भिवानी: हरियाणा के भिवानी जिले का अलखपुरा गांव मिनी ब्राजील के नाम से जाना जाता है. क्योंकि इस गांव की लड़कियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल के क्षेत्र में अपना नाम कमाया है. जज्बा, जुनून और संघर्ष क्या होता है, ये देखना हो तो हरियाणा के भिवानी जिले के गांव अलखपुरा आ जाइए. इस गांव की बेटियां तमाम अभावों और परेशानियों के बावजूद आसमान की ऊंचाइयों को छू रही हैं और फुटबॉल के किक से दुनिया नाप रही हैं. इसलिए तो, इस गांव को मिनी ब्राजील कहा जाता है, क्योंकि इस गांव की सुबह भी किक से होती है और रात भी किक पर ही खत्म होती है.
चलिए हम आपको बताते हैं कि इस गांव में ऐसी कौन सी हवा चली कि पूरे गांव के बच्चों को फुटबॉल का दिवाना बना दिया, ये कहानी शुरू होती है. साल 2009 से, इस गांव की 11 लड़कियों ने टीम बना कर गांव के ही स्कूल में फुटबॉल खेलना शुरू किया. देखते ही देखते छोरियों ने राष्ट्रीय स्तर पर मेडल झटक लिए, फिर क्या था. उस मेडल ने अलखपुर गांव के बच्चों में ऐसी अलख जगाई कि आज इस गांव ने करीब 200 राष्ट्रीय खिलाड़ियों की फौज तैयार कर दी है, जिसमें ज्यादातर लड़कियां हैं. जो सुविधाओं की मांग कर रही हैं.
मैं यहां 5 साल से फुटबॉल की प्रैक्टिस कर कर रही हूं. इस दौरान मैं स्टेट, नेशनल और अंडर 17 फीफा वर्ल्ड कप खेल चुकी हूं. हमारे ग्राउंड पर 100 से ज्यादा लड़कियां खेलने के लिए आती हैं. जिसकी वजह से कई बार फुटबॉल की कमी हो जाती है. अगर सरकार हमारी मदद करे तो अच्छा होगा. हमें थोड़ी डाइट की समस्या भी होती है. जिसे सरकार को दूर करना चाहिए- नेहा, फुटबॉल खिलाड़ी
खिलाड़ियों ने गिनवाई खामियां: एक और महिला खिलाड़ी काजल ने कहा कि 'मैंने 2014 से खेलना शुरू किया था. शुरुआत में बहुत परेशानी हुई, लेकिन मेरे परिजनों ने मेरा साथ दिया. मैं नेशनल, स्टेट और इंटरनेशनल लेवल पर खेल चुकी हूं. यहां करीब 100 से ज्यादा लड़कियां रोजाना प्रैक्टिस करती हैं. जिसकी वजह से फुटबॉल की कमी हो जाती है. जिसकी वजह से खिलाड़ियों के बाहर जिम में पसीना बहाना पड़ता है.' वशिका नाम की फुटबॉल खिलाड़ी ने बताया कि बारिश के दिनों में उनके ग्राउंड में पानी भर जाता है. जिसकी वजह से वो प्रैक्टिस नहीं कर पाते. सरकार को ये समस्या दूर करनी चाहिए.
खिलाड़ियों की उपलब्धियां: इस गांव की मिट्टी फुटबॉल के लिए इतनी उपजाऊ है कि दो दर्जन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी यहां से तैयार हुए हैं. खेलो इंडिया अंडर-17 और अंडर- 21 में इस गांव की 12 लड़कियों ने टीम में जगह बना चुकी हैं. आज यहां की करीब 8 छोरियां भारतीय फुटबॉल टीम के सीनियर वर्ग और अंडर-17 में सिलेक्ट हैं. यही नहीं साल 2015-16 और 2016-17 में इस गांव की टीम ने सुब्रतो कप भी अपने नाम किया है. अब खिलाड़ियों ने सरकार से सुविधाओं को बेहतर करने की मांग की है.
रोजाना 150 के करीब लड़कियां करती हैं प्रैक्टिस: लगभग पांच हजार की आबादी वाले गांव अलखपुरा में बेटा और बेटियों में कोई अंतर नहीं किया जाता. लगभग हर घर से बेटियां यहां के फुटबॉल ग्राउंड में प्रतिदिन प्रैक्टिस करती हैं. जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल टीम में यहां की बेटियां अपना स्थान बनाए हुए है. अलखपुरा गांव की फुटबॉल क्लब की सरकारी कोच सोनिका बिजराणिया ने कहा कि उनकी बेटियों ने 2015 और 2016 में दो बार पहले भी सुब्रतो कप जीता है.
खेल के जरिए मिली सरकारी नौकरी: यहां की बेटियों ने भारतीय सेना, सीआरपीएफ, भारतीय रेलवे, शिक्षा विभाग, असम राइफल, खेल विभाग सहित विभिन्न केंद्र व राज्य सरकार की नौकरियों में खेल के बूते रोजगार पाया है. इस गांव की बेटियों ने 2015 के नेशनल खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. यहां की 25 बेटियां जूनियर, सब जूनियर व सीनियर भारतीय टीम में चयनित हैं. यहां की 10 बेटियां भुवनेश्वर में हो रहे 17 आयु वर्ग के नेशनल खेलों में भाग लेने के लिए गई हुई हैं.
इसके अलावा दो बेटियां चीन के एशियन खेलों में खेल रही हैं. अलग-अलग समय पर 200 के लगभग बेटियां नेशनल प्रतियोगिताओं में प्रतिभागिता कर चुकी हैं. उन्होंने कहा कि दो बार सुब्रतो कप जीतने के अलावा तीन बार सुब्रतो कप के सेमीफाइनल तक अलखपुरा की टीम जगह बना चुकी है. वर्ष 2023 में अब 9वीं बार इस प्रतियोगिता में यहां की बेटियां पहुंची हैं. यहां की बेटी रीतू बगड़िया व संजू यादव भारत की टीम में फुटबॉल खिलाड़ी हैं.
इन्हीं उपलब्धियों के चलते अब अलखपुरा गांव को मिनी ब्राजील की संज्ञा दी जाने लगी है. यहां लगभग 150 से अधिक बेटियां प्रतिदिन फुटबॉल की प्रैक्टिस करती हैं. खेल विभाग द्वारा यहां पर तीन खेल नर्सरियां बनाने के साथ ही 75 लड़कियों को खेल डाइट दी जाती है, जिसमें 14 वर्ष से नीचे आयु वर्ग की बेटियों को 1500 रुपये तथा 14 वर्ष से ऊपर की बेटियों को दो हजार रुपये प्रति महीने डाइट भत्ता दिया जाता है. गौरतलब है कि मिनी ब्राजील के नाम से विख्यात अलखपुरा गांव देश और दुनिया में जहां फुटबॉल में अपना नाम कमा रहा है, वहीं बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के संदेश को आगे बढ़ाते हुए बेटी खिलाओ का संदेश भी देता नजर आ रहा है.