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भिवानी: शिक्षा बोर्ड में खुदीराम बोस के बलिदान दिवस पर किया गया पौधारोपण - भिवानी पौधारोपण कार्यक्रम

भिवानी में खुदीराम बोस की बलिदान दिवस के मौके पर पौधारोपण किया गया. बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. जगबीर सिंह ने खुदीराम बोस की बहादुरी को याद किया.

Plantation on sacrifice day of Khudiram Bose in Board of Education bhiwani
Plantation on sacrifice day of Khudiram Bose in Board of Education bhiwani
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Published : Aug 11, 2020, 7:12 PM IST

भिवानी: हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड में मंगलवार को बलिदान दिवस पर शहीद युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस की याद में बोर्ड परिसर के प्रांगण मे पौधारोपण किया गया और दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित की गई.

खुदीराम बलिदान दिवस पौधारोपण कार्यक्रम

कोविड-19 महामारी की रोकथाम हेतु निर्धारित नियमों की अनुपालना करते हुए यह कार्यक्रम किया गया. शहीद खुदीराम बोस के संक्षिप्त जीवन के विराट स्वरूप का वर्णन करते हुए बोर्ड अध्यक्ष डॉ० जगबीर सिंह एवं सचिव श्री राजीव मौजूद रहे. जगबीर सिंह ने कहा कि आज ही के दिन युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस भारतीय स्वाधीनता के लिए मात्र 18 साल की आयु में फांसी पर चढ़ गए थे.

ये है उनकी बहादुरी

उन्होंने कहा कि वे सबसे कम उम्र के वीर एवं क्रांतिकारी देशभक्त माने जाते हैं. उन्होंने आगे बताया कि खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर, 1889 को पश्चिमी बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में हुआ था. बालक खुदीराम बोस के मन में देश को आजाद करवाने की ऐसी लगन लगी की नौंवी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़कर कर स्वदेशी आन्दोलन मे कूद पड़े थे.

ये भी पढ़ें- नहीं रहे मशहूर शायर राहत इंदौरी, कोरोना संक्रमण के बाद हुआ निधन

उन्होंने बताया कि अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए खुदीराम बोस ने हिन्दुस्तान पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में पहला बम फेंका और मात्र 18 वर्ष 8 मास 11 दिन की आयु मे हाथ में भगवद-गीता लेकर हंसते-हंसते फांसी के फन्दे पर चढे.

शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए थे कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे थे, नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था. उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और उनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ.

भिवानी: हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड में मंगलवार को बलिदान दिवस पर शहीद युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस की याद में बोर्ड परिसर के प्रांगण मे पौधारोपण किया गया और दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित की गई.

खुदीराम बलिदान दिवस पौधारोपण कार्यक्रम

कोविड-19 महामारी की रोकथाम हेतु निर्धारित नियमों की अनुपालना करते हुए यह कार्यक्रम किया गया. शहीद खुदीराम बोस के संक्षिप्त जीवन के विराट स्वरूप का वर्णन करते हुए बोर्ड अध्यक्ष डॉ० जगबीर सिंह एवं सचिव श्री राजीव मौजूद रहे. जगबीर सिंह ने कहा कि आज ही के दिन युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस भारतीय स्वाधीनता के लिए मात्र 18 साल की आयु में फांसी पर चढ़ गए थे.

ये है उनकी बहादुरी

उन्होंने कहा कि वे सबसे कम उम्र के वीर एवं क्रांतिकारी देशभक्त माने जाते हैं. उन्होंने आगे बताया कि खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर, 1889 को पश्चिमी बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में हुआ था. बालक खुदीराम बोस के मन में देश को आजाद करवाने की ऐसी लगन लगी की नौंवी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़कर कर स्वदेशी आन्दोलन मे कूद पड़े थे.

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उन्होंने बताया कि अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए खुदीराम बोस ने हिन्दुस्तान पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में पहला बम फेंका और मात्र 18 वर्ष 8 मास 11 दिन की आयु मे हाथ में भगवद-गीता लेकर हंसते-हंसते फांसी के फन्दे पर चढे.

शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए थे कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे थे, नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था. उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और उनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ.

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