चंडीगढ़ः हरियाणा में विधानसभा चुनाव के जो नतीजे सामने आए हैं, इससे निश्चित तौर पर बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. जिसके चलते महज पांच महीने पहले ही केंद्र की सत्ता में प्रचंड वापसी करने वाली पार्टी को निश्चित तौर पर मंथन करने की जरूरत है.
लोकसभा चुनाव के नतीजों को अगर देखा जाए तो बीजेपी ने हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर विरोधियों का सुपड़ा साफ किया था, वहीं 79 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई थी. जिसके बाद ही विधानसभा चुनाव के लिए 75 पार का नारा गढ़ा गया था.
लेकिन जब विधानसभा चुनाव के नतीजे के मुताबिक पार्टी 75 के आंकड़े के आस-पास फटकना तो दूर, बहुमत के जादुई आंकड़े 46 को भी नहीं छू पाई. हरियाणा में बीजेपी की इस हालत के लिए कई कारण गिनाए जा सकते हैं.
अति आत्मविश्वास!
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी नेताओं ने प्रदेश में विपक्ष को शून्य मान लिया था और शायद इस मुगालते रहने लगे की जनता सिर्फ उन्हीं को चाहती है. हरियाणा बीजेपी के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे रखकर और केंद्र सरकार के कामों के भरोसे ही चुनाव लड़ते रहे.
चुनाव प्रचार में स्थानीय मुद्दों से दूरी
विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी नेताओं के प्रचार के दौरान राष्ट्रीय मुद्दे ही छाए रहे. स्थानीय मुद्दों पर की पूरी तरह से अनदेखी की गई. चाहे बीजेपी का बड़ा नेता हो या छोटा नेता सभी का प्रचार अनुच्छेद 370 के आस-पास ही घुमता रहता था. बीजेपी नेता प्रदेश और अपने क्षेत्रों की जनता को ये बताने पूरी तरह से कामयाब नहीं हुए कि प्रदेश सरकार ने क्या काम किए हैं और खुद उन लोगों ने अपने विधानसभा क्षेत्रों में क्या काम करवाए हैं.
टिकटों का बंटवारा और बगावत
हरियाणा में बीजेपी की इस हालत के लिए टिकटों के बंटवारे और उसके बाद चुनाव में उतरे बागियों के फैक्टर को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. बीजेपी ने फरीदाबाद और बादशाहपुर सीट से दो मंत्रियों का टिकट काटा और कई जगहों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे जिनकी कोई पहचान नहीं थी. फरीदाबाद और बादशाहपुर में वोटिंग काफी कम हुई. फरीदाबाद के पृथला में बीजेपी के बागी नयनपाल रावत ने जीत हासिल की है. वहीं दादरी विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के बागी सोमबीर सांगवान ने जीत हासिल की. दोनों नेता पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत कम अंतर से हारे थे, लेकिन इस बार बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया.
महम विधानसभा सीट पर बीजेपी ने शमशेर खरकड़ा को टिकट दिया. जिसके बाद बीजेपी के बलराज कुंडू ने बगावत करके निर्दलीय ताल ठोक दी और महम की महाभारत के अर्जुन बन गए.
रेवाड़ी में बीजेपी ने सीटिंग विधायक रणधीर सिंह कापड़िवास का टिकट काट दिया और सुनील मूसेपुर को अपना उम्मीदवार बनाया. जिसके बाद रणधीर कापड़िवास ने निर्दलीय ताल ठोक दी. रेवाड़ी में बीजेपी के उम्मीदवार और बीजेपी के बागी की लड़ाई में कांग्रेस के राव चिरंजीव ने जीत हासिल की है. राव चिरंजीव को 27.88 फीसदी वोट मिले हैं. जबकि सुनील मूसेपुर को 26.79 प्रतिशत वोट मिले और रणधीर कापड़िवास को 23.19 फीसदी वोट मिले.
सिरसा में हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा ने जीत हासिल की है. वहां पर बीजेपी ने प्रदीप रातुसारिया को अपना उम्मीदवार बनाया था. जिसके बाद बीजेपी से बगावत करके गोकुल सेतिया ने चुनाव मैदान में निर्दलीय ताल ठोक दी. अगर वोटों की बात करें तो सिरसा में गोपाल कांडा को 31.65 फीसदी वोट मिले. वहीं गोकुल सेतिया को 31.23 फीसदी और प्रदीप रातुसारिया को 21.24 फीसदी वोट मिले हैं.
जाट वोटर्स की नाराजगी
कहा जाता है कि हरियाणा में जाट वोटर्स के बिना सियासत नहीं की जा सकती है. लेकिन फरवरी 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान प्रदेश में हुई हिंसा और उसमें जाट समुदाय के नौजवानों की पुलिस की गोली से मौत ने मनोहर लाल खट्टर सरकार की एंटी जाट इमेज बना दी. उस वक्त जाट समुदाय के लोगों ने बीजेपी ने जाट नेताओं पर जमकर गुस्सा निकाला था और अब हरियाणा में बीजेपी के बड़े जाट चेहरों वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु को नारनौंद से, कृषि मंत्री ओपी धनखड़ को बादली से और बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला को टोहाना विधानसभा क्षेत्र से हार का सामना करना पड़ा है.
जाट और दलित वोटरों का कांग्रेस के पाले में जाना
विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले कांग्रेस की हालत खस्ता नजर आ रही थी. लेकिन बीजेपी से नाराज जाट वोटर और सरकार को लेकर कहीं ना कहीं निराशा का सामना कर रहा दलित वोटर कांग्रेस के पाले में चला गया. इसका भी नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा है.
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