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निकाय चुनाव में दिखी किसानों की नाराजगी, 7 में 2 मेयर और 3 चेयरमैन पर बीजेपी गठबंधन हारा

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Published : Dec 30, 2020, 7:52 PM IST

Updated : Dec 31, 2020, 6:21 AM IST

भारतीय जनता पार्टी को मिली इस हार के कई मायने और कई फैक्टर हैं. इस पूरे चुनाव में किसान आंदोलन की छाप साफ नजर आई है. बीजेपी से ज्यादा जेजेपी को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा है.

Body Election Result Haryana
Body Election Result Haryana

चंडीगढ़: हरियाणा में 3 नगर निगम, 1 नगर परिषद और 3 नगर पालिकाओं के नतीजे बीजेपी के लिए कतई खुशगवार नहीं हैं. जो शहरी वोटर बीजेपी का कोर वोटर माना जाता था, वही उसकी झोली से खिसकता नजर आ रहा है. क्योंकि बीजेपी को जिस तरीके से हार का सामना करना पड़ा है. उसकी उम्मीद बीजेपी ने बिल्कुल नहीं की होगी.

अगर हम सिर्फ मेयर और चेयरपर्सन चुनावों में ही बीजेपी का प्रदर्शन देखें तो पाएंगे कि सोनीपत में बीजेपी को कांग्रेस के निखिल मदान से बड़ी हार मिली. अंबाला में छोटी मानी जाने वाली जनचेतना पार्टी शक्तिरानी शर्मा से उसे हार मिली. हालांकि पंचकूला में उनके उम्मीदवार कुलभूषण गोयल जरूर जीतने में कामयाब रहे.

हरियाणा निकाय चुनाव में दिखी किसानों की नाराजगी, क्लिक कर देखें वीडियो

रेवाड़ी नगर परिषद के 31 में से 24 वार्डों पर हारी बीजेपी

इसके अलावा रेवाड़ी नगर परिषद में बीजेपी अपनी चेयरपर्सन बनाने में कामयाब हुई. लेकिन यहां उसे 31 में 24 वार्ड में हार का सामना करना पड़ा. लेकिन बात इतनी भर नहीं है. धारूहेड़ा और उकलाना नगर पालिका में बीजेपी की सहयोगी जेजेपी चेयरपर्सन चुनाव लड़ रही थी, जो दोनों सीटें वो निर्दलीय उम्मीदवार से हारी और सांपला में बीजेपी के चेयरपर्सन उम्मीदवार को एक निर्दलीय ने हराया.

सबसे बड़ी हार बीजेपी को सोनीपत में मिली है. जहां से कांग्रेस के युवा नेता निखिल मदान मेयर बने हैं. भारतीय जनता पार्टी को जो हार मिली है, उसे खुद बीजेपी के नेता भी नहीं पचा पा रहे हैं. विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने कहा कि हम हार की समीक्षा करेंगे, जहां-जहां पार्टी हारी है उसके कारणों का पता करेंगे कि ऐसा क्यों हुआ है.

ये भी पढ़ें- कांग्रेस उम्मीदवार निखिल मदान ने जीता सोनीपत मेयर का चुनाव

भारतीय जनता पार्टी को मिली इस हार के कई मायने और कई फैक्टर हैं. इस पूरे चुनाव में किसान आंदोलन की छाप साफ नजर आई है. बीजेपी से ज्यादा जेजेपी को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा है. क्योंकि बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद भी वो जहां-जहां चेयरपर्सन का चुनाव लड़ी..वहां हार गई. भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपना गढ़ बचाने में ना सिर्फ कामयाब रहे हैं बल्कि उनके प्रत्याशी ने बड़ी जीत भी दर्ज की है. उधर पहले बरोदा उपचुनाव और अब नगर निकाय चुनाव में मिली हार बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकते हैं. क्योंकि गठबंधन में उनकी सरकार चल रही है और जेजेपी किसानों को अपना कोर वोटर मानती है.

चंडीगढ़: हरियाणा में 3 नगर निगम, 1 नगर परिषद और 3 नगर पालिकाओं के नतीजे बीजेपी के लिए कतई खुशगवार नहीं हैं. जो शहरी वोटर बीजेपी का कोर वोटर माना जाता था, वही उसकी झोली से खिसकता नजर आ रहा है. क्योंकि बीजेपी को जिस तरीके से हार का सामना करना पड़ा है. उसकी उम्मीद बीजेपी ने बिल्कुल नहीं की होगी.

अगर हम सिर्फ मेयर और चेयरपर्सन चुनावों में ही बीजेपी का प्रदर्शन देखें तो पाएंगे कि सोनीपत में बीजेपी को कांग्रेस के निखिल मदान से बड़ी हार मिली. अंबाला में छोटी मानी जाने वाली जनचेतना पार्टी शक्तिरानी शर्मा से उसे हार मिली. हालांकि पंचकूला में उनके उम्मीदवार कुलभूषण गोयल जरूर जीतने में कामयाब रहे.

हरियाणा निकाय चुनाव में दिखी किसानों की नाराजगी, क्लिक कर देखें वीडियो

रेवाड़ी नगर परिषद के 31 में से 24 वार्डों पर हारी बीजेपी

इसके अलावा रेवाड़ी नगर परिषद में बीजेपी अपनी चेयरपर्सन बनाने में कामयाब हुई. लेकिन यहां उसे 31 में 24 वार्ड में हार का सामना करना पड़ा. लेकिन बात इतनी भर नहीं है. धारूहेड़ा और उकलाना नगर पालिका में बीजेपी की सहयोगी जेजेपी चेयरपर्सन चुनाव लड़ रही थी, जो दोनों सीटें वो निर्दलीय उम्मीदवार से हारी और सांपला में बीजेपी के चेयरपर्सन उम्मीदवार को एक निर्दलीय ने हराया.

सबसे बड़ी हार बीजेपी को सोनीपत में मिली है. जहां से कांग्रेस के युवा नेता निखिल मदान मेयर बने हैं. भारतीय जनता पार्टी को जो हार मिली है, उसे खुद बीजेपी के नेता भी नहीं पचा पा रहे हैं. विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने कहा कि हम हार की समीक्षा करेंगे, जहां-जहां पार्टी हारी है उसके कारणों का पता करेंगे कि ऐसा क्यों हुआ है.

ये भी पढ़ें- कांग्रेस उम्मीदवार निखिल मदान ने जीता सोनीपत मेयर का चुनाव

भारतीय जनता पार्टी को मिली इस हार के कई मायने और कई फैक्टर हैं. इस पूरे चुनाव में किसान आंदोलन की छाप साफ नजर आई है. बीजेपी से ज्यादा जेजेपी को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा है. क्योंकि बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद भी वो जहां-जहां चेयरपर्सन का चुनाव लड़ी..वहां हार गई. भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपना गढ़ बचाने में ना सिर्फ कामयाब रहे हैं बल्कि उनके प्रत्याशी ने बड़ी जीत भी दर्ज की है. उधर पहले बरोदा उपचुनाव और अब नगर निकाय चुनाव में मिली हार बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकते हैं. क्योंकि गठबंधन में उनकी सरकार चल रही है और जेजेपी किसानों को अपना कोर वोटर मानती है.

Last Updated : Dec 31, 2020, 6:21 AM IST
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