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हरियाणा का ये गांव कहलाता है देश का 'मिनी ब्राजील', हर घर में है महिला फुटबॉल चैंपियन - भिवानी अलखपुरा गांव न्यूज

जज्बा, जुनून और संघर्ष की मिसाल देखनी है तो अलखपुरा गांव में आइए, इस छोटे से गांव की मिट्टी फुटबॉल के लिए इतनी उपजाऊ है कि दो दर्जन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी यहां से तैयार हुए हैं. खेलो इंडिया अंडर-17 और अंडर- 21 में इस गांव की 12 लड़कियों ने टीम में जगह बना चुकी हैं.

hundreds of girls from alakhpura village in bhiwani football player
देश में महिला फुटबॉलर्स की नर्सरी बना अलखपुरा गांव
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Published : Nov 12, 2020, 3:09 PM IST

Updated : Nov 13, 2020, 6:23 PM IST

भिवानी: जज्‍बा, जुनून और संघर्ष क्‍या होता है, यह देखना हो तो हरियाणा के भिवानी जिले के छोटे से गांव अलखपुरा आ जाइए. इस गांव की बेटियां तमाम अभावों और परेशानियों के बावजूद आसमान की ऊंचाइयों को छू रही हैं और फुटबॉल के किक से दुनिया नाप रही हैं.

जी हां... क्या आपने कभी भारत के किसी गांव की ऐसी तस्वीर देखी है? बच्चे, जवान, अधेड़ सब फुटबॉल के दिवाने हैं. सूट-सलवार, घाघरे में इन महिलाओं को किक मारते देखा है? ऐसा सिर्फ अलखपुर में ही संभव है, इसीलिए ही तो, इस गांव को मिनी ब्राजिल भी कहा जाता है क्योंकि इस गांव की सुबह भी किक से होती है और रात भी किक पर ही खत्म होती है. गांव की इसी दिवानगी के चलते प्रदेश सरकार ने यहां अलग से दो फुटबॉल कोच भी नियुक्ति किया है.

देश में महिला फुटबॉलर्स की नर्सरी बना अलखपुरा गांव, देखिए विशेष रिपोर्ट

ऐसे शुरू हुआ गांव में फुटबॉल का कारवां

अब इसे फुटबॉल को लेकर पूरे गांव का दिवानापन नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे, लेकिन चलिए हम आपको फ्लैश बैक में लेकर चलते हैं और ये बताते हैं कि आखिर इस गांव में ऐसी कौन सी हवा चली कि पूरे गांव के बच्चों को फुटबॉल का दिवाना बना दिया, दरअसल कहानी शुरू होती है. साल 2009 से इस गांव की 11 लड़कियों ने टीम बना कर गांव के ही स्कूल में फुटबॉल खेलना शुरू किया, तो उनके पीटीआई शिक्षक गोवर्धन शर्मा ने नोटिस किया.

लड़कियों के टेलेंट के देखकर उन्होंने फुटबॉल खेलती लड़कियों की प्रेक्टिस पर ध्यान देना शुरू किया, तो गांव की छोरियों ने राष्ट्रीय स्तर पर मेडल झटक लिया, तो फिर क्या था उस मेडल ने अलखपुर गांव के बच्चों में ऐसी अलख जगाई कि आज इस गांव ने करीब 200 राष्ट्रीय खिलाड़ियों की फौज तैयार कर दी है, जिसमें ज्यादातर लड़कियां हैं.

दर्जनों खिलाड़ियों ने खेला है स्टेट और राष्ट्रीय चैंपिनशिप

इस छोटे से गांव की मिट्टी फुटबॉल के लिए इतनी उपजाऊ है कि संजु यादव, रीतू, समीक्षा जाखड़, दीपिका समौता, मुनेश राव, मंजू कस्वां, पूनम शर्मा जैसे दो दर्जन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी यहां से तैयार हुए हैं. खेलो इंडिया अंडर-17 और अंडर- 21 में इस गांव की 12 लड़कियों ने टीम में जगह बना चुकी हैं. आज यहां की करीब 8 छोरियां भारतीय फुटबॉल टीम के सीनियर वर्ग और अंडर-17 में सिलेक्टेड है. यही नहीं साल 2015-16 और 2016-17 में इस गांव की टीम ने सुब्रतो कप भी अपने नाम किया है.

ये भी पढ़ें- हरियाणा के इस गांव के सामने शहरों की चमक भी फीकी, लोग करते हैं इटली से तुलना

ग्रामीण चंदा इकट्ठा कर करते हैं खिलाड़ियों की मदद

सोनिका बिजराणिया पिछले 6 सालों से इस गांव में महिला फुटबॉल कोच के रूप में कार्यरत हैं. सोनिका बताती हैं कि गांव अलखपुरा के खेल मैदान में गांव गांव के हर घर से लड़की यहां फुटबॉल खेलने आती है. गांव के खिलाड़ियों के लिए जब भी खेल के सामान जूते, ट्रैक, सूट या बाकी सामान की जरूरत पड़ती है तो गांव के लोग चंदा इक्ट्ठा करते हैं. वहीं जब कोई खिलाड़ी मेडल जीत कर गांव लौटता है तो पूरे गांव में जश्न मनाया जाता है, क्योंकि यहां मेडल आया तो समझो दिन बदल गए...

फुटबॉल खेल नौकरियां हासिल कर चुकी हैं बेटियां

इस गांव की लड़कियों ने फुटबॉल खेल कर मेडल ही नहीं सरकारी नौकरियां भी हासिल की है. सरकार की 'मेडल लाओ, नौकरी पाओ' पॉलसी के तहत यहां के कई खिलाड़ी सरकारी विभागों में कार्यरत हैं. करूणा और ज्योति फिलहाल इन 200 खिलाड़ियों में से एक हैं जो अपने सीनियर्स की तरह ही राष्ट्रीय फुटबॉल टीम ने जगह बनाना चाहती हैं. ये अपनी सहेलियों के साथ सुबह से लेकर शाम तक गांव के ग्राउंड में अपना पसीना बहा रही हैं.

इस गांव की छोरियों का फुटबॉल से दिललगी देख अब दिल कहता है कि हरियाणा सिर्फ बॉक्सिंग और कुश्ती में ही नहीं फुटबॉल के मैदान में भी दुनियाभर में झंडे गाड़ने वाला है. यकीनन ये सपना बहुत बड़ा है थोड़ा वक्त लग सकता, लेकिन एक उम्मीद है. एक दिन पूरी दुनिया इन हरियाणवी छोरियों की किक्स का दिवानी होने वाली है यहां की हर छोरी की दुनिया नेट वाला 'गोल' है, और इनका गोल इंटरनेशनल फुटबॉल है.

ये पढ़ें- विशेष: 23 बेटियों को गोद लेने वाले अजीत नांदल पूरी दुनिया के लिए हैं मिसाल

भिवानी: जज्‍बा, जुनून और संघर्ष क्‍या होता है, यह देखना हो तो हरियाणा के भिवानी जिले के छोटे से गांव अलखपुरा आ जाइए. इस गांव की बेटियां तमाम अभावों और परेशानियों के बावजूद आसमान की ऊंचाइयों को छू रही हैं और फुटबॉल के किक से दुनिया नाप रही हैं.

जी हां... क्या आपने कभी भारत के किसी गांव की ऐसी तस्वीर देखी है? बच्चे, जवान, अधेड़ सब फुटबॉल के दिवाने हैं. सूट-सलवार, घाघरे में इन महिलाओं को किक मारते देखा है? ऐसा सिर्फ अलखपुर में ही संभव है, इसीलिए ही तो, इस गांव को मिनी ब्राजिल भी कहा जाता है क्योंकि इस गांव की सुबह भी किक से होती है और रात भी किक पर ही खत्म होती है. गांव की इसी दिवानगी के चलते प्रदेश सरकार ने यहां अलग से दो फुटबॉल कोच भी नियुक्ति किया है.

देश में महिला फुटबॉलर्स की नर्सरी बना अलखपुरा गांव, देखिए विशेष रिपोर्ट

ऐसे शुरू हुआ गांव में फुटबॉल का कारवां

अब इसे फुटबॉल को लेकर पूरे गांव का दिवानापन नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे, लेकिन चलिए हम आपको फ्लैश बैक में लेकर चलते हैं और ये बताते हैं कि आखिर इस गांव में ऐसी कौन सी हवा चली कि पूरे गांव के बच्चों को फुटबॉल का दिवाना बना दिया, दरअसल कहानी शुरू होती है. साल 2009 से इस गांव की 11 लड़कियों ने टीम बना कर गांव के ही स्कूल में फुटबॉल खेलना शुरू किया, तो उनके पीटीआई शिक्षक गोवर्धन शर्मा ने नोटिस किया.

लड़कियों के टेलेंट के देखकर उन्होंने फुटबॉल खेलती लड़कियों की प्रेक्टिस पर ध्यान देना शुरू किया, तो गांव की छोरियों ने राष्ट्रीय स्तर पर मेडल झटक लिया, तो फिर क्या था उस मेडल ने अलखपुर गांव के बच्चों में ऐसी अलख जगाई कि आज इस गांव ने करीब 200 राष्ट्रीय खिलाड़ियों की फौज तैयार कर दी है, जिसमें ज्यादातर लड़कियां हैं.

दर्जनों खिलाड़ियों ने खेला है स्टेट और राष्ट्रीय चैंपिनशिप

इस छोटे से गांव की मिट्टी फुटबॉल के लिए इतनी उपजाऊ है कि संजु यादव, रीतू, समीक्षा जाखड़, दीपिका समौता, मुनेश राव, मंजू कस्वां, पूनम शर्मा जैसे दो दर्जन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी यहां से तैयार हुए हैं. खेलो इंडिया अंडर-17 और अंडर- 21 में इस गांव की 12 लड़कियों ने टीम में जगह बना चुकी हैं. आज यहां की करीब 8 छोरियां भारतीय फुटबॉल टीम के सीनियर वर्ग और अंडर-17 में सिलेक्टेड है. यही नहीं साल 2015-16 और 2016-17 में इस गांव की टीम ने सुब्रतो कप भी अपने नाम किया है.

ये भी पढ़ें- हरियाणा के इस गांव के सामने शहरों की चमक भी फीकी, लोग करते हैं इटली से तुलना

ग्रामीण चंदा इकट्ठा कर करते हैं खिलाड़ियों की मदद

सोनिका बिजराणिया पिछले 6 सालों से इस गांव में महिला फुटबॉल कोच के रूप में कार्यरत हैं. सोनिका बताती हैं कि गांव अलखपुरा के खेल मैदान में गांव गांव के हर घर से लड़की यहां फुटबॉल खेलने आती है. गांव के खिलाड़ियों के लिए जब भी खेल के सामान जूते, ट्रैक, सूट या बाकी सामान की जरूरत पड़ती है तो गांव के लोग चंदा इक्ट्ठा करते हैं. वहीं जब कोई खिलाड़ी मेडल जीत कर गांव लौटता है तो पूरे गांव में जश्न मनाया जाता है, क्योंकि यहां मेडल आया तो समझो दिन बदल गए...

फुटबॉल खेल नौकरियां हासिल कर चुकी हैं बेटियां

इस गांव की लड़कियों ने फुटबॉल खेल कर मेडल ही नहीं सरकारी नौकरियां भी हासिल की है. सरकार की 'मेडल लाओ, नौकरी पाओ' पॉलसी के तहत यहां के कई खिलाड़ी सरकारी विभागों में कार्यरत हैं. करूणा और ज्योति फिलहाल इन 200 खिलाड़ियों में से एक हैं जो अपने सीनियर्स की तरह ही राष्ट्रीय फुटबॉल टीम ने जगह बनाना चाहती हैं. ये अपनी सहेलियों के साथ सुबह से लेकर शाम तक गांव के ग्राउंड में अपना पसीना बहा रही हैं.

इस गांव की छोरियों का फुटबॉल से दिललगी देख अब दिल कहता है कि हरियाणा सिर्फ बॉक्सिंग और कुश्ती में ही नहीं फुटबॉल के मैदान में भी दुनियाभर में झंडे गाड़ने वाला है. यकीनन ये सपना बहुत बड़ा है थोड़ा वक्त लग सकता, लेकिन एक उम्मीद है. एक दिन पूरी दुनिया इन हरियाणवी छोरियों की किक्स का दिवानी होने वाली है यहां की हर छोरी की दुनिया नेट वाला 'गोल' है, और इनका गोल इंटरनेशनल फुटबॉल है.

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Last Updated : Nov 13, 2020, 6:23 PM IST
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