कि ये तीनों अध्यादेश हैं क्या?

कृषि अध्यादेश को लेकर अब हरियाणा और पंजाब में 'जंग'

पहला अध्यादेश है: किसान का उत्पाद, व्यापार और वाणिज्य

इसके तहत केंद्र सरकार 'एक देश, एक कृषि मार्केट' बनाने की बात कह रही है. इस अध्यादेश के माध्यम से पैन कार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्केट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं. कृषि माल की बिक्री किसान मंडी में होने की शर्त केंद्र सरकार ने हटा ली है. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कृषि माल की जो खरीद मार्केट से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा.

दूसरा अध्यादेश: आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बदलाव

इस अध्यादेश लाने के पीछे सरकार की मंशा है कि Essential Commodity Act 1955 में बदलाव किया जाए. जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कुछ कृषि उत्पादों का एक लिमिट से अधिक भंडारण पर लगी रोक को हजा दी जाए. अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है.

तीसरा अध्यादेश: मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अध्यादेश पर किसानों का समझौता

इसके तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा. यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कंपनिया किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का एग्रीमेंट करेगी. फसल तैयार होने पर वो कंपनी सीधे किसान के खेत से उपज उठा लेगी.

सरकार का दावा क्या है?

केंद्र सरकार का कहना है कि इन तीन कृषि अध्यादेशों से किसानों के लिए फ्री मार्केट की व्यवस्था बनाई जाएगी. जिससे किसानों को लाभ होगा. किसानों को मंडी में अपनी फसल बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. किसान अपनी फसल का मोल-भाव करेंगे और मुनाफे पर बेचेंगे. किसानों को अब फसल स्टोर करने की ज्यादा आजादी मिलेगी.

प्रदेश में विपक्ष कर रहा है जोरदार विरोध

इन अध्यादेशों को लेकर हरियाणा में विपक्ष मोर्चा खोले बैठी है. विपक्ष का कहना है कि इन कानूनों के जरिए सरकार खेती में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है जो किसानों के साथ इस सरकार का एक और षड्यंत्र है.

उनका कहना है कि देश में 85 फीसदी छोटी खेती करने वाले किसान हैं, जिनकी साल भर की पैदावार इतनी नहीं होती कि वह हर बार पास की मंडी तक ही जा सके और अपनी फसल बेच सकें. ऐसे में किसान अपनी फसल को किसी दूसरे राज्य की मंड़ी में जाकर बेचें, ये कहना किसी मजाक से कम नहीं है, यदि कोई किसान अपनी फसल बेचने के लिए दूसरे राज्य में पहुंच भी जाए तो इसकी क्या गारंटी है कि उसको फसल के इतने दाम मिल जाएंगे कि माल, ढुलाई सहित पूरी लागत निकल आएगी.

पंजाब सरकार ने अध्यादेशों के खिलाफ किया प्रस्ताव पास

पंजाब विधानसभा के मानसून सत्र में तीनों कृषि अध्यादेश रद्द करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. इसके साथ ही यह प्रस्ताव पारित किया है कि केंद्र हर फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अधिकार देने के लिए अध्यादेश जारी करें ताकि भविष्य में किसी भी तरह से सरकार के एमएसपी से पीछे हटने का खतरा न रहे.

पंजाब के कांग्रेस सांसद गुरजीत औझला का कहना है कि केंद्र सरकरा विदेशी तर्ज पर काम करना चाहते हैं. हमारे देश के किसान इस फार्मूले को नहीं अपना सकता. कोई बाहरी कंपनी किसी किसान को डील करेगी तो वो किसानों को प्रताडित करेगी. फसलों पर सरकारी या गैर सरकारी शुल्क भी नहीं लगेगा और न ही सरकार का कोई कंट्रोल होगा, जो कि पूरी तरह से गलत है.

पंजाब का ये कदम दुर्भाग्यपूर्ण है: ओपी धनखड़

वहीं हरियाणा के बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व कृषि मंत्री ओपी धनखड़ ने कहा कि पंजाब सरकार ने विरोध प्रस्ताव दुर्भावनापूर्ण पास किया है. उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं जिन्होंने फसल बीमा को भी लागू नहीं किया. जबकि हरियाणा का किसान 4500 हजार करोड़ का मुआवजा ले चुका है. उन्होंने आरोप लगाया कि इसके पीछे मंडी फीस भी एक वजह हो सकती है, सरकार के लालच में किसानों का नुकसान करना किसान विरोधी कदम है.

किसान संगठन का बढ़ा विरोध

वहीं पंजाब में विरोध प्रस्ताव पास होने के बाद हरियाणा में किसान संगठन लगातार आवाज उठा रहे हैं. भारतीय किसान महासंघ का कहना है कि नए कृषि अध्यादेशों से किसानों का शोषण बढ़ेगा. उनका कहना है कि इन तीनों अध्यादेशों से किसानों का तो भारी नुकसान होगा ही साथ में आढ़तियों और उनसे जुड़े मुनीम व दिहाड़ी मजदूर का भी बहुत अधिक नुकसान होगा और सभी बेरोजगार हो जाएंगे.

ये भी पढ़िए: 'पंजाब की तरह कृषि अध्यादेशों के खिलाफ केंद्र को प्रस्ताव भेजे हरियाणा सरकार'

चंडीगढ़: इस साल केंद्र सरकार तीन कृषि अध्यादेश लेकर आई. इन अध्यादेशों पर केंद्र ने राष्ट्रपति से मंजूरी भी हासिल कर ली. केंद्र सरकार का दावा है कि ये तीनों अध्यादेश कृषि क्षेत्र में क्रांति ला देंगे. सरकार का दावा है कि इन अध्यादेशों से किसान की आय में भी बढ़ोत्तरी होगी, लेकिन विपक्षी राजनीतिक दल और किसान संगठन लगातार इन तीनों अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं. यहां तक की पंजाब की कांग्रेस सरकार ने बकायदा एक इन अध्यादेशों के विरोध में प्रस्ताव पास किया है.

आखिर केंद्र की तरफ से लाए गए इन तीनों अध्यादेशों का विरोध क्यों हो रहा है, और विपक्ष इन अध्यादेशों को क्यों किसान विरोधी बता रही है, इन सवालों का जवाब जानने से पहले हम आपको संक्षेप में ये बता देते हैं कि ये तीनों अध्यादेश हैं क्या?

कृषि अध्यादेश को लेकर अब हरियाणा और पंजाब में 'जंग'

पहला अध्यादेश है: किसान का उत्पाद, व्यापार और वाणिज्य

इसके तहत केंद्र सरकार 'एक देश, एक कृषि मार्केट' बनाने की बात कह रही है. इस अध्यादेश के माध्यम से पैन कार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्केट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं. कृषि माल की बिक्री किसान मंडी में होने की शर्त केंद्र सरकार ने हटा ली है. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कृषि माल की जो खरीद मार्केट से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा.

दूसरा अध्यादेश: आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बदलाव

इस अध्यादेश लाने के पीछे सरकार की मंशा है कि Essential Commodity Act 1955 में बदलाव किया जाए. जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कुछ कृषि उत्पादों का एक लिमिट से अधिक भंडारण पर लगी रोक को हजा दी जाए. अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है.

तीसरा अध्यादेश: मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अध्यादेश पर किसानों का समझौता

इसके तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा. यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कंपनिया किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का एग्रीमेंट करेगी. फसल तैयार होने पर वो कंपनी सीधे किसान के खेत से उपज उठा लेगी.

सरकार का दावा क्या है?

केंद्र सरकार का कहना है कि इन तीन कृषि अध्यादेशों से किसानों के लिए फ्री मार्केट की व्यवस्था बनाई जाएगी. जिससे किसानों को लाभ होगा. किसानों को मंडी में अपनी फसल बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. किसान अपनी फसल का मोल-भाव करेंगे और मुनाफे पर बेचेंगे. किसानों को अब फसल स्टोर करने की ज्यादा आजादी मिलेगी.

प्रदेश में विपक्ष कर रहा है जोरदार विरोध

इन अध्यादेशों को लेकर हरियाणा में विपक्ष मोर्चा खोले बैठी है. विपक्ष का कहना है कि इन कानूनों के जरिए सरकार खेती में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है जो किसानों के साथ इस सरकार का एक और षड्यंत्र है.

उनका कहना है कि देश में 85 फीसदी छोटी खेती करने वाले किसान हैं, जिनकी साल भर की पैदावार इतनी नहीं होती कि वह हर बार पास की मंडी तक ही जा सके और अपनी फसल बेच सकें. ऐसे में किसान अपनी फसल को किसी दूसरे राज्य की मंड़ी में जाकर बेचें, ये कहना किसी मजाक से कम नहीं है, यदि कोई किसान अपनी फसल बेचने के लिए दूसरे राज्य में पहुंच भी जाए तो इसकी क्या गारंटी है कि उसको फसल के इतने दाम मिल जाएंगे कि माल, ढुलाई सहित पूरी लागत निकल आएगी.

पंजाब सरकार ने अध्यादेशों के खिलाफ किया प्रस्ताव पास

पंजाब विधानसभा के मानसून सत्र में तीनों कृषि अध्यादेश रद्द करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. इसके साथ ही यह प्रस्ताव पारित किया है कि केंद्र हर फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अधिकार देने के लिए अध्यादेश जारी करें ताकि भविष्य में किसी भी तरह से सरकार के एमएसपी से पीछे हटने का खतरा न रहे.

पंजाब के कांग्रेस सांसद गुरजीत औझला का कहना है कि केंद्र सरकरा विदेशी तर्ज पर काम करना चाहते हैं. हमारे देश के किसान इस फार्मूले को नहीं अपना सकता. कोई बाहरी कंपनी किसी किसान को डील करेगी तो वो किसानों को प्रताडित करेगी. फसलों पर सरकारी या गैर सरकारी शुल्क भी नहीं लगेगा और न ही सरकार का कोई कंट्रोल होगा, जो कि पूरी तरह से गलत है.

पंजाब का ये कदम दुर्भाग्यपूर्ण है: ओपी धनखड़

वहीं हरियाणा के बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व कृषि मंत्री ओपी धनखड़ ने कहा कि पंजाब सरकार ने विरोध प्रस्ताव दुर्भावनापूर्ण पास किया है. उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं जिन्होंने फसल बीमा को भी लागू नहीं किया. जबकि हरियाणा का किसान 4500 हजार करोड़ का मुआवजा ले चुका है. उन्होंने आरोप लगाया कि इसके पीछे मंडी फीस भी एक वजह हो सकती है, सरकार के लालच में किसानों का नुकसान करना किसान विरोधी कदम है.

किसान संगठन का बढ़ा विरोध

वहीं पंजाब में विरोध प्रस्ताव पास होने के बाद हरियाणा में किसान संगठन लगातार आवाज उठा रहे हैं. भारतीय किसान महासंघ का कहना है कि नए कृषि अध्यादेशों से किसानों का शोषण बढ़ेगा. उनका कहना है कि इन तीनों अध्यादेशों से किसानों का तो भारी नुकसान होगा ही साथ में आढ़तियों और उनसे जुड़े मुनीम व दिहाड़ी मजदूर का भी बहुत अधिक नुकसान होगा और सभी बेरोजगार हो जाएंगे.

ये भी पढ़िए: 'पंजाब की तरह कृषि अध्यादेशों के खिलाफ केंद्र को प्रस्ताव भेजे हरियाणा सरकार'

Last Updated : Sep 1, 2020, 4:05 PM IST
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