चंडीगढ़: पीजीआई चंडीगढ़ में हर साल देशभर से लाखों मरीज आते हैं. इनमें बहुत से मरीज ऐसे होते हैं जिन्हें ऐसी बीमारियां होती हैं जो दूसरे अस्पतालों में ठीक नहीं हो पाती, इसलिए मरीज चंडीगढ़ पीजीआई का रुख करते हैं. लेकिन चंडीगढ़ के डॉक्टर ने कई ऐसी बीमारियों को ठीक किया है जिसकी प्रशंसा दुनिया भर में हुई है.
ऐसा ही एक मामला चंडीगढ़ पीजीआई में 5 साल पहले आया था, जब एक महिला को माहवारी के दौरान आंखों से खून निकलता था. जितने दिन माहवारी चलती थी इतने दिन महिला की आंखों से खून निकलता रहता था, जिसे छिपाना महिला के लिए बहुत मुश्किल होता था.
ये मामला पीजीआई के डॉक्टर के लिए भी हैरान कर देने वाला था, लेकिन पीजीआई के डॉ. आशीष भल्ला, डॉक्टर सुधीर ताले, डॉक्टर सौमित्र घोष और डॉक्टर नेहा हांडा ने इस महिला का सफलतापूर्वक इलाज किया. इस महिला से संबंधित रिसर्च को इसी महीने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित किया गया है.
40 साल के करियर में पहला ऐसा केस आया- डॉ आशीष भल्ला
डॉ. भल्ला ने कहा कि करीब 40 साल के करियर में ये उनका पहला केस था जो हैरान करने वाला था. उन्होंने कहा कि ऐसा एक केस पहले भी आ चुका था, लेकिन ये उनके लिए रेयर केस था. उन्होंने कहा कि जब ये मरीज पीजीआई में आई तो उन्होंने इसको डायग्नोज करने की कोशिश थी, क्योंकि महिला को ये लाल आंसू सिर्फ माहवारी के दौरान ही आते थे, इसलिए इस दिशा में ही काम करना शुरू किया.
डॉ. भल्ला ने कहा कि जब स्टडी किया तो पता लगा कि इस तरह का एक मामला पहले भी दुनिया में रिपोर्ट हो चुका है. लाल आंसू आने का कारण रहता है कि जब किशोरी के विकास के समय 'एबरेंट टिश्यू' युटरेंट बॉडी से इधर-उधर विकसित हो जाते हैं. इसे 'ऑक्युलर एंड्रोमिट्रियसिस' का नाम दिया गया है.
'इस बीमारी में नाक और कान से भी आ सकता है खून'
2016 में पीजीआई में जिस समय यs महिला आई, उस समय उसकी उम्र करीब 25 साल थी. पेपर में प्रकाशित केस में भी उन्होंने स्पष्ट किया है कि महिला जब उनके पास आई थी तो उसे एक बार पहले नाक से खून आने की समस्या आई थी, लेकिन उस समय उसने पीजीआई में डॉक्टर्स से संपर्क नहीं किया. बाद में जब आंखों से भी लाल आंसू आने लगे तो पीजीआई में संपर्क किया.
महिला को कोई चोट नहीं थी. जांच की गई तो ट्रॉमा या न्यूक्लियर समस्या भी सामने नहीं आई. महिला की लगभग सभी जांच कर ली गईं. उसके परिवार में इस तरह की कोई हिस्ट्री नहीं थी और वो अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश भी थी, उसे कोई भी दिक्कत नहीं थी. आई साइट भी ठीक थी.
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सभी जांच करने के बाद डॉक्टर्स ने स्टडी करते समय पाया कि महिला को 'ऑक्युलर विकारियस मेंसुचरेशन' की समस्या हो सकती है. इसमें एबरेंट टिश्यू शरीर के किसी भी हिस्से में विकसित हो जाते हैं और जब भी माहवारी में सामान्य ब्लीडिंग में समस्या होती है तो बाकी हिस्सों में विकसित इन टिश्यू के जरिए ब्लीडिंग हो सकती है. ये नाक, कान व स्किन आदि से भी हो सकती है.
करीब तीन महीने के हार्मोनल ट्रीटमेंट के बाद महिला ठीक हो गई थी. डॉक्टर्स ने गर्भ निरोधक के लिए इस्तेमाल होने वाले हार्मोन की गोलियां दी. तीन महीने के फॉलोअप के बाद महिला ने बताया कि आंखों से दोबारा खून के आंसू नहीं आए. इसके बाद दवाई लेने की भी जरूरत नहीं हुई.
बता दें कि हेमोक्लेरिया के नाम से भी जाने वाले 'ब्लडी टियर्स' काफी रेयर है और कई बार मेलानोमा या ट्यूमर के कारण भी बन जाते हैं. आंख में इंजरी के कारण भी ऐसी स्थिति बन सकती है, लेकिन उक्त मरीज के मामले में इसका ताल्लुक माहवारी से था.
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