चंडीगढ़: कोरोना वायरस के शुरुआत में लोगों को अंदाजा भी नहीं था कि यह वायरस दुनिया को इस तरह प्रभावित करेगा. तबाही का वो मंजर जिसने पूरी दुनिया को हिला के रख दिया. आज भी कोरोना के जख्म पूरी तरह से भरे नहीं है. ऐसे में सभी देश की सरकारें अपने-अपने स्तर पर इस वायरस से लड़ने के लिए तैयार हुई. वहीं भारत देश आत्मनिर्भरता के साथ कोरोना काल में उभरा और देश में लोगों को मुफ्त में वैक्सीन बांटी गई. इस कोरोना वैक्सीन के दो चरण रखे गए.
लोगों में इन वैक्सीन को लेकर अलग-अलग आशंकाएं फैलाई गई. जिसका नतीजा आज भी भारत देश में लाखों की संख्या में इस वैक्सीन से वंचित है. देश में तरह-तरह के भ्रम कोरोना वैक्सीन को लेकर फैलाए गए. ऐसे में इस तरह की गलतफहमियों को दूर करने के लिए चंडीगढ़ और हरियाणा के फरीदाबाद के विशेषज्ञों द्वारा एक सफल रिसर्च (research of corona vaccine) की गई है. जिसमें सिद्ध हुआ है कि दोनों डोज लेने से महामारी के किसी भी स्वरूप से बचाव किया जा सकता है.
कोविड से बचने के लिए दिया जाने वाला टीकाकरण कोरोना महामारी का किसी भी रूप में बचाव कर सकता है. इस तरह की शोध पोस्टग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च ने ट्रांसलेशन हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट फरीदाबाद के विज्ञानियों के साथ मिलकर किए रिसर्च में साबित किया है. कि दोनों डोज लेने पर संक्रमण से जल्द रिकवरी की जा सकती है. आपको बता दें कि कोरोना वैक्सीन शोध प्रिंसिपल साइंटिस्ट इंस्टीट्यूट के डॉ. अमित अवस्थी की देख रेख में करवाई गई.
ऐसे में उन्हें उनकी इस शोध के लिए पीजीआई द्वारा वैक्सीन एक्सीलेंस अवार्ड से भी नवाजा गया. वहीं डॉक्टर्स ने इसकी सराहना तो की ही है लेकिन रिसर्चर्स की भी ये काफी बड़ी सफलता है. इस रिसर्च (chandigarh pgi research on corona vaccine) के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. अमित ने बताया कि कोविड की पहली लहर लगातार तेजी से फैल रही थी. वहीं कई बेकसूर लोगों को अपने प्रभाव में ले रही थी. हमारी टीम की ओर से इस खतरनाक वायरस से बचने के लिए वैक्सीन का काम शुरू किया गया था.
उस समय वायरस के बारे में एक प्रतिशत भी जानकारी उपलब्ध नहीं थी. इसके लिए दो मॉड्यूल तैयार किए गए. पहला एनिमल एसीई 2 टीजी और दूसरा हेमस्टर्ड मॉडल. पहले में यह पाया गया कि संक्रमित होने पर बचाव ना करने पर सात दिन के अंदर मौत हो रही है. जबकि दूसरे मॉडल में हेमस्टर्ड को एबीएसएल 3 के मानक में रखा गया. मतलब उसे जहां रखा गया वहां की हवा प्यूरीफायर होकर जाती है और नेगेटिव प्रेशर होता है.
फिर हमस्टर्ड में कोरोना का वायरस डाला गया. उसके बाद 3, 6 और 8वें दिन उसमें संक्रमण का स्तर मापा गया. डॉ. अमित ने बताया कि इसके अगले चरण के लिए टीम ने भारत में बनाई गई प्रोटीन बेस्ड कोर्बिवैक्स वैक्सीन के परिणाम का भी परीक्षण किया. इसे भी एनीमल मॉडल पर जांच किया गया और पाया कि वैक्सीन की दोनों खुराक संक्रमण के बाद रिकवरी में बेहद कारगर है. डॉ. अमित ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान डेल्टा जैसे घातक म्यूटेशन के दौरान वैक्सीन के परिणाम की जानकारी देकर महामारी से बचाव में अहम भूमिका निभाई.
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ऐसे शोध के दौरान जब कोरोना वायरस को समझने के लिए शोध किया जा रहा था, उस दौरान पहला शोध चूहों पर किया गया था. जहां शोध करने के लिए दो भागों में बांटे गया था. जहां वायरस के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वैक्सीन को 40 से 45 दिनों के समय देखा गया. वहीं इस दौरान कोरोना वैक्सीन (corona vaccine) बनने में समय लगा था क्योंकि वैक्सीन हर स्तर पर चेक किया गया था. ऐसे में डॉ. अमित अवस्थी कोरोना के पहले चरण से ही इस शोध में अपना समय दे रहे हैं. वहीं शोध सफल होने के बाद उन्हें चंडीगढ़ पीजीआई की ओर से एक्सीलेंस अवार्ड से भी नवाजा गया है.