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भिवानी में पशु चिकित्सकों ने पशुपालकों को दिए थनैला रोग के बारे में जानकारी

भिवानी में गुरुवार को पशु चिकित्सकों ने पशुपालकों को थनैला रोग और उसके रोकथाम के टिप्स दिए.

veterinarians gave information about thanila disease in bhiwani
भिवानी में पशु चिकित्सकों ने पशुपालकों को दिए थनैला रोग के बारे में जानकारी
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Published : Jul 30, 2020, 5:43 PM IST

भिवानी: बरसात के मौसम में बढ़ रहे पशु बीमारी के मामलों को देखते हुए पशु चिकित्सा विभाग आगे आया है. बरसात के मौसम के चलते दुधारू पशुओं में विभिन्न तरह की बीमारियां पनप जाते हैं, जिनको लेकर भिवानी पशु चिकित्सा विभाग किसानों को कई तरह की निर्देश जारी किया है.

दुधारू पशुओं में बरसात के मौसम में थनैला रोग होने की समस्या ज्यादातर बढ़ जाती है. ऐसे में पशुओं की जान पर बन आती है और किसान व पशुपालक का लाखों रुपए का नुकसान हो जाता है. इसी बीमारी को लेकर पशु चिकित्सक डॉ. आनंद ने गुरुवार को पशुपालकों को जानकारी दी.

भिवानी में पशु चिकित्सकों ने पशुपालकों को दिए थनैला रोग के बारे में जानकारी

पशु चिकित्सक डॉ. आनंद ने बताया कि थनैला रोग हो जाने पर पशुओं के थन से खून आने लगता है. जिसकी वजह से पशुओं की जान चली जाती है. वहीं पशु का दूध भी पीने लायक नहीं रहता. ऐसे में पशुपालकों को पशु का विशेष ध्यान रखना चाहिए. उसे हरा चारा व पौष्टिक आहार देना चाहिए. उसे सूखी जगह पर बांधना चाहिए और गर्मी के चलते तीन से चार बार उसे पानी पिलाना चाहिए.

थनैला रोग होने पर क्या करें?

पशु चिकित्सक डॉ. आनंद ने बताया कि थनैला रोग से पशुओं को बचाने के लिए तीन चीजें करनी आवश्यक है.

पहला

पशुओं के थान साफ होने चाहिए. इसके लिए पशुपालक फिनाएल का उपयोग कर सकते हैं.

दूसरा

दूध निकालने के बाद जानवर को 20 मिनट तक बैठने नहीं देना है. क्योंकि दूध निकालने के बाद पशुओं के थन के छिद्र खुले रहते हैं. जिसकी वजह से पशुओं में थन में इंफेक्शन होने के चांस बढ़ जाते हैं.

तीसरा

उन्होंने बताया कि दूध निकालने के लिए लोग अंगूठे का इस्तेमाल करते हैं. जिससे पशुओं को चोट लगती रहती है. इसलिए दूध निकालते समय पशुपालक अपने अंगूठे के जगह अपनी मुठ्ठी का इस्तेमाल करें.

थनैला रोग के प्रकार

उन्होंने बताया कि थनैला दो तरह का होता है. पहला लाक्षणिक थनैला और दूसरा अलाक्षणिक थनैला. उन्होंने बताया कि लाक्षणिक थनैला में पशुपालक को साफ साफ थनैला रोग के लक्षण दिखेंगे. वहीं अलाक्षणिक थनैला में पशुओं में रोग के लक्षण नहीं दिखेंगे. उन्होंने बताया कि अलाक्षणिक थनैला में दूध धीरे-धीरे कम होता चला जाता है. जिससे पशुपालक समझ सकते हैं कि पशु को अलाक्षणिक थनैला हो गया है. चिकित्सक ने पुशपालकों को थनैला रोग से बचने के लिए अनेक तरह की दवा व उसके उपचार की विधि भी बताई.

ये भी पढ़ें: लॉकडाउन के दौरान कुरुक्षेत्र में बढ़ी कुत्तों की संख्या, 50 फीसदी कम हुए 'डॉग बाइट' के केस

भिवानी: बरसात के मौसम में बढ़ रहे पशु बीमारी के मामलों को देखते हुए पशु चिकित्सा विभाग आगे आया है. बरसात के मौसम के चलते दुधारू पशुओं में विभिन्न तरह की बीमारियां पनप जाते हैं, जिनको लेकर भिवानी पशु चिकित्सा विभाग किसानों को कई तरह की निर्देश जारी किया है.

दुधारू पशुओं में बरसात के मौसम में थनैला रोग होने की समस्या ज्यादातर बढ़ जाती है. ऐसे में पशुओं की जान पर बन आती है और किसान व पशुपालक का लाखों रुपए का नुकसान हो जाता है. इसी बीमारी को लेकर पशु चिकित्सक डॉ. आनंद ने गुरुवार को पशुपालकों को जानकारी दी.

भिवानी में पशु चिकित्सकों ने पशुपालकों को दिए थनैला रोग के बारे में जानकारी

पशु चिकित्सक डॉ. आनंद ने बताया कि थनैला रोग हो जाने पर पशुओं के थन से खून आने लगता है. जिसकी वजह से पशुओं की जान चली जाती है. वहीं पशु का दूध भी पीने लायक नहीं रहता. ऐसे में पशुपालकों को पशु का विशेष ध्यान रखना चाहिए. उसे हरा चारा व पौष्टिक आहार देना चाहिए. उसे सूखी जगह पर बांधना चाहिए और गर्मी के चलते तीन से चार बार उसे पानी पिलाना चाहिए.

थनैला रोग होने पर क्या करें?

पशु चिकित्सक डॉ. आनंद ने बताया कि थनैला रोग से पशुओं को बचाने के लिए तीन चीजें करनी आवश्यक है.

पहला

पशुओं के थान साफ होने चाहिए. इसके लिए पशुपालक फिनाएल का उपयोग कर सकते हैं.

दूसरा

दूध निकालने के बाद जानवर को 20 मिनट तक बैठने नहीं देना है. क्योंकि दूध निकालने के बाद पशुओं के थन के छिद्र खुले रहते हैं. जिसकी वजह से पशुओं में थन में इंफेक्शन होने के चांस बढ़ जाते हैं.

तीसरा

उन्होंने बताया कि दूध निकालने के लिए लोग अंगूठे का इस्तेमाल करते हैं. जिससे पशुओं को चोट लगती रहती है. इसलिए दूध निकालते समय पशुपालक अपने अंगूठे के जगह अपनी मुठ्ठी का इस्तेमाल करें.

थनैला रोग के प्रकार

उन्होंने बताया कि थनैला दो तरह का होता है. पहला लाक्षणिक थनैला और दूसरा अलाक्षणिक थनैला. उन्होंने बताया कि लाक्षणिक थनैला में पशुपालक को साफ साफ थनैला रोग के लक्षण दिखेंगे. वहीं अलाक्षणिक थनैला में पशुओं में रोग के लक्षण नहीं दिखेंगे. उन्होंने बताया कि अलाक्षणिक थनैला में दूध धीरे-धीरे कम होता चला जाता है. जिससे पशुपालक समझ सकते हैं कि पशु को अलाक्षणिक थनैला हो गया है. चिकित्सक ने पुशपालकों को थनैला रोग से बचने के लिए अनेक तरह की दवा व उसके उपचार की विधि भी बताई.

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